बसंत पंचमी (Basant Panchami) का त्योहार भारत में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है, और हर राज्य में इसे अपने खास तरीके से मनाने की परंपरा है। यह दिन खासतौर पर ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा के लिए जाना जाता है। बसंत पंचमी की पूजा में हर जगह के अलग-अलग रीति-रिवाज और सांस्कृतिक विशेषताएं देखने को मिलती हैं। इस दिन का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यह मौसम के बदलाव, वसंत ऋतु के आगमन और नूतन ऊर्जा का प्रतीक भी है। तो आइए जानते हैं कि बसंत पंचमी को भारत के अलग-अलग हिस्सों में कैसे मनाया जाता है।
हिमाचल प्रदेश में रथ यात्रा
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बसंत पंचमी का आयोजन एक विशेष रथ यात्रा के रूप में होता है। यहां भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा निकालकर इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस यात्रा का ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि भगवान रघुनाथ को 1651 में अयोध्या से कुल्लू लाया गया था, और तब से यह परंपरा यहां निभाई जा रही है। कुल्लू में इस दिन भरत मिलाप की प्रथा भी निभाई जाती है। कुल्लू के 40 दिन तक चलने वाले होली मेले में यह रथ यात्रा प्रमुख आकर्षण होती है।
पश्चिम बंगाल में सरस्वती पूजा
पश्चिम बंगाल में बसंत पंचमी का दिन विशेष रूप से सरस्वती पूजा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को ‘विद्या दिवस’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन छात्र और कलाकार देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। इस दिन छात्रों के लिए खास महत्व है, और वे इस अवसर पर अपनी किताबों, पेन और अन्य अध्ययन सामग्री को देवी के सामने रखकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। महिलाएं पीली साड़ी पहनती हैं और पुरुष धोती-कुर्ता पहनते हैं। बंगाल में इस दिन को सामूहिक रूप से मनाने की परंपरा है। देवी सरस्वती के पंडाल सजाए जाते हैं और गेंदा, पलाश और बेल के पत्तों से पूजा अर्चना होती है। शाम को देवी सरस्वती की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, और भव्य जुलूस निकलता है।
पंजाब और हरियाणा: पतंगबाजी का मेला
पंजाब और हरियाणा में बसंत पंचमी को खासतौर पर पतंग उड़ाने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बच्चे, बड़े और महिलाएं सभी मिलकर आकाश में रंग-बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं। यह प्रतियोगिता जैसे हो जाती है, जहां हर कोई अपनी पतंग को दूसरों से ऊपर उड़ाने की कोशिश करता है। इस दिन लोग पारंपरिक पंजाबी पहनावे में होते हैं और बसंती रंगों में रंगी हुई पतंगे आकाश को खूबसूरत बना देती हैं। पंजाब में इस दिन को ‘वसंत उत्सव’ के रूप में मनाते हुए खासतौर पर गिद्दा नृत्य और पारंपरिक व्यंजन जैसे खिचड़ी, मीठे चावल, सरसों का साग और मक्के की रोटी बनाई जाती है।
महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में विविधता
महाराष्ट्र में बसंत पंचमी के दिन शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही, यहां के छात्र अपनी पढ़ाई की शुरुआत इस दिन से करते हैं और विशेष रूप से अपने ज्ञान के लिए देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। पीले रंग के कपड़े पहनकर इस दिन की पूजा की जाती है। नवविवाहित जोड़े भी इस दिन को खास मानते हुए मंदिरों में पूजा करते हैं। वहीं दक्षिण भारत में भी बसंत पंचमी को उत्साह से मनाया जाता है। लोग पीले कपड़े पहनकर पतंग उड़ाते हैं और पारंपरिक मिठाइयां खाते हैं। इस दिन को विशेष रूप से ‘वसंत ऋतु के स्वागत’ के रूप में मनाया जाता है।
उत्तराखंड और बिहार में खास परंपराएं
उत्तराखंड में बसंत पंचमी के दिन पूजा के दौरान लोग मां सरस्वती को पलाश के फूल और लकड़ी अर्पित करते हैं। इसके अलावा, यहां पर लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा भी करते हैं। इस दिन को लेकर खास नृत्य और संगीत का आयोजन भी किया जाता है। स्थानीय लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं, जो इस त्योहार के रंग को और भी बढ़ा देते हैं।
वहीं, बिहार में इस दिन को लेकर एक खास परंपरा है। लोग इस दिन सुबह-सुबह स्नान करके पीले कपड़े पहनते हैं और माथे पर हल्दी का तिलक करते हैं। फिर वे मां सरस्वती की पूजा करते हैं और लोक गीत गाते हुए नृत्य करते हैं। इस दिन खासतौर पर सरस्वती पूजा की जाती है, और लोग एक-दूसरे को मिठाइयां और अन्य पकवानों का वितरण करते हैं।
बसंत पंचमी का सांस्कृतिक महत्व
बसंत पंचमी का त्योहार सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। यह त्योहार भारत की विविधता को दिखाता है, जहां हर राज्य अपनी परंपरा और संस्कृति के अनुसार इस दिन का जश्न मनाता है। कहीं रथ यात्रा निकाली जाती है, तो कहीं पतंगबाजी होती है, कहीं देवी सरस्वती की पूजा होती है, तो कहीं लोक नृत्य। यह दिन देशभर में एकता, विविधता और संस्कृति का प्रतीक है।
हर राज्य का अपना तरीका और रीति-रिवाज है, लेकिन इस दिन की खुशियां सभी जगह समान होती हैं। बसंत पंचमी, एक नए मौसम के आगमन की खुशी का पर्व है, जो हर दिल को उत्साहित कर देता है।