नई दिल्ली – दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपनी तैयारियों को तेज कर दिया है। पार्टी ने नवंबर के आखिरी हफ्ते से प्रचार-प्रसार का काम शुरू करने का निर्णय लिया है। इस दौरान, प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति, उम्मीदवार चयन समिति और प्रदेश कोर ग्रुप का गठन किया जाएगा। बीजेपी का लक्ष्य है कि आगामी विधानसभा चुनाव में लगभग 10 पार्षद और एल्डरमैन को टिकट दिया जाए।
मजबूत पार्षदों को मिलेगा मौका
दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ऐसे पार्षदों को मैदान में उतारेगी, जो अपनी मजबूत पकड़ और अच्छी छवि के लिए जाने जाते हैं। कालका से योगिता सिंह, बाबरपुर से मुकेश बंसल और मुंडका से गजेंद्र दलाल जैसे प्रभावशाली पार्षदों को विधानसभा चुनाव में भाग लेने का मौका मिल सकता है। इसके साथ ही, कई पूर्व सांसद, जिन्हें हाल ही में लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया था, भी इस बार चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
पूर्व सांसदों का चुनाव लड़ना तय
बीजेपी के पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा का विधानसभा चुनाव लड़ना लगभग तय है। पार्टी यह भी सोच रही है कि वह दिल्ली विधानसभा में 3 सीटें अपने सहयोगी दलों को दे सकती है। सूत्रों के मुताबिक, एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू को दिल्ली में दो सीटें और लोजपा (रामविलास) को एक सीट मिल सकती है। संभावित विधानसभा सीटों में सीमापुरी, बुराड़ी और संगम विहार को शामिल किया जा सकता है।
विधायकों का टिकट कट सकता है
दिल्ली में मौजूदा 7 विधायकों में से कई का टिकट कटने की संभावना है। बीजेपी के कई मौजूदा विधायकों की सर्वे रिपोर्ट नकारात्मक आई है। लक्ष्मी नगर विधानसभा से अभय वर्मा, गांधीनगर से अनिल बाजपेई, विश्वास नगर से सिटिंग विधायक ओमप्रकाश शर्मा और गोंडा विधानसभा से विधायक अजय महावर जैसी सीटों पर पार्टी सर्वे करवा रही है।
दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल
दिल्ली की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी 2025 को समाप्त होगा, लेकिन इससे पहले कभी भी चुनाव कराए जा सकते हैं। इस समय, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है। हाल ही में, अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद आतिशी को दिल्ली की नई सीएम बनाया गया। वह दिल्ली की तीसरी महिला सीएम हैं, इससे पहले सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित इस पद पर रह चुकी हैं।
बीजेपी का फोकस इस बार मजबूत उम्मीदवारों पर है, ताकि वह चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूत कर सके। अब देखना यह होगा कि पार्टी किस प्रकार अपने रणनीतिक बदलावों को लागू करती है और कौन से विधायक चुनावी मैदान में रह पाते हैं।