लखनऊ: वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बन गया है। अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट (एचईआई) और इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूएशंस (आईएचएमई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर, 2019 रिपोर्ट के अनुसार, दूषित वायु धूम्रपान से भी ज्यादा मौतों का कारण बन रही है। वायु प्रदूषण के कारण 2017 में दुनियाभर में 49 लाख मौतें हुई हैं। कुल मौतों में 8.7 प्रतिशत योगदान वायु प्रदूषण का रहा।
भारत में वायु प्रदूषण के कारण 2017 में 12 लाख लोगों ने जान गंवाई है। यह मौतें आउटडोर (बाहरी), हाउसहोल्ड (घरेलू) वायु और ओजोन प्रदूषण का मिलाजुला नतीजा है। इन 12 लाख मौतों में से 6,73,100 मौतें आउटडोर पीएम-2.5 की वजह से हुईं, जबकि 4,81,700 मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के चलते हुईं। भारत के अलावा चीन में 12 लाख, पाकिस्तान में एक लाख 28 हजार, इंडोनेशिया में एक लाख 24 हजार, बांग्लादेश में एक लाख 23 हजार, नाइजीरिया में एक लाख 14 हजार, अमेरिका में एक लाख आठ हजार, रूस में 99 हजार, ब्राजील में 66 हजार और फिलीपींस में 64 हजार मौतों की वजह दूषित बना बनी है। वायु प्रदूषण दुनियाभर में बीमार लोगों की संख्या में बेहताशा वृद्धि कर रहा है।
ओजोन प्रदूषण पिछले एक दशक में बड़ा खतरा बनकर उभरा है। साल 2017 में ओजोन प्रदूषण के कारण दुनियाभर में करीब पांच लाख लोगों की समय से पूर्व मौत हुई। 1990 के बाद इसमें 20 प्रतिशत इजाफा हुआ है और ज्यादातर इजाफा पिछले दशक के दौरान हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण लोग समय से पूर्व मर रहे हैं और उनकी आयु 2.6 साल कम हुई है। आउटडोर पीएम के कारण जहां 18 महीने जीवन प्रत्याशा कम हुई, वहीं घरेलू प्रदूषण के चलते इसमें 14 महीने की कमी आई। यह कम जीवन प्रत्याशा के वैश्विक औसत (20 महीने) से बहुत अधिक है।
भारत में समय से पूर्व मृत्यु सांस की बीमारियों, हृदय की बीमारियों, हृदयाघात, फेफड़ों के कैंसर और मधुमेह से जुड़ी हैं और यह सीधे तौर पर वायु प्रदूषण से प्रभावित है। ओजोन प्रदूषण फेफड़ों की बीमारियों को बढ़ाता है। वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 49 प्रतिशत फेफड़ों की बीमारियों, 33 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर, मधुमेह और हृदय की बीमारियों का 22-22 प्रतिशत और हृदयाघात का योगदान 15 प्रतिशत रहा।
अध्ययन में पहली बार वायु प्रदूषण को टाइप-2 मधुमेह से जोड़ा गया है। भारत के लिए यह बेहद चिंता की बात है क्योंकि यह महामारी का रूप ले चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 में मधुमेह की आर्थिक लागत वैश्विक अर्थव्यवस्था का 1.8 प्रतिशत थी और यह सभी देशों के स्वास्थ्य तंत्र के लिए तेजी से बढ़ती चुनौती है। अध्ययनकर्ता काफी विचार-विमर्श और अनुसंधान के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पीएम-2.5 टाइप-2 मधुमेह के मामलों और मृत्यु को बढ़ाता है।
ग्लोबल बर्डन डिसीज 2017 के विश्लेषण में भी पीएम-2.5 को उच्च रक्तचाप और अत्यधिक मोटापे के बाद टाइप-2 मधुमेह से होने वाली मौतों के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बताया गया था। पीएम- 2.5 से होने वाले टाइप-2 मधुमेह से दुनियाभर में वर्ष 2017 में 2,76,000 मौतें हुईं। भारत में यह खतरा बहुत बड़ा है। यहां पीएम-2.5 के कारण 55,000 मौतें हुईं हैं। बीमारियों और खासकर टाइप-2 मधुमेह का खतरा कम करने के लिए व्यापक रणनीतियां बनानी होंगी।
विश्लेषण बताता है कि दुनिया की अधिकांश आबादी अस्वस्थ परिस्थितियों में जी रही है। 90 प्रतिशत से अधिक आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित हवा के मानकों के अनुसार हवा में सांस नहीं ले रही है।