दिल्ली विधानसभा का नया सत्र शुरू हो चुका है, और इस सत्र में विधानसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का चुनाव होना है। इसके साथ ही, मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने घोषणा की है कि दिल्ली विधानसभा में इस सत्र के दौरान सीएजी (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) की पेंडिंग सभी 14 रिपोर्ट पेश की जाएंगी। इन रिपोर्ट्स में यह बताया गया है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) की शराब नीति की वजह से सरकार को दो हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। आइए जानते हैं कि सीएजी रिपोर्ट कितनी पावरफुल होती है, और इसे सरकार क्यों गंभीरता से लेती है?
सीएजी की नियुक्ति और इसकी कार्यप्रणाली
सीएजी (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) भारतीय संविधान द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र संस्था है। इसका मुख्य काम सरकार के वित्तीय लेन-देन और खर्चों की जांच करना है। सीएजी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, और उसे पद से हटाने की प्रक्रिया भी बिल्कुल उसी तरह होती है, जैसे सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को पद से हटाने की प्रक्रिया होती है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 से 151 में सीएजी की शक्तियों और कार्यों के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। संविधान के मुताबिक, यह संस्था सभी सरकारी खर्चों की ऑडिटिंग करती है, और इसकी रिपोर्ट संसद या राज्य विधानसभा में पेश की जाती है।
सीएजी की शक्तियाँ और किस प्रकार की ऑडिटिंग की जाती है
सीएजी मुख्य रूप से दो प्रकार की ऑडिटिंग करता है: रेग्युलेरिटी ऑडिट और परफॉर्मेंस ऑडिट।
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रेग्युलेरिटी ऑडिट (जिसे कम्पलायंस ऑडिट भी कहा जाता है) में यह देखा जाता है कि सरकार के सभी खर्चे और लेन-देन कानूनों और नियमों के अनुसार हो रहे हैं या नहीं। उदाहरण के लिए, 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी का मामला मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए सामने आया, जो सीएजी की इसी प्रकार की रिपोर्ट का परिणाम था।
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परफॉर्मेंस ऑडिट के तहत यह जांचा जाता है कि सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का उद्देश्य सही तरीके से और न्यूनतम खर्च में पूरा किया जा रहा है या नहीं। इसमें सभी योजनाओं का विश्लेषण करके यह देखा जाता है कि सरकारी पैसे का इस्तेमाल सही जगह हो रहा है या नहीं।
सीएजी रिपोर्ट में कौन-कौन से विभाग आते हैं?
सीएजी के दायरे में केंद्र और राज्य सरकार के लगभग सभी विभाग और सरकारी कंपनियां आती हैं। इनमें रेलवे, पोस्ट एंड टेलीकम्युनिकेशन जैसे विभाग और सरकारी कंपनियां शामिल हैं। इसके अलावा, सीएजी सरकारी कंपनियों के खातों की भी जांच करता है, जो सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं। भारत में लगभग 1500 सार्वजनिक वाणिज्यिक कंपनियां और 400 से ज्यादा स्वायत्त संस्थाएं सीएजी की जांच के दायरे में आती हैं।
कैग रिपोर्ट का महत्व और राजनीतिक प्रभाव
सीएजी की रिपोर्ट सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने में मदद करती है। इसके बावजूद, सरकारें इस रिपोर्ट को मानने के लिए बाध्य नहीं होतीं, लेकिन कई बार यह रिपोर्ट सरकार के लिए समस्याएं पैदा कर देती है। यहां तक कि कई बार मंत्रियों की कुर्सियां तक चली जाती हैं।
केशुभाई पटेल का मामला: 2001 में कैग ने गुजरात पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल बिना किसी स्पष्ट कारण के विदेश यात्रा पर गए और लाखों रुपये का खर्च किया। इसके बाद गुजरात सरकार ने कैग के खिलाफ एक विज्ञापन भी जारी किया था, लेकिन भाजपा सरकार ने हस्तक्षेप कर 6 अक्टूबर 2001 को केशुभाई पटेल से इस्तीफा ले लिया था।
ए. राजा और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला: 2010 में, कैग की रिपोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी में भारी वित्तीय हानि का खुलासा किया, जो कि 1.76 लाख करोड़ रुपये के करीब थी। यह रिपोर्ट इस बात का कारण बनी कि सीबीआई ने दूरसंचार मंत्री ए. राजा को गिरफ्तार किया। हालांकि, बाद में कोर्ट से ए. राजा को क्लीन चिट मिल गई थी, लेकिन इस रिपोर्ट के कारण बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया था।
कैग रिपोर्ट की भूमिका और सरकार की कार्रवाई
कैग की रिपोर्ट केवल एक “सिफारिश” होती है, लेकिन इसकी गंभीरता इतनी होती है कि कई बार यह सरकारों के लिए संकट बन जाती है। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियाँ और नेता इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हैं और इसकी जांच में तेजी लाते हैं।
आखिरकार, यह कह सकते हैं कि कैग की रिपोर्ट सरकार के कार्यों की जांच करती है और उसे जवाबदेह बनाती है। चाहे सरकार इसे माने या न माने, इस रिपोर्ट का प्रभाव राजनीति पर हमेशा रहता है।