लखनऊ: यूपी में नाम बदलने के सियासत नई नहीं है, पहले भी सरकारों ने अपने एजेंड़े और वोट बैंक को खुश करने के लिए योजनाओं और जिलों के नाम बदले हैं. चाहे वो बसपा रही हो या सपा सबने नाम की सियासत की है. इसी परंपरा को दो कदम आगे बढ़ाते हुए योगी सरकार ने कैबिनेट बैठक में जब इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रखने का प्रस्ताव पास कराया तो सोशल मीडिया पर योगी को ट्रोल करने वालों का महाकुंभ लग गया. सोशल मीडिया में लोग तरह तरह के
मीम्स बनाकर योगी को चिढ़ाने में लगे हैं.
वहीं दूसरी तरफ धीरे-धीरे ब्यूरोक्रेसी में भी नाम बदलने को लेकर चर्चाएं शुरु हो गई हैं. शासन में तैनात अधिकारियों के मुंह से भले ही नौकरी की मजबूरी के चलते कुछ निकल नहीं रहा हो. लेकिन वो ऐसे पोस्ट को लाइक और कमेंट करके ही संतुष्ट हो
रहे हैं.
ऐसा ही एक पोस्ट यूपी के पूर्व आईपीएस दीपक के भट्ट ने डाली है. दीपक ने बिना किसी का नाम का जिक्र करते हुए कहा है कि ‘नाम बदलने से अगर मेरे जीवन में कोई बदलाव आता है तो मैं नाम बदल लूं. न मेरी सूरत बदलेगी न मेरी सीरत बदलेगी और न मेरे खून का रंग बदलेगा. हां नाम की बजाय अगर मेरी आर्थिक स्थिति में किसी पआकार का बदलाव हो सके तो मेरा जीवन स्तर बदल जाएगा. बहुतों ने बहुत सी गलतियां कि हैं, इसका मतलब ये नहीं की हम भी वही गलती दोहराते जाएं. उससे अच्छा हम उन गलतियों से सबक लेते हुए कुछ ऐसा करें की गरीबों की आर्थिक स्थिति सुधर सके, बेरोजगारों को रोजगार मिल सके, आम आदमी कपर महंगाई की मार कम हो सके तो शायद एक आदमी के जीवन में वास्तविक खुशी का माहौल आ सके.’ दीपक यहीं नहीं रुके उन्होने शेर के माध्यम से इशारों-इशारों में योगी को बच्चा तक कह दिया.
दीपक ने लिखा की..
ये वही बज़्म है, ये वही लोग हैं, ये तमाशे हैं देखे दिखाये हुए.
आप बच्चों के मानिन्द हैं खुशफहम, इन खिलौनों में खुद को भुलाए हुए.
दीपक के भट्ट का दूसरा पोस्ट
पूर्व आईपीएस ने एक और पोस्ट डाला और उसमें भी कई जिलों का नया नाम डालकर बदलने का सुझाव दिया. जैसे लखनऊ का लक्ष्मणपुरी, दिल्ली का हस्तिनापुर. पोस्ट में दीपक ने लिखा –
नोएडा से गौतम बुद्ध का क्या लेना देना. वो तो कभी गए ही नहीं. इसीलिए उसका नाम इंद्रप्रस्थपुरी होना चाहिए. हरियाणा का नाम कुरुक्षेत्र रख देना चाहिए. जितने भी शहर जिनके अंत में आबाद या गंज लगा हो उनमें मुस्लिमों के द्वारा दिए गए हैं, उन सभी के नाम बदल देने चाहिए वो चाहे शहर के नाम हों या मोहल्लों के हों. तभी भारतीय संस्कृति का विकास हो सकेगा. भले देश में आर्थिक गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई क्यों न हो. भले देश का आर्थिक विकास नाम पर चंद पूंजीपतियों का ही विकास हो और बाकि पूरा देश गरीबी और बेरोजगारी से जूझे लेकिन भारतीय संस्कृति के लिए गली कूंचों, शहर मोहल्लों के नाम बदलना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा हमारी संस्कृति दम तोड़ देगी.
विवाद के बाद हटाया पोस्ट
दीपक के भट्ट यूपी कैडर के आईपीएस थे और बीते साल ही रिटायर हुए थे. इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने पर उन्होने सरकार से सीधे पंगा ले लिया. योगी सरकार के खिलाफ फेसबुक पर पोस्ट डालने के कुछ ही देर में पोस्ट पर तेजी से कमेंट और लाइक्स का सिलसिला शुरु हो गाय. जमकर बहस शुरु हो गई, पोस्ट के स्कीन शॉट वायरल भी होने लगे. विवाद ज्यादा न बढ़े इसके लिए कुछ देर बाद ही पूर्व आईपीएस ने पोस्ट को हटा दिया. लेकिन तबतक कई भट्ट की ये पोस्ट सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बन चुकी थी.
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योगी से पहले इनलोगों ने भी की नाम की सियासत
नाम की सियासत पुरानी है, लेकिन बीते दो तीन दशक में इसने राजनीति में खूब जगह बनाई. 1996 के दौरान जब मायावती यूपी की सीएम थी बुंदेलखंड के चित्रकूट कर्वी नाम से मंडल बनाया था. जिसका नाम छत्रपति शिवाजी महाराजनगर रखा था. इसके अलावा महामाया नगर, ज्योतिबाफूले जैसे नाम जिला मुख्यालयों के रखे थे. जिसके बाद 2004 में आई मुलायम सिंह सरकार ने दोबारा पुराने नाम की घोषणा की. 2007 में जब मायावती वापस सत्ता में आईं
तो पुराना फैसला फिर से लागू कर दिया. सरकार गई और अखिलेश यादव ने सत्ता संभाली तो कई जिलों का नाम फिर से फैसला पलट दिया. खास बात ये कि अमेठी का नाम इस दौरान जमकर बदला गया. कभी छत्रपति शाहूजी नगर तो फिर अमेठी. अखिलेश ने इस दौरान माया के दूसरे जिलों के नाम भी बदलकर पुराने नामों को ही जारी रखा. हलांकि इस दौरान अखिलेश ने योजनाओं में कई बदलाव किए और समाजवादी जोड़कर उनको चलाया.
अखिलेश ने योजनाओं में जोड़े थे समाजवादी नाम
नामों को लेकर सपा और बसपा में खूब कंपटीशन देखने को मिला. बसपा जहां बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय का नारा दिए थी. वहीं अखिलेश सरकार ने मुलायम की सरकार में जहां जहां से समाजवादी शब्द हटाया गया, उनमें समाजवादी सबसे पहले जोड़ा. जैसे समाजवादी एम्बुलेंस सेवा, समाजवादी स्मार्टफोन योजना, समाजवादी पेंशन योजना, समाजवादी स्वास्थ्य बीमा योजना, समाजवादी नमक वितरण योजना, समाजवादी किसान बीमा योजना, समाजवादी युवा स्वरोजगार योजना, समाजवादी हथकरघा बुनकर पेंशन योजना, समाजवादी रोजगार योजना, समाजवादी आवास योजना और समाजवादी रिक्शा योजना शामिल हैं.