अखिलेश यादव का ‘ त्याग ‘ उत्तर प्रदेश में बीजेपी की मुश्किल बढ़ा सकता है

Akhilesh Yadav's 'renunciation' can increase the difficulty of BJP in Uttar Pradesh

शेष नारायण सिंह: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने २०१९ में बीजेपी की जीत के सपने को एक ज़बरदस्त झटका दिया है . पिछले कुछ हफ़्तों में उत्तर प्रदेश में चार महत्वपूर्ण उपचुनाव हुए हैं . सभी चुनावों में बीजेपी को अखिलेश यादव की रणनीति के सामने हार का मुंह देखना पड़ा है .

चारों ही उपचुनाव महत्वपूर्ण माने जाते हैं . गोरखपुर और फूलपुर में तो राज्य के मुख्यमंत्री ,योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की हार ही मानी जा रही है जबकि कैराना और नूरपुर में हिंदुत्व की राजनीति के कमज़ोर पड़ने के संकेत आ रहे हैं .

उन उपचुनावों में हार के बाद बीजेपी के आला नेता इस उम्मीद में थे कि यह झटका अस्थाई है, २०१९ में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का समझौता नहीं होगा . इमकान था कि मायावती और अखिलेश यादव के बीच सीटों की संख्या को लेकर विवाद हो जाएगा और दोनों पार्टियां एकजुट होकर बीजेपी का मुकाबला नहीं करेंगी. अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी विरोधी वोटों के बिखराव से नरेंद्र मोदी के अभियान को फायदा होगा और बेडा पार हो जाएगा .

अखिलेश यादव के बयान के बाद उत्तर प्रदेश में बीजेपी विरोधी वोटों के बिखराव की सम्भावना अब बहुत ही कम हो गयी है . मैनपुरी की एक सभा में अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो कुछ सीटों का त्याग करके भी सपा-बसपा की एकता को बनाए रखा जाएगा. और २०१९ में राज्य में बीजेपी की हार सुनिश्चित की जायेगी .अखिलेश यादव के इस बयान के साथ ही उत्तर प्रदेश में संयुक्त विपक्ष की सम्भावना बहुत बढ़ गयी है .

बीजेपी विरोधी ताक़तों की एकता में कमजोरी तलाश रही सत्ताधारी पार्टी को मायावती के उस बयान से कुछ उम्मीद बढ़ी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि बहुजन समाज पार्टी किसी भी अन्य पार्टी से उसी हालत में सीटों का तालमेल करेगी जब उसके हिस्से में आने वाली सीटों की संख्या सम्मानजनक हो.

मायावती के इस बयान के बाद बीजेपी वैकल्पिक रणनीति पर काम करने लगी थी .पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में बीजेपी के कार्यकर्ता बसपा सुप्रीमो के बयान की प्रतियां बांटते देखे भी गए थे लेकिन अखिलेश यादव ने अपने हिस्से की सीटों की कुर्बानी की बात करके बीजेपी के हलकों में फिर से निराशा के भाव जगा दिए हैं.

अखिलेश यादव ने यह कहकर कि राज्य की जनता एकजुट हो गयी है और राजनीतिक पार्टियों के पास एक साथ होकर चुनाव लड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. एक राजनीतिक सन्देश भी दिया है . अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को अपने साथ कर लिया है और उनके बेटे को गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा उम्मीदवार बनाकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के घर में उनको शिकस्त दी थी. अब खबर यह है कि संजय यादव के साथ सपा गठबंधन बना रहेगा और निषाद पार्टी के अध्यक्ष ने तो यहाँ तक कह दिया है कि उनकी पार्टी को जौनपुर से भी टिकट चाहिए . उन्होंने जौनपुर से अपनी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में धनञ्जय सिंह के नाम की घोषणा भी कर दी है .

अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी के अलावा , कांग्रेस और अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोकदल को भी साथ ले लिया है . कैराना उपचुनाव में हालांकि उमीदवार मायावती की पसंद की थी लेकिन उसको राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव निशान दिया गया था . इस तरह से अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में ,अपना दल और ओम प्रकश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन कर चुकी बीजेपी को अखिलेश-मायावती गठबंधन से मुश्किलें पेश आ सकती हैं .

पिछले दिनों ओम प्रकाश राजभर भी बीजेपी से नाराज़ देखे गए हैं. उनकी नाराज़गी का कारण ऐसा है जिसके गंभीर राजनीतिक परिणाम हो सकते हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था . उन्होंने कहा था कि अगर पिछड़ी जाति के नेता, केशव प्रसाद मौर्य को मुख्यमंत्री बनाया गया होता तो बीजेपी के हाथों फूलपुर और गोरखपुर में उतनी अपमानजनक हार न लगी होती. उनका यह तर्क अगर आगे बढ़ाया गया तो बीजेपी को ज़बरदस्त नुकसान हो सकता है .

कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में २०१९ के लोकसभा के चुनाव के लिए जो मोर्चेबंदी तैयार हो रही है उसने सताधारी पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं . पार्टी के छुटभैया नेताओं के पार्टी की कमियाँ गिनाने वाले छिटपुट बयानों के मद्दे नजर मोदी के जादू के कमज़ोर होने की संभावना जोर पकड़ रही है .

बीजेपी के लिए जीत की संभावना का एक ही सहारा है . ज्यादातर नेता कहते हैं कि उनके पास जीत की निश्चित योजना है और बीजेपी के तत्कालीन महामंत्री और वर्तमान अध्यक्ष , अमित शाह ने जिस तरह से 2014 में उत्तर प्रदेश में जीत का झंडा फहराया था,उसी तरह इस बार भी सफलता उनकी पार्टी की ही होगी.


rajsattaexpresssलेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार व जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक हैं. यहाँ प्रकाशित विचार उनके निजी हैं


 

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