नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई ने अपने हालिया लेख में बताया है कि तारिक अनवर के कांग्रेस से अलग होने की वजह सिर्फ सोनिया गांधी का विदेशी मूल नहीं था. दरअसल सोनिया ने जिस तरह सीताराम केसरी को बेइज्जत करके कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी से हटाया था, उसको लेकर तारिक बहुत आहत थे. और, शरद पवार की अगुवाई में हुई बगावत में तारिक अनवर दरअसल सोनिया को सबक सिखाने की नीयत से शामिल हुए थे. अब जबकि 19 साल बाद उन्होंने सोनिया के बेटे राहुल गांधी की सरपरस्ती में कांग्रेस में वापसी की है तो सियासी हलकों में उसके भी निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं.
राजीव गांधी के निधन के बाद जब सोनिया गांधी ने पार्टी का नेतृत्व करने से इंकार कर दिया तो कांग्रेस में गांधी परिवार की छाया से मुक्त एक दौर भी आया. लेकिन 1998 तक आकर सोनिया के विचार राजनीति के बारे में बदल गए. पार्टी की कमान संभाल रहे वयोवृद्ध नेता सीताराम केसरी को बहुत बेआबरू करके पार्टी दफ्तर से बेदखल किया गया. तारिक अनवर सीताराम केसरी के ख़ास आदमी माने जाते थे. बकौल राशिद किदवई खुद पवार सीताराम की चौकड़ी को ‘तीन मियां एक मीरा’ कहकर तंज कस्ते थे. तीन मियां के नाम पर इशारा तारिक अनवर के अलावा गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल की तरफ हुआ करता था.
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बहरहाल, साल 1999 की 15 मई को हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में सोनिया पार्टी के भीतर अपने खिलाफ बगावत से रूबरू हुई थीं. सबसे पहले पीए संगमा ने यह कर सोनिया को आश्चर्य में डाल दिया कि पार्टी उनके माता-पिता के बारे में जानना चाहती है. संगमा ने विदेशी मूल पर बीजेपी की तरफ से हो रहे हमलों का हवाला देकर अपनी बात कही थी. शरद पवार ने भी सोनिया के विदेशी मूल को लेकर हो रहे बीजेपी के हमलों पर फ़िक्र जताई. पवार ने कहा कि बीजेपी के सवाल का जवाब देना पार्टी नेताओं के लिए मुश्किल होता है. संगमा पहले ही काफी आग लगा चुके थे. उन्होंने कहा था की ‘जब लोग हमसे पूछते हैं कि प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आप लोगों को 980 मिलियन आबादी में कोई दूसरा चेहरा कांग्रेस को क्यों नहीं मिला तो जवाब नहीं सूझता है. मुझे लगता है कि उनकी बात सही है. ‘
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इसके बाद क्या है हुआ यह इतिहास में दर्ज है. शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाकर कांग्रेस के नेतृत्व यानि सोनिया गांधी को खुली चुनौती दी. 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके दलों की जीत हुई. पवार के गृह राज्य महाराष्ट्र में तो एनसीपी कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर की पार्टी रही. इधर शरद पवार ने राफेल डील पर कांग्रेस हमलों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव किया.
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एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कह दिया कि -मुझे नहीं लगता की राफेल घोटाले के नाम पर पीएम मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी पर सवाल उठाया जाना चाहिए. यह महाराष्ट्र की सियासत के शलाका पुरुष पवार का मोदी को ईमानदारी का अपनी तरफ से दिया गया सर्टिफिकेट था. इसके राजनीतिक मायने इसलिए ज्यादा हैं क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सीधे तौर पर पीएम मोदी को चोर कहते घूम रहे हैं. और, पवार फिलहाल तक बीजेपी के सहयोगी नहीं बल्कि विपक्षी धड़े का ही हिस्सा हैं.
तारिक अनवर ने मुखिया शरद पवार से इसी मुद्दे पर मतभेद जताकर एनसीपी पिछले दिनों छोड़ दी थी. कयास लगाए जा रहे थे कि तारिक अनवर कांग्रेस का दामन पकड़ सकते हैं. हुआ भी वही शुक्रवार को उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में आस्था जताते हुए अपनी पुरानी पार्टी में वापसी कर ली. तारिक अनवर बिहार से ताल्लुक रखते हैं मगर उनकी पहचान सिर्फ राज्य तक सीमित नहीं है. राजनीति के इस दौर में जबकि पूरा विपक्ष मोदी के चेहरे के खिलाफ लामबंद है और राहुल गांधी चेहरे की सियासत में मोदी के मुकाबले पिछड़े हुए हैं. तारिक अनवर ने राहुल गांधी की ब्रिगेड में शामिल होकर उन्हें मजबूती तो दी है. उनका अल्पसंखयक चेहरा कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.