नई दिल्ली: चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगे या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। अब केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर दिया है और साफ कर दिया कि आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए नेता अपनी सजा पूरी करने के बाद फिर से चुनाव लड़ सकते हैं। यानी, उन पर आजीवन चुनाव लड़ने का बैन नहीं लगाया जा सकता।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि संसद ने पहले से ही जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनावी अयोग्यता की स्थिति तय कर रखी है। इस कानून के तहत, अगर किसी नेता को किसी आपराधिक मामले में 2 साल या उससे अधिक की सजा होती है तो वह सजा पूरी करने के 6 साल बाद तक चुनाव नहीं लड़ सकता। इसके अलावा, सरकार ने यह भी कहा कि 2016 में दाखिल इस याचिका में कई चीजें अस्पष्ट रूप से पेश की गई हैं, इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- सांसद दोषी हो तो चुनाव क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया था कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को आपराधिक मामले में दोषी करार दिया जाता है तो उसे जीवनभर के लिए नौकरी से निकाल दिया जाता है, तो फिर कोई नेता दोषी होने के बावजूद चुनाव कैसे लड़ सकता है? सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना था कि जो लोग खुद कानून तोड़ चुके हैं, वे कानून बनाने का हकदार कैसे हो सकते हैं?
क्या कहती है याचिका?
वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। इसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 और 9 को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता की दलील थी कि दोषी नेताओं को चुनाव लड़ने से आजीवन बैन कर देना चाहिए, ताकि राजनीति को अपराध मुक्त बनाया जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि जिन नेताओं के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं, उनके मामलों को जल्द से जल्द निपटाने के लिए विशेष अदालतें बनाई जानी चाहिए।
नेताओं के चुनाव लड़ने पर क्यों हो रहा विवाद?
भारत में राजनीति और अपराध का गठजोड़ कोई नई बात नहीं है। चुनावी विश्लेषण करने वाली संस्था एडीआर (Association for Democratic Reforms) की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव में जीतकर आए सांसदों में से 43% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। इसमें से कई पर गंभीर आरोप थे, जैसे हत्या, हत्या की कोशिश और महिलाओं के खिलाफ अपराध। ऐसे में सवाल उठता है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराए जाने के बाद नौकरी से निकाल दिया जाता है, तो नेताओं के लिए यह नियम क्यों नहीं लागू होना चाहिए?
केंद्र सरकार के हलफनामे का असर क्या होगा?
केंद्र सरकार के इस हलफनामे के बाद यह साफ हो गया कि सरकार दोषी नेताओं को चुनाव लड़ने से आजीवन प्रतिबंधित करने के पक्ष में नहीं है। इससे राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को लेकर बहस और तेज हो सकती है। विपक्षी दल और एक्टिविस्ट इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेर सकते हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर आगे क्या फैसला होगा, यह देखना दिलचस्प होगा।