जो AAP से गए, वो काम से गए: केजरीवाल को छोड़ने वाले नेताओं का नहीं बन पाया करियर

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया है। गहलोत ने बीजेपी में अपनी आगे की राजनीतिक यात्रा शुरू करने का ऐलान किया है, और अब सियासी गलियारों में उनके बारे में यह चर्चा हो रही है कि वे बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। हालांकि, गहलोत अकेले नेता नहीं हैं, जिन्होंने केजरीवाल को छोड़कर दिल्ली की राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की है। अब तक करीब एक दर्जन से ज्यादा ऐसे नेता हैं जिन्होंने आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ा, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इन नेताओं में से कोई भी अपनी राजनीतिक यात्रा में खास सफलता हासिल नहीं कर पाया है।

योगेंद्र यादव: पार्टी छोड़ने के बाद खुद को नहीं संभाल पाए

2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के रणनीतिकार और बड़े नेता रहे योगेंद्र यादव ने केजरीवाल से मतभेदों के बाद पार्टी छोड़ दी थी। यादव की उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें राज्यसभा में भेजेगी, लेकिन उनके विचार और नीतिगत दृष्टिकोण के कारण उनका पार्टी से रास्ता अलग हो गया। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी बनाई, लेकिन वह भी सफल नहीं हो पाई। आज वे कांग्रेस के लिए प्रचार करते हुए मंचों पर नजर आते हैं, लेकिन उनके पास कोई बड़ा राजनीतिक पद नहीं है।

कुमार विश्वास: रिश्ते बिगड़े, सियासत से हो गए दूर

कुमार विश्वास, जो अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी में आए थे, एक समय पार्टी के तेजतर्रार नेताओं में शामिल थे, लेकिन 2017 में केजरीवाल से उनके रिश्ते खराब हो गए। 2018 में जब उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं मिला, तो उन्होंने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इसके बाद कुमार विश्वास राजनीति से अलग हो गए और अब वे राम कथा और कवि सम्मेलनों के जरिए लोगों के बीच पहुंचते हैं। उन्हें कोई सशक्त राजनीतिक भूमिका नहीं मिली है।

कपिल मिश्रा: बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन चुनाव हार गए

अरविंद केजरीवाल सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने 2019 में पार्टी छोड़कर बीजेपी जॉइन की थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें मॉडल टाउन से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे चुनाव हार गए। हालांकि, 2023 में उन्हें बीजेपी का दिल्ली उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया, लेकिन उनका राजनीतिक करियर फिर भी खास नहीं बन पाया।

अंजलि दमानिया: महाराष्ट्र में साइडलाइन

महाराष्ट्र में आम आदमी पार्टी की प्रमुख चेहरा रहीं अंजलि दमानिया ने 2015 में अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद उनका राजनीतिक करियर कहीं ठहर सा गया। वे पार्टी से बाहर होने के बाद किसी भी महत्वपूर्ण भूमिका में नहीं दिखीं और न ही उनका पुनर्वास हो सका।

पंकज पुष्कर: सियासत में गुमनाम

तिमारपुर से 2015 में विधायक चुने गए पंकज पुष्कर भी योगेंद्र यादव के करीबी थे, लेकिन जब यादव पार्टी से बाहर हो गए, तो पुष्कर भी पार्टी की मुख्यधारा से बाहर हो गए। 2020 के चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया और इसके बाद से वे सियासत में गुमनाम हो गए।

राजकुमार आनंद: दो पार्टियां बदलने के बाद भी नहीं मिली सफलता

केजरीवाल सरकार के मंत्री रहे राजकुमार आनंद ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले आम आदमी पार्टी छोड़ दी थी और बाद में बहुजन समाज पार्टी (BSP) जॉइन की। लेकिन वहां भी उनका मन नहीं लगा और वे 2024 में बीजेपी में शामिल हो गए। अब वे बीजेपी में अपनी नई भूमिका का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन राजनीतिक मैदान में उनकी स्थिति अभी भी अस्पष्ट है।

राजेंद्र पाल गौतम: कांग्रेस में भी अलग-थलग

दिल्ली सरकार के मंत्री रहे राजेंद्र पाल गौतम ने आम आदमी पार्टी को छोड़ने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए थे। हालांकि, कांग्रेस में भी उनका करियर ज्यादा आगे नहीं बढ़ सका। फिलहाल वे सीमापुरी से विधायक हैं, लेकिन उनके चुनाव लड़ने या किसी महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त होने की कोई चर्चा नहीं है।

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