हिन्दुओं की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी (BJP) से करीबी और खुद को सबसे आगे दिखाने की इन दिनों मुस्लिम नेताओं (MUSLIM LEADERS) में होड़ मची है। बीते कुछ दिनों में ही ये नेता लगातर कुछ ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे न सिर्फ पार्टी की किरकिरी हो रही है. बल्कि देशभर में हंसी के पात्र भी बन रहे हैं.
इनमें दो तो पार्टी के अंदर मुस्लिम नेता होने का दावा करते हैं। हाल ही में एक ने हनुमान का धर्म बताकर ऐसा बखेड़ा खड़ा किया है, कि बीजेपी के बड़े बड़े नेताओं के मुंह से दो शब्द बोलने मुश्किल हो गए हैं।
बुक्कल नवाब, एमएलसी
सबसे पहले बात होगी, हनुमान को मुसलमान बताने वाले बुक्कल नवाब की। जो इनदिनों देश दुनिया में चर्चा का विषय बने हुए हैं। कभी मुलायम सिंह यादव के लिए नारे लिखने वाले बुक्कल नवाब करोड़पति हैं। कक्षा नौ पास 64 साल के बुक्कल नवाब पुराने लखनऊ के बाशिंदे हैं। खुद को नवाबों का वारिस बताते हैं।
मुलायम के खास, अखिलेश के कृपा पात्र
शुरुआती दिनों में मुलायम सिंह यादव के खास सहयोगी रहे हैं। जब अखिलेश यादव राजनीति में आए भी नहीं थे, स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, तब बुक्कल नवाब उनको बर्थडे विश करने में सबसे आगे थे। मुबारकबाद के बड़े-बड़े होर्डिंग पूरे लखनऊ में लगवा देते थे। जिसका लोग खूब मजाक बनाते थे। पर ये बुक्कल नवाब की दूरदृष्टि थी, जो अखिलेश यादव एक दिन मुख्यमंत्री बनें। सरकार में आने के बाद अखिलेश ने भी ‘बुक्कल नवाब’ को विधानपरिषद भेज दिया। अखिलेश को भतीजा कहकर जो रिश्ता बुक्कल ने कायम किया, उसे सरकारी जमीन को कब्जा करके मुआवजा लेने में उन्हें आसानी हुई। सरकारी जमीन को सरकार को ही बेंचने के मामले में काफी सुर्खियां भी उनको मिली। लेकिन बुक्कल नवाब पैंतरे बदलने के माहिर हैं, अखिलेश की सरकार गई और नई बीजेपी सरकार बनते ही जब जेल जाने की नौबत आई तो उनका सपा में उनका दम घुटने लगा।
बीजेपी के आते ही बने ‘राम भक्त’
अयोध्या में मंदिर बचाने के लिए मुलायम की तारीफ करने वाले बुक्कल राम भक्त हो गए। उनके एजेंडे में राम मंदिर आ गया। सरकारी जमीन का मुआवजा मिलने पर आधा यानी की 15 करोड़ चंदा देने की तैयारी कर ली। बीजेपी के लिए सपा की दी हुई विधान परिषद की सीट तक कुर्बान कर दी। बाद में बीजेपी ने उन्हें रिटर्न गिफ्ट में दोबारा विधानपरिषद भेजा तो नामांकन भरने से पहले वो हजरतगंज के दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर में 20 किलो का घंटा चढ़ाकर आशीर्वाद लिया।
मोहसिन रजा, अल्पसंख्यक राज्यमंत्री
क्रिकेटर से बने राजनेता
बीजेपी सरकार में अल्पसंख्यक राज्यमंत्री राजनीति में आने से पहले क्रिकेटर थे। जो चौक स्टेडियम में नौनिहालों की पौध को क्रिकेट की बारिकियां सिखाते थे। रणजी तक पहुंचे मोहसिन को शुरु से राजनीति में आने का चाव था। जिसके चलते साल 1999 में यूपी कांग्रेस की स्पोर्ट्स विंग के चैयरमैन बने। कुछ दिनों बाद उनका मोह कांग्रेस से टूट गया। इसके बाद खेल कोटे से सरकारी नौकरी मिली। कुछ दिन बाद नौकरी से भी मन भर गया।
प्रवक्ता से राजमंत्री तक का सफर
