जब बुरा वक्त आता है तो इंसान की सोच भी उल्टी चलने लगती है। कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों बांग्लादेश का नजर आ रहा है। साल 1971 में भारत ने ही उसे पाकिस्तान से आजादी दिलाई थी। आजाद होने के बाद भारत ने बांग्लादेश को न सिर्फ राजनीतिक मदद दी, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में भी बड़ा रोल निभाया। आज भी बांग्लादेश की इकोनॉमी कई मामलों में भारत पर टिकी हुई है। लेकिन अब बांग्लादेश की सरकार जाने किस सोच के साथ भारत के विरोधी देशों चीन और पाकिस्तान के करीब जाती दिख रही है।
बांग्लादेश की सरकार, जिसकी कमान इस वक्त मोहम्मद यूनुस के पास है, पिछले कुछ समय से चीन और पाकिस्तान के साथ लगातार आर्थिक समझौते कर रही है। इन समझौतों को लेकर भारत में नाराजगी देखी जा रही है। भारत को लग रहा है कि यूनुस का पाकिस्तान और चीन के साथ ज्यादा करीबी बढ़ाना बांग्लादेश की आज़ादी और खुदमुख्तारी के लिए ठीक नहीं है।
भारत ने इस बात को लेकर बांग्लादेश से अपनी चिंता भी जाहिर की है। भारत की ओर से साफ तौर पर कहा गया है कि बांग्लादेश को अपने सभी पड़ोसियों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाकर चलना चाहिए और किसी एक देश से जरूरत से ज्यादा नजदीकी से बचना चाहिए। हालांकि, अभी तक बांग्लादेश की ओर से भारत के साथ रिश्ते सुधारने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की गई है।
भारत ने बंद की ट्रांस-शिपमेंट सुविधा
पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बावजूद न तो यूनुस और न ही उनके देश की तरफ से कोई ठोस या सकारात्मक कदम उठाया गया। इस बात से नाराज होकर भारत ने पहला बड़ा फैसला लेते हुए बांग्लादेश के साथ व्यापारिक सीमाएं बंद कर दीं।
इस कदम से बांग्लादेश को करीब 6 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। दरअसल, बांग्लादेश भारत की ट्रांस-शिपमेंट सुविधा का इस्तेमाल करके अपने सामान को मध्य पूर्व, यूरोप और अन्य देशों तक पहुंचाता था।
भारत पर इतनी निर्भरता के बावजूद यूनुस हाल ही में चीन दौरे पर गए और वहां हमारे पूर्वोत्तर क्षेत्र को लेकर कुछ आपत्तिजनक बातें कह दीं। उन्होंने कहा कि भारत को समुद्र तक पहुंचने के लिए बांग्लादेश पर निर्भर रहना पड़ता है।
6.5 हजार किमी की है भारत की समुद्री सीमा
चीन में यूनुस के बयान पर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सख्त प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि भारत के पास 6,500 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा है और बंगाल की खाड़ी के रास्ते वो BIMSTEC देशों की भरपूर मदद करता है। जयशंकर ने ये भी बताया कि भारत का उत्तर-पूर्वी हिस्सा अब एक अहम कनेक्टिविटी हब बनता जा रहा है। यहां पर सड़कें, रेल लाइनें, जलमार्ग, बिजली की ग्रिड और पाइपलाइन का मजबूत जाल बिछाया जा रहा है, जिससे पूरे क्षेत्र को आपस में जोड़ा जा सके।
भारत के ऊपर निर्भर बांग्लादेश
बांग्लादेश इस वक्त भारत से टकराव की राह पर है, जबकि भारत उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साथी है। दोनों देशों के बीच करीब 8 अरब डॉलर यानी 70 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होता है। वहीं, बांग्लादेश अपने देश के विकास और स्थिरता के लिए विदेशी पैसों पर काफी हद तक निर्भर रहता है। लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं। भारत के खिलाफ बढ़ती नाराज़गी के बीच दोनों देशों की सीमाएं प्रभावित हो रही हैं। सीमा पर कस्टम क्लियरेंस में दिक्कतें आ रही हैं और सुरक्षा निगरानी भी पहले से ज्यादा बढ़ा दी गई है। इन वजहों से व्यापार पर असर पड़ने लगा है।
कनेक्टिविटी बढ़ाने के सभी प्रोजेक्ट अटके
भारत और बांग्लादेश के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए जो कई योजनाएं शुरू हुई थीं, उन्हें फिलहाल रोक दिया गया है। पिछले साल जून से दोनों देशों के बीच चलने वाली सार्वजनिक परिवहन सेवाएं भी बंद हैं। इसका असर सीधे उन व्यापारियों पर पड़ा है जो सीमा पार सामान भेजते थे। इसके अलावा, बांग्लादेश के जो लोग भारत में इलाज कराने के लिए आते थे, उन्हें भी अब काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि बांग्लादेश के यूनुस कई बार कह चुके हैं कि भारत के साथ उनके देश के रिश्तों में कोई बड़ी दिक्कत नहीं है, लेकिन जब बात उनकी अर्थव्यवस्था की आती है तो वह भारत को जिम्मेदार ठहराते नजर आते हैं। इससे साफ है कि भारत से जुड़ी पाबंदियों का असर उनके देश के व्यापार पर जरूर पड़ा है।
यूनुस खान चल रहे बर्बादी की रह पर
बांग्लादेश सरकार और यूनुस खान एक तरफ दुनिया को यह बताने में लगे हैं कि उनके और भारत के रिश्ते मजबूत हैं और उनमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन दूसरी तरफ, उनके कुछ कदम ऐसे हैं जो भारत के विरोध जैसे लगते हैं। ताजा मामला यह है कि बांग्लादेश ने पाकिस्तान से जेएफ-17 थंडर लड़ाकू विमान खरीदने की इच्छा जताई है। ये विमान पाकिस्तान और चीन ने मिलकर बनाए हैं।
बांग्लादेश को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उसकी ज़्यादातर सीमाएं भारत से जुड़ी हुई हैं, और केवल दक्षिण की ओर बंगाल की खाड़ी है। ऐसे में अगर रिश्तों में दूरी बढ़ती है, तो इसका असर सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि कई और पहलुओं पर भी पड़ सकता है। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी साफ शब्दों में कह दिया है कि अब फैसला बांग्लादेश को ही करना है कि वह भारत के साथ अपने रिश्ते कैसे रखना चाहता है।