तलाक केस में हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, पति-पत्नी को साथ रहने के लिए मजबूर करना क्रूरता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक की एक एप्लीकेशन पर जरुरी फैसला सुनते हुए कहा है कि पति-पत्नी अगर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं हैं। वो साथ नहीं रहना चाहते तो उनको साथ रहने के लिए मजबूर करना किसी क्रूरता से कम नहीं है।

अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा है कि लम्बे समय तक एक दूसरे से दूर रहा रहे ऐसे कपल को एक साथ लेन की बजाय उनका तलाक कर देना जनहित में है। कोर्ट ने अपर प्रिंसिपल जज फैमिली कोर्ट गाजियाबाद के पति की तलाक अर्जी खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने दोनों के बीच हुए विवाह को डिस्पोज कर दिया।

कोर्ट ने स्थाई विवाह विच्छेद के बदले बदले में पति को तीन महीने में एक करोड़ रूपए पत्नी को देने का भी आदेश दिया। दरअसल, पति की इयरली इनकम दो करोड़ रुपए है। कोर्ट ने कहा यदि आदेश का पालन नहीं किया गया 6% इंट्रेस्ट देना होगा। कोर्ट ने यह आदेश अप्लीकेंट अशोक झा की पहली अपील को एसेप्ट करते हुए दिया।

जस्टिस एसडी सिंह और जस्टिस एकेएस देशवाल की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि दहेज उत्पीड़न के केस में पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट पेश की और याची अदालत से बरी कर दिया गया। दोनों ने ही एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए।

स्थिति यहां तक पहुंच गई कि समझौते की गुंजाइश खत्म हो गई और झूठे केस जबरदस्ती दर्ज करवाए गए। कोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि झूठे केस में फंसाना क्रूरता है। इसका पालन किया जाना सुनिश्चित होना चाहिए।

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