जानें देश भर में क्यों हिरासत में लिए गए हैं सामाजिक कार्यकर्ता, क्या है पूरा मामला!

माओवादियों से जुड़े होने के कारण गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ता (फोटो साभार: इंडियन एक्सप्रेस)

नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में मंगलवार को पूणे पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में देश भर से कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे मारी की और इनमें से पांच को गिरफ्तार भी किया गया. पुलिस के मुताबिक गिऱफ्तार किए गए लोग और जिन लोगों के घरों पर छापेमारी हुई है वो उस एलगार सम्मेलन के आयोजन में शामिल थे जिसके कारण भीमा कोरेगांव हिंसा हुई थी. साथ ही इन लोगों पर माओवादियों से मिले होने का आरोप भी लगाया गया है.

भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर पुलिस ने तेलगू विचारक और कवि वरवरा राव के घर हैदराबाद में, ट्रेड युनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज के घर फरीदाबाद, सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवालखा के घर नई दिल्ली, लेखक और कार्यकर्ता आनंद तेलतुंबडे के घर गोवा में और वर्नेन गोंजाल्वेस और अरुण फरेरा के घर मुंबई में छापे मारी की गई. इनमें से वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वर्नेन गोंजाल्वेस और गौतम नवालखा को गिरफ्तार भी किया गया था.

लेकिन क्या है ये पूरा मामला और इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को किस लिए गिरफ्तार किया गया है.

ये पूरा मामला इस साल हुए भीमा कोरेगांव हिंसा से शुरू होता है. दरअसल हर साल एक जनवरी के दिन भीमा कोरेगांव के दलित अंग्रेजों के साथ 1818 में मिली अपनी उस जीत का जश्न मनाते हैं, जिसमें महाराष्ट्र में मराठाओं के शासन का अंत हुआ था. इस साल भीमा कोरेगांव के जश्न के 200 साल पूरे हो रहे थे जिससे ये कार्यक्रम और भी बड़ा होना था. जश्न के दौरान ही कुछ लोगों में झड़प से महाराष्ट्र के कई इलाकों मुख्य रूप से पूणे में हिंसा फैल गई थी, इसमें एक युवक की जान भी गई.

लेकिन मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक हिंसा के कुछ दिनों पहले 29 दिसंबर 2017 को भीमा कोरेगावं से पांच किलो मीटर दूर एक गांव वधु बुद्रुक में एक विवाद हुआ था. जिसको 1 जनवरी को हुई हिंसा की जड़ समझा जा रहा है. 29 दिसंबर को हुआ ये विवाद कोरेगांव से कुछ दूरी पर स्थित दलितों के नेता गोविंद गोपाल महार की एक समाधी के पास लगा एक बोर्ड है. इस समाधि के पास लगे एक बोर्ड पर ये लिखा गया है कि मराठा के राजा छत्रपति शंभाजी महाराज का अंतिम संस्कार महार जाति के लोगों द्वारा किया गया था. बता दें कि महार जाति दलित समुदाय से है. इस बोर्ड को लेकर वहां के मराठा समुदाय के लोगों ने विरोध जताया और उसे गलत कहा. जिसके बाद दोनों समुदायों के बीच झड़प भी हुई थी.

माओवादी संगठनों को ठहराया था जिम्मेदार

31 दिसंबर को पूणे में हुए एलगार परिषद के आयोजन में भी कई लेफ्ट विंग कार्यकर्ताओं और माओवादी संदगठन के लोगों द्वारा भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे. मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक इस कार्यक्रम का आयोजन भीमा कोरेगांव की लड़ाई में दलितों के योगदान को याद करने के लिए किया गया था. पूणे पुलिस ने माओवादियों से जुड़े होने और भीमा कोरेगांव को लेकर भड़ाकऊ भाषण देने के मामले में में जून में रोना विल्सन, महेश राउत, सोमा सेन, और सुधीर धवाले को गिरफ्तार किया था.

वहीं मंगलवार को जिन सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की गई है उन पर पहले गिरफ्तार हुए लोगों के साथ मिले होने का शक है. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस का कहना है कि मंगलवार से पहले गिरफ्तार हुए लोगों के 200 संपर्कों की जांच की गई जिनमें इन लोगों के नाम भी पाए गए तब इनकी गिरफ्तारी की गई है.

पूणे पुलिस के मुताबिक इन लोगों के माओवादियों के साथ संबंध हैं और इन्हीं संबंधों का ब्यौरा कोर्ट को भी दिया जाएगा. इसके अलावा कई मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक महाराष्ट्र पुलिस को मिला एक पत्र भी वजह है जिसके चलते इन सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है. हालांकि इस पत्र के सही या गलत होने की अभी कोई पुष्टि नही की गई है. लेकिन इसके आधार पर ये माना जा रहा है कि तेलूगू कवि वरवरा राव माओवादियों से मिले हुए हैं. ये पत्र पूणे पुलिस को जून में कथित रूप से माओवादियों से मिले होने के शक में लेफ्ट विंग कार्यकर्ताओं के घर पर हुई छापेमारी के दौरान मिला था. इस पत्र में देश भर में माओवादी हमले करने की योजना बनवाने के लिए वरवर राव और कॉमरेड एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग की तारीफ की गई है.

भीमा कोरेगांव मामले की जांच हुई तो हिंसा की लपटें कई हिंदुवादी संगठनों तक पहुंची.

भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जांच में पुलिस की मदद करने के लिए बनाई गई कमिटी बनाई गई. कमिटी की रिपोर्ट में बताया गया कि इस बात के सुबूत हैं कि हिंसा को भड़काने में हिंदुत्व संगठनों के नेता मिलिंद एकबोटे और शंभाजी भिड़े के भड़काऊ भाषण भी थे.

एक औरत ने तो हिंसा का जिम्मेदार ठहराते हुए सवयं सेवक संघ और प्रधानमंत्री के गुरू कहे जाने वाले शंभाजी भिड़े का नाम भी लिया. लेकिन बाद में महाराष्ट्र को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस द्वारा ये बयान जारी किया गया कि वो महिला तो शंभाजी भिड़े को जानती तक नही है.

 

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