ऑपरेशन सिंदूर’ ने पाकिस्तान को अकेला छोड़ दुनिया को भारत की ताकत दिखाई, मगर तुर्की बेशर्मी से पाक के पीछे खड़ा रहा। भारत ने भूकंप हो या अंतरराष्ट्रीय मंच, तुर्की का साथ दिया, फिर भी एर्दोगान हर मौके पर भारत के खिलाफ ज़हर उगलता है। धर्मशाला में IPL 2025 तक ठप, सीमा पर जवान आतंक से जूझ रहे हैं, और तुर्की पाक को ड्रोन-हथियार भेज भारत पर हमले करवाता है। आखिर तुर्की की भारत से क्या दुश्मनी? क्यों बार-बार वो भारत के खिलाफ साजिश रचता है? इसकी जड़ में है एर्दोगान का साम्राज्यवादी ख्वाब और पाकिस्तान की परमाणु ताकत। भारत का बुलंद रुख तुर्की को चुभता है, और वो कश्मीर का राग अलापकर बदला लेता है।
ऑपरेशन सिंदूर पर तुर्की की बौखलाहट
6-7 मई 2025 को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में भारत ने PoK और पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को तबाह किया। जैश-ए-मोहम्मद के रऊफ अजहर समेत सैकड़ों आतंकी ढेर हुए, जो 22 अप्रैल के पहलगाम हमले (26 मृत) का जवाब था। दुनिया ने भारत के आतंक-विरोधी रुख को सलाम किया, मगर तुर्की ने पाकिस्तान का साथ देकर भारत की कार्रवाई को “युद्ध भड़काने वाला” करार दिया।
तुर्की ने 300-400 ‘Asis Guard Songar’ ड्रोन पाक को दिए, जिनसे भारत के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर 36 जगहों पर हमले हुए। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान ने शहबाज शरीफ से फोन पर पाक की पीठ ठोंकी, कश्मीर पर UN जांच की वकालत की। भारत की ताकत और वैश्विक समर्थन तुर्की को रास नहीं आया।
एर्दोगान का ऑटोमन साम्राज्य बनाने का नापाक ख्वाब
एर्दोगान का सपना है ऑटोमन साम्राज्य को आधुनिक रूप में पुनर्जनम देना। 13वीं सदी में उस्मान प्रथम ने शुरू किया यह साम्राज्य 1517-1924 तक मिस्र, ग्रीस, तुर्की, सीरिया, अरब तक फैला था। प्रथम विश्व युद्ध में इसका पतन हुआ, और आधुनिक तुर्की बना। एर्दोगान मुस्लिम दुनिया का ‘खलीफा’ बनना चाहता है, और पाकिस्तान उसकी योजना का केंद्र है। परमाणु शक्ति और सैन्य ताकत के साथ पाकिस्तान भू-रणनीतिक रूप से अहम है।
पाक का धार्मिक आधार (टू-नेशन थ्योरी) और कश्मीर पर आक्रामक रुख एर्दोगान को लुभाता है। तुर्की ने 2024 में भारत को हथियार निर्यात पर बैन लगाया और पाक को सैन्य मदद बढ़ाई। पहलगाम हमले के बाद एर्दोगान ने शरीफ से मुलाकात कर कश्मीर पर “अटूट समर्थन” जताया।
भारत-तुर्की संबंधों में तल्खी
भारत और तुर्की के राजनयिक संबंध 1948 में बने, मगर व्यापार असंतुलन (भारत के पक्ष में) तुर्की को खलता है। भारत के सऊदी, यूएई, कतर जैसे मुस्लिम देशों से गहरे रिश्ते एर्दोगान को जलन देते हैं, जो खुद को मिडिल ईस्ट का लीडर मानता है। भारत के India-Middle East-Europe Economic Corridor (IMEC) को तुर्की अपनी रणनीति के लिए खतरा देखता है। 2016-17 में एर्दोगान के खिलाफ बगावत में तुर्की के धार्मिक नेता फेतुल्लाह गुलान का नाम आया, जिसे एर्दोगान ने CIA का प्यादा बताया। एर्दोगान ने गुलान के संगठन से जुड़े स्कूल-ऑफिस बंद करने को कहा, मगर भारत ने इनकार कर दिया। इसके बाद एर्दोगान ने कश्मीर को UN मंचों पर उछालना शुरू किया, खुलकर भारत-विरोधी रुख अपनाया।
तुर्की की साजिश पर भारत का जवाब
तुर्की की हरकतें भारत के लिए नई नहीं। 2023 में तुर्की भूकंप के दौरान भारत ने मदद भेजी, मगर पहलगाम हमले के बाद तुर्की ने पाक को जंबो मिलिट्री जहाज से हथियार भेजे। तुर्की की नेवी ने पाक के साथ संयुक्त अभ्यास किया, और उसके ड्रोन भारत पर हमलों में इस्तेमाल हुए। एर्दोगान का कश्मीर राग और पाक को सैन्य मदद भारत की संप्रभुता पर हमला है। भारत ने तुर्की के राजदूत को कड़ा जवाब दिया, साफ किया कि कश्मीर उसका आंतरिक मसला है। भारत की कूटनीति ने सऊदी, यूएई, रूस, इज़रायल जैसे देशों का समर्थन हासिल किया, जिसने तुर्की को बैकफुट पर ला दिया। ऑपरेशन सिंदूर में भारत की जीत ने एर्दोगान के मंसूबों पर पानी फेरा, मगर उसकी खुन्नस खत्म होने का नाम नहीं लेती।