Tuesday, February 11, 2025

सिर्फ दिल्ली की सत्ता ही नहीं गंवाई, अरविंद केजरीवाल को एक हफ्ते में लगे तीन बड़े झटके

अरविंद केजरीवाल की सियासत में अब वो बात नहीं रही। अन्ना आंदोलन से निकलकर राजनीतिक पिच पर कदम रखने वाले केजरीवाल ने जितनी तेजी से सफलता के शिखर को छुआ, उतनी ही तेज़ी से उनका जादू भी फीका होता जा रहा है। हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार ने ना सिर्फ आम आदमी पार्टी की सत्ता छीन ली, बल्कि अरविंद केजरीवाल की अपनी विधायकी भी चली गई। पिछले एक हफ्ते में आम आदमी पार्टी (AAP) और केजरीवाल को तीन बड़े सियासी झटके लगे हैं, जो पार्टी के लिए उबरना आसान नहीं होगा। इन झटकों का असर सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि पंजाब और एमसीडी तक फैलता दिख रहा है।

चंडीगढ़ में पहला झटका

आम आदमी पार्टी को सबसे पहला सियासी झटका चंडीगढ़ में लगा। 30 जनवरी को हुए चंडीगढ़ मेयर चुनाव में AAP और कांग्रेस के पास मेयर सीट जीतने के लिए जरूरी वोट थे, लेकिन फिर भी उन्हें जीत नहीं मिली। चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 पार्षद हैं, जिनमें AAP के पास 13, कांग्रेस के पास 6 और बीजेपी के पास 16 सीटें थीं। इस हिसाब से AAP और कांग्रेस के पास 19 वोट हो रहे थे, जो मेयर पद जीतने के लिए पर्याप्त थे। बावजूद इसके, बीजेपी ने 19 वोट हासिल किए और AAP-कांग्रेस गठबंधन को महज 17 वोट मिल सके। इस नतीजे के बाद पार्टी के भीतर बवाल मच गया। AAP के तीन पार्षदों ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया, जिससे पार्टी का मेयर बनाना मुश्किल हो गया। इस हार ने AAP की राजनीति को बड़ा झटका दिया, खासकर चंडीगढ़ में।

दिल्ली में मिली करारी हार

दिल्ली के चुनावों में आम आदमी पार्टी को बुरी हार का सामना करना पड़ा। 2015 और 2020 में शानदार जीत हासिल करने वाली AAP को 2025 में सिर्फ 22 सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा। 2015 में AAP ने 67 सीटें जीती थीं, जबकि 2020 में 63 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार पार्टी का प्रदर्शन इतना कमजोर था कि वह 22 सीटों तक ही सिमट गई। दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद AAP को अपनी राष्ट्रीय राजनीति को भी लेकर बड़े सवालों का सामना करना पड़ेगा। पार्टी के लिए यह हार एक बड़ा झटका है क्योंकि वह अपनी विकासशील राजनीति को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पैर पसारने की कोशिश कर रही थी।

केजरीवाल की खुद की हार

दिल्ली विधानसभा चुनाव की हार के बाद AAP को एक और बड़ा झटका तब लगा, जब खुद अरविंद केजरीवाल अपनी सीट नहीं जीत पाए। नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को हराया। यह हार AAP के लिए बहुत बड़ी परेशानी बनी, क्योंकि केजरीवाल पार्टी के संयोजक हैं और उनकी हार का असर पार्टी की साख पर सीधा पड़ा। इसके अलावा, AAP के कई बड़े नेता जैसे मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, सत्येंद्र जैन, और दुर्गेश पाठक भी चुनाव हार गए। यह दिखाता है कि पार्टी की शीर्ष नेतृत्व भी विधानसभा में नहीं पहुंच पाई।

आम आदमी पार्टी पर लगातार सियासी हमले

AAP को लगातार एक के बाद एक झटके मिल रहे हैं, और यह पार्टी को काफी प्रभावित कर रहा है। पिछले हफ्ते में तीन बड़े झटकों के बाद पार्टी के अंदर उथल-पुथल मच गई है। दिल्ली चुनाव हारने के बाद, पार्टी को एमसीडी और पंजाब में भी अपने सियासी दबदबे पर चिंता होने लगी है। अगले दो महीने में दिल्ली के एमसीडी चुनाव होने हैं, जहां बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बना चुकी है। बीजेपी ने अपनी ताकत का पूरा इस्तेमाल करते हुए विधानसभा स्पीकर के तौर पर भी अपना उम्मीदवार नियुक्त किया है। इसके बाद, एमसीडी में मेयर का चुनाव होना है, जिसमें बीजेपी को बिना किसी तोड़फोड़ के जीत हासिल हो सकती है।

राज्यसभा चुनाव पर असर

चंडीगढ़ और दिल्ली की हार के बाद AAP के लिए राज्यसभा चुनाव भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अब, आम आदमी पार्टी राज्यसभा में केवल एक सदस्य ही भेज सकेगी, जबकि पिछले दो चुनावों में वह तीन सदस्य भेजने में सफल रही थी। पंजाब में भी पार्टी को अपनी पकड़ बनाए रखना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस ने दावा किया है कि AAP के 30 विधायक उनके संपर्क में हैं। कांग्रेस का कहना है कि AAP पंजाब में टूट सकती है और भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल के बीच सत्ता संघर्ष हो सकता है।

आम आदमी पार्टी अब मुश्किल दौर से गुजर रही है। लगातार हार और अंदरूनी उथल-पुथल के बाद पार्टी के लिए राजनीतिक भविष्य को फिर से सहेजना आसान नहीं होगा। एमसीडी और पंजाब में पार्टी को संभालना एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, AAP को अपनी सियासी लड़ाई को फिर से मजबूत बनाने के लिए अपने चुनावी रणनीति और नेताओं के बीच सामंजस्य बैठाने की जरूरत होगी। अगर पार्टी ने जल्दी से खुद को संभालने की कोशिश नहीं की, तो आगे की राह और भी कठिन हो सकती है।

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