दिल्ली विधानसभा चुनाव: आरक्षित सीटों पर जीत तय करती है सत्ता, 2025 में क्या होगा?

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, सियासी माहौल गर्म होता जा रहा है। कांग्रेस और बीजेपी दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए पुरजोर कोशिश कर रही हैं, वहीं आम आदमी पार्टी चौथी बार सत्ता में लौटने के लिए मैदान में है। इन तीनों पार्टियों की नजरें फिलहाल एक ही जगह हैं, और वो हैं दिल्ली की आरक्षित सीटें। अगर आप दिल्ली के चुनावी ट्रेंड को देखेंगे तो पाएंगे कि आरक्षित सीटों पर जीत ही दिल्ली की सत्ता की दिशा तय करती है।

दिल्ली में आरक्षित सीटों का महत्व

दिल्ली विधानसभा में कुल 70 सीटें हैं, जिनमें से 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें मंगोलपुरी, मादीपुर, सीमापुरी, त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुर माजरा, गोकुलपुर, बवाना, पटेल नगर, कोंडली, अंबेडकर नगर, देवली और करोलबाग में हैं। 1993 से लेकर 2020 तक दिल्ली में सरकार बनाने वाले किसी भी दल को इन 12 सीटों में से अधिकतर सीटें जीतने की आवश्यकता रही है। अगर इन आरक्षित सीटों पर जीत मिल जाए तो सत्ता का रास्ता साफ हो जाता है।

1993 से 2020 तक आरक्षित सीटों पर जीत

दिल्ली में सत्ता की दिशा आरक्षित सीटों से तय होती रही है। 1993 से लेकर 2020 तक के चुनावों में इस पैटर्न को देखा गया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने 2013, 2015 और 2020 में आरक्षित सीटों पर शानदार जीत दर्ज की। 2015 और 2020 में तो आम आदमी पार्टी ने इन 12 आरक्षित सीटों पर क्लीन स्वीप किया था, यानी सभी सीटों पर जीत हासिल की। इस कारण ही आम आदमी पार्टी को सत्ता बनाने में आसानी हुई।

2013 में आम आदमी पार्टी ने कुल 28 सीटों में से 9 सीटें आरक्षित सीटों पर जीती थीं, वहीं बीजेपी को केवल 2 सीटें और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। इस तरह केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। 2015 और 2020 में आप ने सभी 12 आरक्षित सीटों पर कब्जा जमाया और दिल्ली में शानदार जीत हासिल की।

कांग्रेस की सफलता और बीजेपी का संघर्ष

कांग्रेस दिल्ली में सत्ता की हैट्रिक लगाने में सफल रही थी। 1998 से 2008 तक कांग्रेस ने तीन बार लगातार सत्ता बनाई। 1998 में कांग्रेस ने आरक्षित सीटों की 12 में से सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। बीजेपी और बसपा जैसी पार्टियों को इनमें से एक भी सीट नहीं मिली थी। इसके बाद 2003 में कांग्रेस ने 12 में से 10 सीटें जीतकर फिर से सत्ता बनाई। 2008 में कांग्रेस ने 12 आरक्षित सीटों में से 9 सीटों पर जीत हासिल की, और बीजेपी को केवल 2 सीटें मिली थीं।

बीजेपी ने केवल एक बार 1993 में दिल्ली में सरकार बनाई थी, जब आरक्षित 13 सीटों में से बीजेपी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद बीजेपी को सत्ता बनाने का मौका मिला, और मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे।

2025 में आरक्षित सीटों की अहमियत

2025 में दिल्ली के चुनावी परिणाम में आरक्षित सीटों की भूमिका फिर से अहम होने वाली है। इन 12 आरक्षित सीटों पर किसी भी पार्टी को जीत हासिल होने पर उसके सत्ता में आने की संभावना ज्यादा होती है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां इस बार दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए अभियान चला रही हैं। बीजेपी ने झुग्गी बस्तियों और अनधिकृत कॉलोनियों में दलित कार्यकर्ताओं के जरिए संपर्क अभियान चलाया है, वहीं कांग्रेस भी “सामाजिक न्याय” का नारा देकर दलितों को अपने पक्ष में करना चाहती है।

आम आदमी पार्टी पिछले दो चुनावों में मिली सफलता को बनाए रखने के लिए पूरी कोशिश कर रही है, और वे दलित समाज को अपने पक्ष में करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसके अलावा, हाल ही में डॉ. आंबेडकर पर अमित शाह की कथित टिप्पणी को लेकर अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी को दलित विरोधी होने के आरोप में कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।

चुनावी रणनीति: आरक्षित सीटों पर जीत की लड़ाई

2025 में आरक्षित सीटों पर जीत हासिल करने के लिए तीनों प्रमुख दल बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अपनी-अपनी रणनीतियां तैयार कर ली हैं। बीजेपी का मुख्य फोकस दलित समुदाय में अपनी पैठ बनाना है, ताकि वह चुनावी लड़ाई में बढ़त बना सके। वहीं कांग्रेस भी अपने पुराने वोट बैंक को वापस लाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। आम आदमी पार्टी ने पिछले दो चुनावों में आरक्षित सीटों पर जिस तरह की जीत हासिल की, उसे बरकरार रखने के लिए भी वे दलित समाज में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने में जुटी है।

2025 का चुनाव परिणाम इस बात पर निर्भर करेगा कि इन आरक्षित सीटों पर किस दल को कितनी सफलता मिलती है। जो पार्टी आरक्षित सीटों पर जीत हासिल करेगी, वही दिल्ली की सत्ता पर काबिज होगी।

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