बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा, ममता बनर्जी के अचानक मुखर होने के पीछे ये 3 बड़ी वजहें

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा के बाद अचानक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुखर होना सबके लिए चौंकाने वाला है। ममता ने हाल ही में बंगाल विधानसभा का सत्र बुलाकर बांग्लादेश में यूएन शांति सेना की तैनाती की मांग की है, जो कि शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद पहली बार भारतीय विधानसभा में आधिकारिक रूप से उठाया गया है। ममता के इस बयान ने दिल्ली से लेकर कोलकाता तक हलचल मचा दी है। ममता ने कहा कि “मैं अब चुप नहीं रह सकती, अब केंद्र को इस पर फैसला लेना ही होगा।”
लेकिन सवाल यह है कि ममता को अचानक बांग्लादेश के मुद्दे पर इतना मुखर होने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे कई बड़ी वजहें हैं, जिनका असर सिर्फ बंगाल की राजनीति पर ही नहीं, बल्कि पूरे देश पर भी पड़ सकता है।

1. बांग्लादेश में हिंसा का असर बंगाल की सरकार पर

बांग्लादेश में जब भी बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है, उसका असर बंगाल की सरकार पर पड़ा है। 1964 में जब बांग्लादेश (तब के पाकिस्तान) में हिंसा फैली, तो इसका असर बंगाल में कांग्रेस सरकार पर पड़ा। उस समय बांग्लादेश से बड़ी संख्या में शरणार्थी बंगाल में पहुंचे थे, जो चुनावों में कांग्रेस के लिए बड़ी समस्या बन गए थे। परिणामस्वरूप, 1967 में कांग्रेस चुनाव हार गई और बंगाल में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
1975 में बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश में फिर से हिंसा का दौर शुरू हुआ। तब भी बड़ी संख्या में लोग बंगाल में शरण लेने पहुंचे थे। 1977 में बांग्लादेश से आए शरणार्थियों का मुद्दा सीपीएम के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा बना, और उन्होंने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका। ऐसे में ममता को डर है कि बांग्लादेश में बढ़ती हिंसा से बंगाल में भी शरणार्थियों का मुद्दा गरम हो सकता है, जो उनकी पार्टी के लिए बड़ा राजनीतिक संकट बन सकता है।

2. हिंदुत्व का मुद्दा और बीजेपी की बढ़ती सक्रियता

बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा, खासकर शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद, ममता के लिए एक और चिंता का कारण है। पश्चिम बंगाल में हिंदू आबादी करीब 70 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की आबादी लगभग 28 प्रतिशत है। 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ममता पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया था, लेकिन ममता ने बीजेपी को बड़े अंतर से हराया था।
अब बीजेपी बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा को एक बड़ा मुद्दा बना रही है, और ममता को डर है कि अगर वह इस मुद्दे पर चुप रही तो बीजेपी इसका फायदा उठा सकती है। ममता ने इस डर से पहले ही बांग्लादेश के मुद्दे को केंद्र के पाले में डाल दिया है, ताकि उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रहे।

3. बंगाल में संघ का बढ़ता प्रभाव

बंगाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। 2011 में बंगाल में संघ की सिर्फ 511 शाखाएं थी, जबकि 2023 में यह संख्या करीब 3,000 तक पहुंच गई है। संघ बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लगातार मुखर है, और इसका असर बंगाल में बीजेपी की बढ़ती ताकत पर पड़ रहा है। ममता को लगता है कि अगर वह इस मुद्दे पर चुप रहती हैं, तो यह सीधे उनके राजनीतिक करियर को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसलिए ममता ने विधानसभा सत्र बुलाकर बांग्लादेश के मामले में केंद्र से तात्कालिक दखल की मांग की है। ममता का मानना है कि यदि उन्होंने इस मुद्दे को उठाया तो बीजेपी को बैकफुट पर धकेला जा सकता है, और बंगाल में उनके खिलाफ हो रहे संघ के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है।

ममता की रणनीति

ममता ने बांग्लादेश के मुद्दे पर बीजेपी को बैकफुट पर लाने के लिए अपनी रणनीति तैयार की है। वह इस मुद्दे पर अकेले बात करेंगी, और पार्टी के नेता उनके दिशा-निर्देशों के मुताबिक ही बयान देंगे। टीएमसी सुप्रीमो ने पार्टी नेताओं को निर्देश दिए हैं कि वे इस मामले पर सिर्फ ममता के बयान को दोहराएंगे और किसी एक पक्ष की पैरवी से बचेंगे।
इसके अलावा, ममता बंगाल में बीजेपी के नेताओं को भी घेरने की कोशिश कर रही हैं। विधानसभा में उन्होंने बीजेपी के नेताओं से पूछा कि “क्यों नहीं स्थानीय नेता केंद्र से इस पर बयान जारी करने की सिफारिश करते?”

18 महीने बाद बंगाल में विधानसभा चुनाव

अब बंगाल में विधानसभा चुनाव होने में केवल 18 महीने का वक्त बचा है। 2026 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव ममता और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला होंगे। ममता अपनी पार्टी को चौथी बार सत्ता में लाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि बीजेपी पहली बार बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतर चुकी है।
बंगाल की विधानसभा में 294 सीटें हैं, और सरकार बनाने के लिए 148 सीटों की जरूरत होती है। चुनावी मुकाबला कड़ा होगा, और ममता के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक संकट हो सकता है, खासकर अगर बांग्लादेश का मुद्दा चुनावी रणनीति में बड़ा मोड़ लेता है।
ममता की कोशिश है कि वह इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरकर अपनी राजनीति को मजबूत करें, और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही हिंसा को लेकर केंद्र सरकार से सख्त कदम उठाने की मांग करें।

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