दिल्ली में कांग्रेस और AAP की सियासी लड़ाई, क्या कांग्रेस बन सकती है AAP के लिए सबसे बड़ी चुनौती?

दिल्ली में विधानसभा चुनाव के मौके पर सियासी माहौल काफी गर्म हो चुका है। 10 साल से सत्ता में काबिज आम आदमी पार्टी (AAP) अब अपनी सरकार को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस एक बार फिर दिल्ली के पुराने जनाधार को हासिल करने के लिए मैदान में उतर चुकी है। हालांकि, दोनों पार्टियों के बीच इस बार जो कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है, वह पहले कभी नहीं थी। हाल ही में, इन दोनों के बीच बीजेपी भी आकर फंसी हुई है और दोनों को घेरने की कोशिश कर रही है।

AAP और कांग्रेस के बीच बढ़ता टकराव

कुछ महीनों पहले, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस इंडिया गठबंधन का हिस्सा थीं। लेकिन अब दोनों पार्टियां एक-दूसरे के धुर विरोधी बन चुकी हैं। लोकसभा चुनाव में तो दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं और आम आदमी पार्टी को दिल्ली में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में दोनों के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। इस चुनाव में AAP के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस बनती दिख रही है।

कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं, AAP के लिए खतरा

कांग्रेस के पास इस समय खोने के लिए कुछ नहीं है, क्योंकि वह पिछले कई चुनावों से दिल्ली में खाता खोलने में नाकाम रही है। लेकिन कांग्रेस के पास कुछ है तो वह है शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल की यादें। कांग्रेस लगातार आम आदमी पार्टी से यह सवाल कर रही है कि 10 साल की सत्ता में उसने दिल्ली के लिए क्या किया है? कांग्रेस पार्टी शीला दीक्षित के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों को याद कराकर AAP को घेरने की कोशिश कर रही है। शीला दीक्षित ने दिल्ली में मेट्रो, सड़कों और फ्लाईओवरों का नेटवर्क तैयार किया था, जिसका हवाला कांग्रेस दे रही है।

आम आदमी पार्टी की लड़ाई बीजेपी से है या कांग्रेस से?

आम आदमी पार्टी की रणनीति कुछ अलग है। पार्टी अब यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि उसकी लड़ाई कांग्रेस से नहीं बल्कि बीजेपी से है। यह रणनीति इसलिए अपनाई जा रही है ताकि चुनाव में पार्टी को कांग्रेस से ज्यादा दिक्कत का सामना न करना पड़े। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का राजनीतिक उदय मुख्य रूप से कांग्रेस के पतन के बाद हुआ था। 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पहली बार दिल्ली की राजनीति में कदम रखा था और शीला दीक्षित की सरकार को घेरा था। इसके बाद से ही कांग्रेस का सियासी ग्राफ गिरता चला गया और AAP ने अपनी पकड़ मजबूत की।

चुनावी आंकड़े क्या कहते हैं?

दिल्ली में अब तक तीन विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और इन तीनों चुनावों में आम आदमी पार्टी ने सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जीत हासिल की। 2013 में जब AAP ने पहली बार चुनाव लड़ा था, तब उसने 28 सीटें जीती थीं और उसका वोट शेयर 29.49% था। वहीं कांग्रेस का वोट शेयर 24.55% पर आ गया था, और पार्टी सिर्फ 8 सीटें ही जीत सकी थी। बीजेपी को इस चुनाव में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था और उसने 31 सीटें जीतीं।

2015 में जब मध्यावधि चुनाव हुए, तो AAP ने भारी बहुमत के साथ वापसी की और 67 सीटों पर जीत दर्ज की। इस दौरान कांग्रेस पूरी तरह से चुनावी मैदान से बाहर हो गई थी, और बीजेपी को भी केवल 3 सीटें ही मिल पाई। 2020 के चुनाव में AAP ने फिर से 62 सीटें जीतीं और बीजेपी को 8 सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर महज 5% रह गया।

क्या इस बार कांग्रेस कर पाएगी वापसी?

अब कांग्रेस 2020 के चुनाव की हार के बाद दिल्ली में अपनी खोई हुई जमीन वापस हासिल करने की कोशिश कर रही है। पार्टी के पास इस बार जनता को अपने पुराने वादों के जरिए आकर्षित करने का मौका है। कांग्रेस ने यह घोषणा की है कि वह हर माह बेरोजगारों को 8500 रुपए और महिलाओं को 2500 रुपए की सहायता देगी। इसके अलावा, पार्टी शीला दीक्षित सरकार के तहत किए गए विकास कार्यों को बार-बार जनता के सामने पेश कर रही है। अगर कांग्रेस अपनी रणनीति पर सही तरीके से काम करती है और पुराने वोटरों को वापस हासिल करने में सफल होती है, तो आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

BJP का गेम में रहना: क्या बीजेपी को मिल सकता है फायदा?

बीजेपी भी चुनावी मैदान में सक्रिय है। 2020 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 38.51% तक पहुंच चुका था, और इस बार भी पार्टी उम्मीद कर रही है कि अगर कांग्रेस अपने पुराने वोटरों को वापस पा लेती है तो उसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है। बीजेपी के लिए एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है ताकि वह कांग्रेस और AAP दोनों को घेर सके। अगर कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ता है और AAP से मोहभंग हुए वोटर फिर से कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं, तो बीजेपी के लिए सत्ता की राह आसान हो सकती है।

आम आदमी पार्टी के लिए क्यों बढ़ी चुनौती?

आम आदमी पार्टी को इस बार एंटी-इन्कंबेंसी का भी सामना करना पड़ सकता है। 10 साल तक एक राज्य में सरकार चलाना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है, और दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। AAP सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी बढ़ने लगी है, और यही नाराजगी कांग्रेस के लिए एक अवसर बन सकती है। कांग्रेस इस बार अपने पुराने वोटरों को वापस लाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।

नतीजे क्या कह सकते हैं?

अगर कांग्रेस दिल्ली में अपने पुराने जनाधार को वापस लाने में सफल हो जाती है, तो आम आदमी पार्टी को सत्ता बचाने में कठिनाई हो सकती है। वहीं, बीजेपी को भी पूरी उम्मीद है कि वह इस बार सत्ता हासिल करने में सफल हो सकती है, खासकर अगर AAP और कांग्रेस के बीच की कड़ी प्रतिस्पर्धा उसके लिए फायदेमंद साबित होती है। अब देखना यह है कि 8 फरवरी को चुनाव के नतीजे किस दिशा में मोड़ लेते हैं।

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