पुणे: एलगार परिषद और भीमा-कोरेगांव जातीय हिंसा मामले में आरोपी तीन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ओर से दायर जमानत याचिका विशेष अदालत द्वारा खारिज कर जाने के बाद दो कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम अदालत के विशेष न्यायाधीश के. डी. वदाणे ने सुधा भारद्वाज, वर्नन एस. गोंजाल्विस और अरुण टी. फरेरा द्वारा दाखिल जमानत याचिका खारिज कर दी.
तीनों याचिकाकर्ताओं ने विश्रामबाग थाने में उनके खिलाफ दर्ज मामले में जमानत याचिका लगाई थी. याचिका खारिज करने का आदेश आने के तुरंत बाद गोंजाल्विस और फरेरा के वकीलों ने उनकी नजरबंदी की अवधि एक सप्ताह बढ़ाने की याचिका लगाई, लेकिन विशेष न्यायाधीश वदाणे ने इसकी भी इजाजत नहीं दी.
संयुक्त पुलिस आयुक्त शिवाजीराव बोडखे ने आईएएनएस को बताया, “जब उनकी याचिका अदालत द्वारा स्वीकार नहीं की गई तो हमने उनको (गोंजाल्विस और फरेरा) गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया है. अब हम भारद्वाज को गिरफ्तार करने की दिशा में काम कर रहे हैं.”
गोंजाल्विस और फरेरा को शनिवार को अदालत में पेश कर आगे की कार्रवाई के लिए उनकी रिमांड की मांग की जाएगी. इससे पहले इतिहासकार रोमिला थापर व अन्य द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार इन तीनों के अलावा दो अन्य सह-आरोपियों को नजरबंद रखा गया था.
भीमा-कोरेगांव दंगा की जांच के सिलसिले में पुणे पुलिस ने छापेमारी करके भारद्वाज, गोंजाल्विस, फरेरा, गौतम नवलखा (अब मुक्त) और पी. वरवर राव (वर्तमान में हैदराबाद में नजरबंद) को गिरफ्तार किया था. इससे पहले जून में पुणे पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन, सुधीर धावले, शोमा सेन, सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत और राणा जैकब को भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ्तार किया था.