किसानों और बेरोजगारों का दर्द न समझना पड़ा बीजेपी को भारी

विश्वजीत भट्टाचार्य: मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को पराजय का सामना करना पड़ा। इसकी बड़ी वजह बने किसान और बेरोजगार. तीनों राज्यों में समाज के इस वर्ग ने बीजेपी से बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं.

उन उम्मीदों पर जब बीजेपी खरी नहीं उतरी, तो किसानों और बेरोजगारों ने उसे चुनावों में ठेंगा दिखा दिया। वहीं, इन वर्गों से जुड़े मुद्दों को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी जनसभाओं में जमकर उछाला और राज्यस्तरीय नेताओं के साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी के आभामंडल की रोशनी गुल कर दी.

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किसानों का दर्द न समझने का भुगता खामियाजा

बीजेपी ने भले ही किसानों के लिए फसल बीमा योजना का एलान किया, लेकिन जब किसान की फसल खराब हुई, तो उसे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कहीं 20 पैसे, तो कहीं 2 रुपए सरकारों से मदद के तौर पर मिले। कहीं प्याज ने किसान को रुलाया, तो कहीं टमाटर और लहसुन के उपज की लागत तक किसानों को नहीं मिली। सड़कों पर किसानों ने प्याज और टमाटर फेंककर अपना गुस्सा जताया, लेकिन इस नाराजगी को राज्यों की सरकारें समझ नहीं सकीं। मध्यप्रदेश के मंदसौर में फायरिंग में किसानों की मौत भी बड़ा मुद्दा बनी और शिवराज सरकार किसानों के इस गुस्से की आंधी में उड़ गई।

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किसानों की बदहाली इसी से समझी जा सकती है कि मध्यप्रदेश में खुद गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने विधानसभा में माना कि हर दिन औसतन तीन किसान और खेतिहर मजदूर खुदकुशी करते हैं। छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार के दौरान गृहमंत्री रहे रामसेवक पैकरा ने विधानसभा में बताया था कि 2015 से 30 जून 2017 तक 1271 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने जान दे दी। राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने भी माना था कि उनके दौर में 60 से ज्यादा किसानों ने सूबे में अपनी जान दे दी है।

बेरोजगारों ने भी किया काम तमाम

2013 में वसुंधरा राजे ने वादा किया था कि राजस्थान में बीजेपी की सरकार बनने पर 15 लाख लोगों को नौकरी दी जाएगी। जबकि, सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि 2014 से 2017 तक राज्य में सिर्फ 9 हजार 904 लोगों को नौकरी मिली। वसुंधरा राजे ने दावा किया कि स्किल डेवलपमेंट के जरिए राज्य में 16 लाख लोगों को रोजगार मिला। 3.25 लाख सरकारी नौकरी दी गई और 20 लाख लोगों ने मुद्रा योजना के तहत काम शुरू किया, लेकिन सीएजी ने इन दावों की भी हवा अपने रिपोर्ट में निकाल दी.

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बात करें मध्यप्रदेश में बेरोजगारी की, तो यहां 1.41 करोड़ युवा हैं और पिछले 2 साल में बेरोजगारों की तादाद 53 फीसदी पहुंच गई। दिसंबर 2015 में रोजगार दफ्तरों में 15.60 लाख बेरोजगारों का रजिस्ट्रेशन था। जो 2017 में बढ़कर 23.90 फीसदी हो गया।

मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का रुख करें, तो वहां भी बेरोजगारों की संख्या कम नहीं है। मार्च 2017 तक ही यहां के रोजगार दफ्तरों में 19 लाख 53 हजार 556 बेरोजगारों का रजिस्ट्रेशन था.

नतीजों का 2019 पर क्या होगा असर

तीन राज्यों में बीजेपी की सरकारों का सत्ता गंवाना ये साबित करता है कि उसकी केंद्र और राज्यस्तरीय नीतियों में खामियां हैं और जिन वादों को करके उसने सरकारें बनाईं और मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लंबे वक्त तक चलाईं, वे पूरी नहीं हुई हैं। केंद्र और राज्य में अपनी ही सरकारों के रहने के बावजूद विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की पराजय बीजेपी के लिए 2019 का रास्ता कठिन बना सकती है.

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साथ ही ये भी साबित हो गया है कि कांग्रेस पार्टी को चलाने वाले परिवार (सोनिया और राहुल) के खिलाफ जहर उगलना अब जनता को लुभाता नहीं है। किसानों को फसल की बढ़िया कीमत चाहिए, बेरोजगारों को रोजगार चाहिए और आम लोगों को बेहतर शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं की जरूरत है। अभी भी बीजेपी आलाकमान चेत गया तो ठीक, वरना 2019 लोकसभा चुनाव में उसे केंद्र से भी बाहर होना पड़ सकता है.

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