बहुजन समाज पार्टी (बसपा) पिछले कुछ सालों से लगातार चुनावी नुकसान झेल रही है, और इसके राजनीतिक भविष्य को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। पार्टी की स्थिति हर चुनाव के साथ और भी कमजोर होती जा रही है। मायावती की पार्टी, जो कभी दलित समाज के बड़े नेता के रूप में पहचानी जाती थी, अब सियासी दलों की भीड़ में एक और नाम बनकर रह गई है।
2024 लोकसभा चुनावों में बसपा को हुआ भारी नुकसान
2024 के लोकसभा चुनावों के बाद दिल्ली, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बसपा को भारी नुकसान हुआ है। पार्टी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद, जो मायावती के सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर देखे जा रहे थे, भी बसपा के लिए सियासी सफलता दिलाने में नाकाम साबित हो रहे हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा ने अपने उम्मीदवारों को 69 सीटों पर उतारा था, लेकिन यहां भी पार्टी को कोई खास सफलता नहीं मिली। पार्टी के अधिकांश उम्मीदवार जमानत तक नहीं बचा पाए। सिर्फ देवली सीट पर 2,581 वोट मिले थे, जबकि सबसे कम वोट मटिया महल से 130 मिले। पिछले चुनाव से पार्टी का वोट शेयर भी गिरा है। 2020 में पार्टी को 0.71% वोट मिले थे, जो अब घटकर 0.58% रह गए हैं। बसपा का वोट बैंक लगातार सिकुड़ता जा रहा है, जो पार्टी के लिए चिंता का विषय बन चुका है।
आकाश आनंद का सियासी प्रयोग क्यों फेल हुआ?
मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर और उत्तराधिकारी घोषित किया था, और उन्हें यूपी और उत्तराखंड छोड़कर देश भर में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी थी। आकाश ने सबसे पहले हरियाणा चुनाव में गठबंधन किया था और फिर दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन परिणाम वही रहे – हार। आकाश आनंद के नेतृत्व में बसपा का कोई भी उम्मीदवार जीत नहीं सका। इस दौरान आकाश ने कई चुनावी जनसभाओं को संबोधित किया, लेकिन एक भी सभा में बसपा के उम्मीदवार जमानत बचाने में सफल नहीं हुए।
बसपा का वोट बैंक क्यों खिसक रहा है?
बसपा का सबसे बड़ा वोट बैंक दलित समाज हुआ करता था। लेकिन अब वही वोट बैंक बसपा से खिसक कर दूसरे दलों के पास जा चुका है। यह बुरा हाल बसपा के लिए किसी बड़ी चिंता से कम नहीं है। आकाश आनंद, जो पार्टी की नई दिशा की उम्मीदों के साथ नेतृत्व में आए थे, अब पार्टी के ग्राफ को सुधारने में नाकाम साबित हो रहे हैं। आकाश के पास पार्टी को गठबंधन राजनीति में लाने का कोई ठोस प्लान नहीं है। इसका सीधा असर पार्टी की सियासी स्थिति पर पड़ रहा है। पार्टी अकेले चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर अड़ी हुई है, जिसका नतीजा यह हो रहा है कि मतदाता जीत की उम्मीद छोड़ कर दूसरी पार्टियों के पक्ष में वोट दे रहे हैं।
आकाश आनंद की नेतृत्व की स्थिति
आकाश आनंद की स्थिति यह है कि वे पार्टी में कोई बड़ा बदलाव नहीं कर पा रहे। मायावती ने उन्हें पार्टी की कमान सौंपते हुए अपनी पुरानी कार्यशैली में ही उन्हें बांध रखा है। आकाश को पार्टी के उम्मीदवारों के चयन की पूरी स्वतंत्रता नहीं मिली, और न ही उन्हें अपनी प्रचार शैली का खुलकर इस्तेमाल करने की छूट मिली। इसका नतीजा यह है कि पार्टी को एक के बाद एक चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है।
बसपा का भविष्य क्या होगा?
बसपा के सियासी भविष्य को लेकर मायावती की चुप्पी और आकाश आनंद का संघर्ष पार्टी के लिए चिंता का विषय बन चुका है। उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार पहले ही कमजोर हो चुका है, और अब देश भर में बसपा की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। आकाश आनंद की अगुवाई में पार्टी को फिर से मजबूत बनाने की चुनौती और भी बड़ी हो गई है, क्योंकि अब तक किसी भी चुनाव में वे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाने में सफल नहीं हो सके हैं।
क्या आकाश आनंद पार्टी में बड़ा बदलाव ला पाएंगे?
आखिरकार सवाल यही है – क्या आकाश आनंद पार्टी के लिए कोई बड़ा बदलाव ला पाएंगे या बसपा के सियासी भविष्य का सूरज जल्द ही डूब जाएगा?