खुद शिया समुदाय के मोहसिन ने सुन्नी समुदाय की लड़की से शादी की। जो बीजेपी की वरिष्ठ नेता और मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला की भतीजी हैं। नजमा हेपतुल्ला को देखकर उन्होने बीजेपी के प्रति आस्था दिखाई। नजमा के मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बनने के बाद मोहसिन बीजेपी में आधिकारिक तौर पर इंट्री ली। कई सालों तक टीवी पर क्रिकेट एक्सपर्ट के तौर पर बैठते रहे। जिसके बाद वो बीजेपी की तरफ से पक्ष रखने का मौका मिल गया। इसदौरान उन्होंने पीएम मोदी का जमकर गुणगान किया। जिसमें सबसे ज्यादा चर्चा में तब आए जब उन्होंने कहा कि ‘नरेंद्र मोदी जी अगर सचमुच मुस्लिम विरोधी होते तो दाढ़ी नहीं रखते।’
बीजेपी ने बनाया राज्यमंत्री
2017 में बीजेपी की यूपी में सरकार बनी तो मुस्लिम नेता के तौर पर सरकार में अल्पसंख्यकों का नेतृत्व करने के लिए मौका मिला और अल्पसंख्यक राज्यमंत्री के पद से नवाजे गए। इस दौरान वो अपने बयानों से कई बार अपने ही समुदाय में विवादों में आते रहे। चाहे वो मदरसों में ड्रेस कोड लागू करने का मामला रहा हो, या फिर हज हाऊस को भगवा रंग में रखने की हिमायत करने की बात। सभी में सरकार को सफाई देनी पड़ी और फैसला वापस लेना पड़ा। एक बार तो उन्होंने हिंदुस्तान के हर शख्स को हिंदू करार दे दिया, और खुद को हिंदू बताया। बड़े मंगल पर अपने बेटों के साथ लखनऊ के हनुमान मंदिर प्रसाद चढ़ाने गए।
वसीम रिजवी, अध्यक्ष, शिया वक्फ बोर्ड
वसीम रिजवी जब से शिया वक्फ बोर्ड में आए। शिया समुदाय की तरक्की से ज्यादा अपनी तरक्की के लिए मशहूर हो गए। प्रदेश में तीन बार निजाम बदला लेकिन किसी की मजाल नहीं हुई कि उनको हटा सकें। यूपी के मौसम वैज्ञानिक कहा जाए तो कम नहीं होगा। क्योंकि तीनों सरकारों के वो खास बने रहने का हुनर उनको आता है। कभी अपने परिवार की माली हालत के चलते वो विदेश में काम करने गए। पैसा कमाया और फिर लखनऊ लौटे, देखते ही देखते अपने समुदाय के साथ लखनऊ के कुछ संपन्न लोगों में खुद की जगह बना ली।
कल्वे जव्वाद से बढ़ाई नजदीकी
सबसे पहले उन्होंने अपने समुदाय के धर्मगुरु कल्बे जवाद से नजदीकी बढ़ाई। बाद में पार्षद बने। कल्बे जव्वाद के रास्ते उनकी पहुंच तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती तक हो गई। जिन्होंने उन्हें शिया वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बना दिया।
तीनों सरकार में बनाई नजदीकी
वसीम का ये हुनर ही है, कि इस दौरान मायावती की सरकार चली गई। तमाम आरोप लगे, लेकिन राज्य में सत्ता बदलते ही, खुद को ऐसा बदला की समाजवादी पार्टी के साथ उनकी नजदीकी हो गई। सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री आजम खां के वो इतने करीबी हो गए कि दोबारा वक्फ बोर्ड के चेयरमैन की कुर्सी हथिया ली। वसीम ने आजम खान का खास बनने के लिए उन सब को अपना दुश्मन बनाया जिसे आजम ना पसंद करते थे। इनमें उनको शरण देने वाले मौलाना कल्बे जवाद भी शामिल है। यही नहीं वक्फ की जमीनों को लेकर रामपुर के नवाब तक से अदावत कर ली।
बीजेपी ने की थी सीबीआई जांच की मांग
चौकाने वाली बात ये है कि बीजेपी और उसके नेता 2017 में सरकार आने से पहले तक वसीम और वक्फ की जमीनों के सौदे की जांच सीबीआई से कराने की मांग करते थे। जो आज तक नहीं हुई। 2017 के बाद जब बीजेपी की सरकार बनी तो वो ‘रामभक्त’ हो गए। उनके सपने में भगवान राम आने लगे। ये राम भक्ति ही थी, कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से हलफनामा तक लगा दिया। बीजेपी को खुश करने में ऐसे मशगूल हो गए कि यहां तक कह दिया कि मदरसों में आंतकी पैदा हो रहे हैं। एकबार तो वसीम के सपने में भगवान राम आ गए। वसीम ने कहा कि ‘मैंने ख्वाब में भगवान श्रीराम को देखा, वह अयोध्या में मंदिर की हालत पर रो रहे हैं।’