अयोध्या नहीं ओरछा के राजा है भगवान राम, सदियों पहले ऐसे मिला था सिंहासन

जिस राम मंदिर को लेकर सियासत गर्मायी हुई है। टेंट में रखी मूर्तियों को भव्य मंदिर में रखने की मांग सालों से चल रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि बाबरी मस्जिद बनने से पहले ही अयोध्या से भगवान राम माता सीता के साथ कोसो दूर चले गए थे.

जहां आज भी वो राजा बनकर सदियों से राज कर रहे हैं। जहां आज भी राजा राम को हर साल पूरे धूमधाम से सैनिक सलामी दी जाती है।

एमपी के ओरक्षा के राजा हैं राम

जी हां हम उन्ही राम की बात कर रहे हैं, जिनके लिए पूरे देश में उबाल है. नेता सियासत कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राजाराम अपने भव्य मंदिर में राज कर रहे हैं. राजा राम का मंदिर मध्यप्रदेश के ओरछा में स्थित है. जो यूपी और एमपी की सीमा में झांसी के पास पड़ता है. जहां पर भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बना है.

राजा रानी में हुई थी तकरार 

दरअसल 15वीं शताब्दी में ओरछा में राजा महाराज मधुकरशाह का राज था। जो ‘कृष्णभक्त’ थे और उनकी महारानी कुंअर गनेश ‘रामभक्त’ थी। एक दिन रानी और राजा के बीच अपने दो आराध्य देवों की प्रशंसा को लेकर जमकर शास्त्रार्थ हुआ था। राजा ने महारानी कुंअर गनेश को चुनौती देते हुए कहा कि अगर अपने आराध्यदेव की इतनी भक्त हो, तो अपने राम को अयोध्या जाकर ले क्यों नहीं आती। जिसके बाद अपने पति से अपने इष्ट देव को अयोध्या से लेकर आने का प्रण ले लिया। साथ ही घोषणा की, कि वो अब अपने इष्ट देव को लेकर आने में सफल नहीं हुई तो जिंदा वापस नहीं आएंगी।

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सरयू किनारे की थी घोर तपस्या

महारानी कुंवर गनेश आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष 12 वि.स. 1630 को अयोध्या के लिए चल पड़ी। जहां सरयू नदी के किनारे घोर तपस्या करने बैठ गई। कई महीने की तपस्या के बाद जब भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, तो उन्होंने सरयू नदी में प्राण त्यागने के लिए छलांग लगा दी। तभी एक वृद्ध साधु महात्मा ने महारानी को बचाया और प्राण त्यागने का कारण पूछा। महारानी कुंअर गनेश ने अपने पति  को दिए बचन के बारे में विस्तार से बताया। जिसके बाद वृद्ध महारानी कुंअर गनेश को अपने साथ ले गया और (रामजन्म भूमि से निकालकर गुप्त स्थान पर सुरक्षित रखी बाबर के आक्रमण से पहले की) अयोध्या के सरयू नदी के किलाधाट के तलघर से रामजन्म भूमि से लाकर सुरक्षित रखीं भगवान राम, जानकी और लक्ष्मण की प्रतिमाएं महारानी कुंअर गनेश को सौंप दी।

साधू संतों के साथ पहुंची ओरछा

ओरछा के मंदिर में लगे एक शिला लेख के मुताबिक, ‘मधुकरशाह महाराज की रानी कुंअर गनेश’ अवधपुरी से ओरछा लायीं, ‘कुंअर गनेश‘ लेख के मुताबिक वि.सं. 1630 श्रावण शुक्ल पंचमी के पुख्य नक्षत्र में महारानी अवधपुरी से रवाना हुईं और चैत शुक्ल नवमी वि.स. संवत 1631 अर्थात सोमवार सन् 1574 में ओरछा पहुंचीं थी। उनकी टोली में महिलाओं के साथ साधु संत भी थे।

आज भी दिया जाता है गार्ड ऑफ ऑनर

रानी ने पति से किए गए वचन को पूरा करने के बाद भगवान राम को दिए गए वचन के बारे में बताया जिसके बाद महाराजा ने भगवान राम का राजतिलक करने के बाद भगवान श्रीराम को ओरछा का राज्य सौंप दिया था और तभी से भगवान श्रीराम ओरछा के राजा हैं और रामराजा के नाम से विख्यात हो गए। पुरानी परम्परा के अनुसार भगवान श्रीराम को प्रतिदिन सुबह और शाम सिपाहियों द्वारा उन्हें ‘‘गार्ड आफ ऑनर‘’ देने की परम्परा का पालन आज भी राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है।

महाराजा ने किया था राजतिलक

बुंदेलखंड में ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकरशाह को भगवान श्रीराम के पिता और महारानी गणेश कुंअर को मां का दर्जा प्राप्त है। शास्त्रों के मुताबिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पिता महाराज दशरथ का वचन धर्म निभाने के दौरान निधन हो गया था और उनका वहां राजतिलक नहीं हो सका था। तब ओरछा के तत्कालीन शासक मधुकर शाह और महारानी गणेश कुंअर ने माता-पिता होने का धर्म निभाते हुए ओरछा में भगवान श्रीराम का राजतिलक कर पिता होने का दायित्व पूरा कर ओरछा नगरी को राजतिलक में भेंट कर दी थी और तभी से उनके वंशज इस परम्परा को निभाते चले आ रहे हैं।

कनक भवन
कनक भवन

जनकपुर कनक भवन जैसा है मंदिर   

भगवान श्रीराम को दिये गए वचनों के अनुरूप ओरछा के रामराजा मंदिर की वास्तुकला और नक्शे के समान ही राजा मधुकरशाह ने अयोध्या मे कनक भवन मंदिर और नेपाल के जनकपुर मे नोलखा मंदिर का निर्माण कराया था। इन मंदिरों की देखभाल और सेवा के लिये कुछ गांव खरीदे गए थे और उनकी मालगुजारी तथा आय मंदिर को भेंट की जाती थी। अयोध्या के कनक भवन मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आज भी टीकमगढ़ के पूर्वशासक मधुकरशाह द्वितीय हैं।

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देश विदेशों से पर्यटक आते हैं दर्शन करने

उत्तर भारत के मंदिरो मे ‘‘रामराजा मंदिर ओरछा‘’ देश के अत्याधिक धनी मंदिरों मे विख्यात है। प्राचीन समय अपनी स्थापना से अब तक भगवान को भेट किए गए अनेक तरह के सोने, चांदी के रत्नों से जड़े हुए सैंकडों आभूषण मंदिर में विशाल चार बक्सों मे अकूत सम्पत्ति के रूप में जमा हैं।

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