बनारस का नाम आते ही दिमाग में जो सबसे पहले तस्वीर बनती है, वो है काशी विश्वनाथ का मंदिर, गलियों में घूमते बाबूजी, और चाय के कप में बसी बनारस की सोंधी-सोंधी खुशबू। लेकिन अब एक और चीज है जो बनारस की पहचान बन चुकी है, वो है बनारस का मशहूर लाल पेड़ा। ये मिठाई जितनी स्वादिष्ट है, उतनी ही इसका इतिहास भी दिलचस्प है। वैसे तो आप बनारस के हर कोने में ये पेड़ा खा सकते हैं, लेकिन असली लाल पेड़ा वो है जो यूपी कॉलेज के कैंपस में बनता है। इस पेड़े ने न सिर्फ बनारस, बल्कि देश-विदेश के कई नेताओं और सेलिब्रिटीज का दिल भी जीता है। तो चलिए जानते हैं कि ये लाल पेड़ा इतना खास क्यों है, और इसकी कहानी क्या है?
बनारस का लाल पेड़ा: इतिहास से लेकर आज तक
लाल पेड़े की शुरुआत हुई थी 113 साल पहले, बनारस के उदय प्रताप कॉलेज से। ये वही कॉलेज है जो बनारस की सबसे पुरानी और मशहूर शिक्षा संस्थाओं में से एक है। इस कॉलेज के संस्थापक थे राजर्षि उदय प्रताप सिंह, जिनके दिमाग में एक आइडिया आया था—”क्यों न छात्रों को शुद्ध और स्वादिष्ट मिठाइयां मिलें?”
इसके लिए उन्होंने कॉलेज कैंपस में मिठाई की दुकान खोलने की इजाजत दी और यहाँ के हलवाई, लालता और बसंता यादव को इस दुकान का जिम्मा दिया। ये दोनों ही हलवाई मिलकर इस खास लाल पेड़े को बनाने की विधि ढूंढते हैं। अब इस दुकान की जिम्मेदारी उनके पोते, जय सिंह यादव संभालते हैं, और यही लाल पेड़ा आज भी उस पुराने तरीके से तैयार होता है जो अब भी लोगों को बहुत पसंद आता है।
लाल पेड़ा का जादू
लाल पेड़ा बनाने का तरीका कुछ ऐसा है कि उसके स्वाद का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। सबसे पहले तो इसमें खोया और चीनी को एक खुले बर्तन में डाला जाता है और फिर उसे तेज आंच पर पकाया जाता है। बीच-बीच में घी डाला जाता है, और फिर उसे लगातार हिलाते हुए एक समान लाल-भूरा रंग आने तक पकाया जाता है। जब यह तैयार हो जाता है तो इसकी बनावट चिकनी और मुलायम होती है, जिससे इसकी खासियत और भी बढ़ जाती है।
बनारस में एक चीज़ खास है—यह शहर धीमे-धीमे चलता है, जैसे यह पेड़ा बनता है। उसकी खुशबू जब हवा में घुलती है, तो पूरा माहौल जैसे “बनारसी” हो जाता है। इसे बनाते वक्त जो आंच पर खोया भूना जाता है, उसकी सोंधी खुशबू बनारस के हर कोने में फैल जाती है, और यहीं से इसकी पहचान बन जाती है।
राजनीति से जुड़े नाम और लाल पेड़ा
इस पेड़े का स्वाद केवल बनारस के लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कई बड़े नामों को भी दीवाना बना चुका है। जब हम बनारस के मशहूर लाल पेड़े की बात करते हैं, तो इसमें केदारनाथ सिंह जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर, और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम आता है।
खासकर केदारनाथ सिंह तो इस पेड़े के ऐसे दीवाने थे कि वह अक्सर कहा करते थे, “गुरू जवन मजा बनारस में, उ न पेरिस में न फारस में,” और ये बात बिल्कुल सही है, क्योंकि बनारस का लाल पेड़ा वाकई कुछ ऐसा है जो एक बार खा लेने के बाद हमेशा याद रहता है।
लाल पेड़ा की खास पहचान
जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने भी इस लाल पेड़े का स्वाद लिया था। वे इसे अपने छात्र जीवन के दिनों से याद करते थे, जब वे इस मिठाई के दीवाने हुआ करते थे। वहीं, चंद्रशेखर भी इस मिठाई के शौकिन थे और अपने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने इसे खूब खाया।
आजकल लाल पेड़ा को GI (Geographical Indication) टैग भी मिल चुका है, जो यह साबित करता है कि यह पेड़ा सिर्फ बनारस में ही नहीं, बल्कि पूरे देश और दुनिया में मशहूर हो चुका है। पीएम मोदी ने इस पेड़े को बनारस की सरहद से बाहर निकाल कर उसे पूरे देश में फैलाया है। बनारस के अमूल प्लांट से अब यह पेड़ा देश-विदेश में पहुंच रहा है, और यह बनारस के एक अहम प्रतीक के रूप में उभर कर सामने आया है।
एक मीठा इतिहास
लाल पेड़े की एक और दिलचस्प कहानी है, जो एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह से जुड़ी हुई है। जब वे यूपी कॉलेज के छात्र रहे थे, तब एक बार उन्होंने यह पेड़ा खाया, और बस! वे अपनी भावनाओं को रोक नहीं सके और फूट-फूट कर रो पड़े। उन्हें अपने छात्र जीवन की याद आ गई, और यह मिठाई उनके लिए सिर्फ एक स्वादिष्ट भोजन नहीं, बल्कि उनके पुराने दिनों की याद बन गई।
बनारस के इस पेड़े की खासियत यह है कि इसे न सिर्फ त्योहारों में, बल्कि विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समारोहों में भी खासतौर पर परोसा जाता है। बाबा विश्वनाथ से लेकर संकट मोचन तक, हर धार्मिक स्थल पर इसका भोग अर्पित किया जाता है।
लाल पेड़ा क्यों है खास?
लाल पेड़ा बनाने की विधि में जो खास बात है, वह इसका दानेदार खोया है, जो इसे बाकी पेड़ों से अलग बनाता है। इसके अलावा, चीनी और खोया को अच्छी आंच पर पकाते वक्त जो स्वाद आता है, वह इसे और भी खास बना देता है। इसके साथ-साथ यह मिठाई पूरे देशभर में सबसे ताजगी और शुद्धता के साथ बनती है, जो इसके स्वाद को एक नया आयाम देती है।
आजकल यह पेड़ा 15 से 20 दिन तक खराब नहीं होता, इसलिए यह आसानी से बड़े समारोहों और त्योहारों में भेजा जा सकता है। जब कोई खास अवसर होता है, तो इस पेड़े को भेजकर लोगों के दिलों में जगह बनाई जाती है।
बनारस का लाल पेड़ा: एक आइकन
बनारस का लाल पेड़ा अब केवल एक मिठाई नहीं, बल्कि इस शहर का एक आइकन बन चुका है। यह मिठाई न सिर्फ वहां के स्थानीय लोगों का प्रिय है, बल्कि इससे जुड़े हुए इतिहास और लोगों की यादें भी इसे और खास बना देती हैं। हर कोई जो बनारस आता है, वह इस पेड़े का स्वाद जरूर लेता है, और इसे खाकर वो शहर की ओर एक नया नजरिया अपना लेता है।