सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक अध्यादेश में दखल देने से इंकार किया है. सीजेआई रंजन गोगोई ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि आपके पास तथ्य हो सकता है, लेकिन हम दखल नहीं देंगे. याचिका में तीन तलाक अध्यादेश को अंसवैधानिक करार देने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि ये अध्यादेश मनमाना और भेदभाव पूर्ण है. ये अध्यादेश असंवैधानिक है और समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. साथ ही ये धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के भी खिलाफ है. समस्त केरल जमियत उलेमा, यूपी के फैजाबाद के सैंयद फारुक और मोहम्मद सिद्धकी ने याचिकाएं दाखिल की है.
कोर्ट ने बताया था मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
गौरतलब है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐहतिहासिक फैसले में मुस्लिम समुदाय में 1400 सालों से चल रहे तीन तलाक(तलाक-ए-बिद्दत) के प्रचलन को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
जजों की पंचाट ने सुनाया था फैसला
पांच जजों की संविधान पीठ ने बहुमत के आधार पर दिए गए, इस फैसले में कहा गया कि तीन तलाक साफ तौर पर मनमाना है, क्योंकि इसके तहत मुस्लिम पुरुष वैवाहिक संबंधों को खत्म करने की इजाजत देता है वह भी संबंध को बचाने का प्रयास करने के बगैर. लिहाजा संविधान के अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत इस प्रथा पको संरक्षण नहीं दिया जा सकता.