देहरादून: गंगा के लिए 113 दिन तक अनशन करने वाले प्रो. जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी के पार्थिव शरीर को लेकर केंद्र सरकार घबराई हुई है। स्वामी सानंद की मृत्यु के बाद से ही इस पूरे मामले में केंद्र सरकार सवालों के घेरे में है। वहीं ताजा घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार अब कटघरे में है, क्योंकि अनुयायियों को जीडी अग्रवाल के शव को सौंपने के नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश को तीन घंटे के भीतर सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश पर स्टे ले लिया गया.
दरअसल सानंद जी की मौत के बाद से ही अनुयायियों ने एम्स ऋषिकेश सवालों के घेरे में था। आरोप था कि जब सानंद को पुलिस ने धरनास्थल से उठाया था उस वक्त उनका स्वास्थ्य ठीक थे। लेकिन एक रात में ही इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। जिसके बाद एम्स प्रशासन ने किसी को लाश देने, यहां तक की अंतिम दर्शन तक से मना कर दिया था। जिसके बाद पार्थिव शरीर की मांग को लेकर याचिका मातृसदन आश्रम के उनके एक अनुयायी ने याचिका लगाई थी। 25 अक्तूबर को करीब डेढ़ बजे नैनीताल हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि 76 घंटे के लिए शव मातृ सदन में लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाए। वहीं फैसला आने के करीब छह घंटे बाद ही सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया. इस आदेश के बाद स्वामी सानंद के अनुयायी भोपाल चौधरी ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर सरकार हमें उनका शव क्यों नहीं देना चाहती, क्या कुछ ऐसा है जिसको सरकार छिपाना चाहती है।
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सानंद की मौत पर गहराया रहस्य
स्वामी सानंद की मौत किसी के गले नहीं उतरी। क्योंकि धरना स्थल पर कड़क आवाज के साथ मीडिया से बात करने वाले सानंद ने एम्स में एक रात में ही दम तोड़ दिया। जबकि कुछ घंटे पहले एम्स प्रशासन ने पत्र जारी करते हुए कहा था कि उनका स्वास्थ्य ठीक है। लेकिन अगले दिन उनकी मौत की ख़बर सुना दी।
पोस्टमार्टम भी खुद ही किया
सानंद का पोस्टमार्टम में एम्स ऋषिकेश के अंदर ही हुआ। मौत की ख़बर सुनने के बाद उनके अंतिम दर्शन और शव को देखने की किसी को अनुमति नहीं दी गई। एम्स में पुलिस का कड़ा पहरा लगाकर मीडिया और उनके समर्थकों को रोक दिया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट को भी सार्वजनिक नहीं किया गया। जिससे पता चल सके की उनकी मौत कैसे हुई है।
ऐसे हुई थी मौत
ऋषिकेश एम्स प्रशासन के मुताबिक, उनकी मौत कार्डियक अरेस्ट के चलते दोपहर करीब दो बजे के आस-पास हुई थी। एम्स प्रशासन के मुताबिक स्वामी सानंद पहले ही अपना शरीर एम्स, ऋषिकेश को दान किए जाने का संकल्प पत्र भर चुके थे, लिहाजा उनका शव एम्स में ही रखा गया है। समर्थकों को उनकी मौत की कहानी हजम नहीं हो रही है।
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संतों का बढ़ा गुस्सा
प्रो. जी डी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का निधन 11 अक्तूबर को हुआ था। दरअसल स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने अपना अंग दान के तहत अपना शरीर दान कर दिया था. लेकिन उनके अनुयायियों की मांग थी कि अंतिम दर्शन के लिए उनका शरीर उन्हें सौंपा जाए ताकि वे अपने गुरु का दर्शन कर सकें साथ ही अंतिम बार स्वामी सानंद को गंगा स्नान भी करवाया जा सके. अविरल गंगा की मांग को लेकर अनशन में बैठे सानंद के शव को उनके अनुयायियों को नहीं सौंपे जाने के बाद उनके समर्थकों के साथ संतों का भी गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
केंद्र सरकार पर सवाल
सानंद के शव को लेकर केंद्र सरकार इतनी सजग क्यों है। इसको लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं, उनका कहना है कि केंद्र सरकार का ऐसा कदम उठाने से सानंद की मृत्यु को स्वाभाविक नहीं माना जा सकता। केंद्र सरकार के मंत्री नितिन गडकरी इस मामले में कई बार एम्स ऋषिकेश के संपर्क में थे। जलपुरुष डॉक्टर राजेंद्र भी घंटों तक एम्स के बाहर उनके अंतिम दर्शन के लिए खड़े रहे। पुलिस ने घंटों के इंतजार के बाद उनको अंदर भेजा।
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निशाने पर नितिन गडकरी
स्वामी सानंद की मृत्यु के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी घिर गए हैं, सानंद की मृत्यु के दिन यानी 11 अक्टूबर को नितिन गडकरी ने गंगा सफाई अभियान को लेकर तीन ट्वीट किए. लेकिन स्वामी सानंद की मौत पर कुछ नहीं कहा. जबकि उनकी जानकारी में सारी बात थी। पीएम ने भी सानंद की मृत्यु पर दुख जताया था। राहुल गांधी ने भी ट्वीट किए थे।
पहले भी हो चुकी है दो संतों की मौत
प्रो. जीडी अग्रवाल यानी स्वामी सानंद से पहले भी गंगा के लिए अनशन कर रहे दो संतों को मौत हो चुकी है. दस साल तक केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेस ने वही रवैया अपनाया था जो अभी मोदी सरकार ने अपनाया.