नई दिल्ली: अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम सवाल पर फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर दिए गए फैसले को संवैधानिक बेंच में भेजने से इनकार कर दिया है. 1994 में इस्माइल फारूकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है. अदालत ने इस फैसले को बरकरार रखा है.
मुस्लिम पक्षकार इस मुद्दे संवैधानिक बेंच में भेजने की मांग कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद साफ हो गया है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और ये मामला बड़ी संवैधानिक बेंच को नहीं भेजा जाएगा. बता दें कि अयोध्या का राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. अयोध्या की जमीन किसकी है, इस पर अभी सुनवाई की जानी है.
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फैसले के क्या हैं मायने ?
अगर सुप्रीम कोर्ट इस केस को बड़ी संवैधानिक बेंच को भेजता तो अयोध्या विवाद पर फैसला टल सकता था. सुप्रीम कोर्ट के इस्माइल फारुकी वाले केस पर फिर से विचार ना करने के फैसले के बाद अयोध्या मामले की सुनवाई जारी रहेगी. अगर फैसला मुस्लिम संगठनों के पक्ष में आता तो यह हिंदू पक्षकारों के लिए झटका होता.
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ये है पूरा मामला
बता दें कि 1994 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है, इसके साथ ही राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था, ताकि हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें. 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है और इसके लिए मस्जिद अहम नहीं है.