विप्लव अवस्थीः राममंदिर भूमि विवाद पर केन्द्र में बैठी भाजपा पर संसद के रास्ते कानून या अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण का दबाव बढ़ता जा रहा है। भाजपा से जुड़े तमाम संगठन ही अब खुल के जमीन विवाद पर भाजपा को घेरने के साथ ही तुरन्त विधेयक लाकर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। अध्यादेश के जरिए अयोध्या स्थित रामजन्मभूमि परिसर के लिए भूमि अधिग्रहण करने की मांग भी पुरजोर से की जा रही है। लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि क्या केन्द्र में बैठी भाजपा इस अध्यादेश को ला सकती है और अगर अध्यादेश आता है तो वो कानूनी की कसौटी पर कितना खरा उतरता है। हमने बात की कानून के जानकारों से जिनकी इस अध्यादेश पर राय पढ़िए..
केंद्र पहले ही कर चुकी है जमीन का अधिग्रहण
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील दिनेश द्विवेदी का कहना है कि “ राममंदिर –बाबरी मस्जिद विवाद में अध्यादेश लाने का कोई तर्क समझ नहीं आता, इस अध्यादेश को लाने के लिए कोई इमरजेंसी अभी नहीं है जबकि संसद और उत्तर प्रदेश का विधानसभा का सत्र नजदीक ही है, अध्यादेश लाकर भी केन्द्र सरकार किस जमीन अधिग्रहण करने जा रही है जबकि 1992 में ही केन्द्र सरकार ने इसी भूमि का अधिग्रहण कर लिया था और भूमि पर सभी अधिकार केन्द्र सरकार के पास ही हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट उसी वक्त हरी झंडी दे चुका था, तो फिर परिवर्तन क्या हुआ है कि सरकार को अपनी ही जमीन पर दोबारा अधिग्रहण करने पर अध्यादेश लाना पड़े”. दिनेश द्विवेदी सवाल उठाते हुए कहते हैं कि “ क्या सरकार इस तरह का कानून बना सकती है कि हम अधिग्रहण की हुई जमीन पर मंदिर का निर्माण करेंगे जबकि देश की सर्वोच्च अदालत उस जमीन विवाद पर लगातार सुनवाई कर रही है और सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि जमीन विवाद में जिन जिन पक्षकारों को जमीन मिली है उसके हकदार है या नहीं”
संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 जिसमें धर्म की उपासन की स्वतंत्रता के बारे में कहा गया है उस का विश्लेषण करते हुए वरिष्ठ वकील कहते हैं कि “ लगातार संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 की दुहाई देते हुए कहा जा रहा है ये धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा है, जबकि दोनों अनुच्छेद ये भी कहते हैं कि सरकार धर्म से जुड़े किसी विषय पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती, अगर केन्द्र सरकार फिर भी अध्यादेश जैसा कदम उठाकर मंदिर या मस्जिद के निर्माण की तरफ बढ़ती है तो ये संविधान में दिये गये उपबंधों पर हस्तक्षेप करेगी” सवाल ये भी उठता है कि “ क्या इस तरह अध्यादेश लाना हमारे सामाजिक तानेबाने के पक्ष में या खिलाफ है, जिस पर निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगी”।
अध्यादेश लाने से पेचिदा हो जाएगा मामला-विराग गुप्ता
इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता का कहना है कि “ अगर संविधान के हिसाब से केन्द्र सरकार की शक्तियों के बारे में बात की जाऐ तो स्पष्ट है कि सरकार को अध्यादेश लाने में कोई रोक नहीं है, लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि क्या अध्यादेश लाने से मामला और पेचीदा हो जाता है या जमीन विवाद पर जो सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है वो और देरी की तरफ बढ़ जाऐगी, ये दोनों बातें अध्यादेश लाने के साथ ही जुड़ी हुई हैं।
विराग गुप्ता जमीन विवाद पर कानूनी सवाल उठाते हुए कहते हैं कि “ बेहद चौकाने वाली बात ये है कि 1993 में जमीन का अधिग्रहण करने के बाद केन्द्र सरकार जमीन पर रिसीवर के अधिकार में है जिसका साफ मतलब है कि केन्द्र सरकार जमीन पर किसी विवाद में सर्वोच्च अदालत में जा सकती है, अब सवाल ये पैदा होता है कि केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डालकर क्यों नहीं खुद इस मामले में दिन प्रतिदिन सुनवाई की मांग करती है जबकि जमीन के अधिग्रहण के बाद उसका अधिकार बन जाता है”।
‘अध्यादेश लाकर फंस जाएगी केंद्र सरकार’
वहीं दिल्ली हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील आर के चड्डा कहते हैं कि “ मान भी लीजिए कि सब बातों के होते हुए भी केन्द्र सरकार जमीन विवाद में अध्यादेश लाती है तो निश्चित तौर पर ये सुप्रीम कोर्ट के सामने चैलेंज होगा जिसमें केन्द्र सरकार को सबसे पहले जवाब देना होगा कि एक ऐसा धार्मिक मामला जो दशकों से विचाराधीन है , उस पर हस्तक्षेप क्यों कर रही है। साथ ही सवाल ये भी कि जब देश की सबसे बड़ी अदालत इस मामले को सुन रही है तब ऐसी इमरजेंसी की क्या स्थिति आ गयी है कि केन्द्र सरकार को अध्यादेश लाकर इसमें नई कानूनी पेंचदिगियां लानी पड़े”।
जनवरी में होगी विस्तार से सुनवाई
गौरतलब है कि 29 अक्टूबर को हुई सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले की सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है। जनवरी में होने वाली सुनवाई के वक्त ही कोर्ट ये तय करेगा कि सुप्रीम कोर्ट के कौन से जजों की पीठ ये सुनवाई करेगी साथ ही क्या जमीन विवाद पर दिन प्रतिदिन सुनवाई की जानी चाहिए या नहीं।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जमीन के मालिकाना हक के बारे में फैसला दिया था। कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को 3 हिस्सों में बांटा जिसमें राम लला (विराजमान), निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड शामिल हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर दी गईं।