अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच जंग ने अब एक ऐसा मोड़ ले लिया है, जिससे हजारों भारतीय छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। दरअसल ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड में विदेशी छात्रों के प्रवेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है, और इस फैसले ने भारत समेत दुनियाभर के उन छात्रों की योजनाओं को धराशायी कर दिया है, जो हार्वर्ड की दीवारों में अपनी कामयाबी की कहानी लिखने का सपना देख रहे थे। आखिर क्यों ट्रंप ने दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी को निशाने पर लिया? क्या यह फैसला राजनीतिक प्रतिशोध है या फिर अमेरिकी शिक्षा नीति में आमूलचूल बदलाव का संकेत?
कितने भारतीय छात्रों का भविष्य पड़ेगा खतरे में?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में हर साल 500 से 800 भारतीय छात्र दाखिला लेते हैं, लेकिन ट्रंप प्रशासन के इस फैसले के बाद अब उनके सामने सिर्फ दो ही विकल्प बचे हैं: या तो अमेरिका की किसी दूसरी यूनिवर्सिटी में शिफ्ट हो जाएं, या फिर वीजा खोकर देश लौटने को मजबूर हों।
अमेरिकी आंतरिक सुरक्षा विभाग (DHS) की सचिव क्रिस्टी नोएम ने साफ कर दिया है कि 2025-26 के एकेडमिक सेशन से हार्वर्ड में नए विदेशी छात्रों का दाखिला बंद होगा। हालांकि, मौजूदा छात्रों को राहत देते हुए कहा गया है कि वे अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेंगे, लेकिन नए एप्लीकेंट्स के लिए हार्वर्ड का दरवाजा अब बंद हो चुका है।
लिबरल एजेंडा का अड्डा है हार्वर्ड
ट्रंप और हार्वर्ड के बीच तनाव की जड़ें काफी गहरी हैं। हार्वर्ड ने कोरोना काल में ट्रंप की आलोचना की थी, और उनकी आप्रवासन नीतियों को लेकर भी यूनिवर्सिटी ने खुलकर विरोध जताया था। इसके जवाब में ट्रंप ने हार्वर्ड को “लिबरल एजेंडा का अड्डा” बताते हुए उसकी फंडिंग कटने की धमकी दी थी। अब यह जंग एकदम सीधे छात्रों तक पहुंच गई है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि हार्वर्ड अमेरिकी हितों के अनुरूप नहीं चल रहा लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा है, जिसमें विदेशी छात्रों को निशाना बनाया जा रहा है।
भारतीय छात्रों के लिए क्या हैं विकल्प?
इस संकट से निपटने के लिए भारतीय छात्रों को अब दूसरे विकल्पों पर गौर करना होगा। अमेरिका में ही MIT, स्टैनफोर्ड या प्रिंसटन जैसे संस्थानों में एडमिशन लेना एक रास्ता हो सकता है, लेकिन हार्वर्ड जैसी प्रतिष्ठा हर जगह नहीं मिलेगी। वहीं, भारत लौटकर IIT, IIM या JNU जैसे संस्थानों में पढ़ाई जारी रखना भी एक विकल्प है, लेकिन यहां भी सीटों की कमी और प्रतिस्पर्धा एक बड़ी चुनौती है। कुछ छात्र यूरोप या कनाडा की यूनिवर्सिटीज का रुख कर सकते हैं, लेकिन वहां भी स्कॉलरशिप और वीजा की नई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
भारतीय छात्रों के सपनों पर फिरेगा पानी?
यह सवाल अब हर उस भारतीय छात्र के मन में घर कर गया है, जिसने हार्वर्ड के लिए अपनी जमापूंजी लगा दी थी। ट्रंप प्रशासन के इस फैसले ने न सिर्फ छात्रों को बल्कि उनके परिवारों को भी झटका दिया है, जो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए लाखों रुपये खर्च कर चुके हैं। अब देखना यह है कि क्या भारत सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करेगी या फिर छात्रों को अपनी किस्मत खुद लिखनी होगी। एक बात तो तय है,ट्रंप की यह चाल न सिर्फ हार्वर्ड बल्कि पूरी दुनिया के शिक्षा तंत्र को हिलाकर रख देगी।