दिल्ली विधानसभा चुनाव का सियासी माहौल हर बार की तरह इस बार भी गरम है। बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच तकरार का खेल शुरू हो चुका है। दिल्ली में विधानसभा के चुनाव पहली बार 1993 में हुए थे, और तब से लेकर अब तक बीजेपी सिर्फ एक बार यानी 1993 में ही सत्ता में आई थी। इसके बाद से वह बार-बार हारती आ रही है। 1998 में बीजेपी की सत्ता चली गई, और फिर कभी दिल्ली में सत्ता हासिल नहीं कर पाई। अब सवाल ये है कि आखिर दिल्ली का दिल बीजेपी क्यों नहीं जीत पाती है, और क्या 2025 में वह इस किले पर कब्जा कर पाएगी?
बीजेपी के लिए दिल्ली के चुनाव क्यों बनते हैं चुनौती?
दिल्ली में बीजेपी के लिए सत्ता हासिल करना एक मुश्किल काम बन चुका है। 26 साल से बीजेपी दिल्ली में अपनी सरकार बनाने का सपना देख रही है, लेकिन उसे बार-बार असफलता का सामना करना पड़ा है। एक वक्त था जब शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस दिल्ली की राजनीति पर काबिज थी। कांग्रेस के 15 साल के राज के दौरान बीजेपी ने कोई प्रभाव नहीं छोड़ा। फिर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपनी मजबूत पकड़ बनाई और बीजेपी को हर बार मात दी। अब 2025 के चुनाव में बीजेपी फिर से सत्ता हासिल करने के लिए संघर्ष कर रही है, लेकिन क्या इस बार कुछ बदल पाएगा?
मोदी-शाह का दिल्ली में क्यों नहीं चला असर?
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को भारतीय राजनीति में जीत का पर्याय माना जाता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने कई राज्यों में जीत हासिल की और एक के बाद एक कई चुनाव जीते। हालांकि, दिल्ली विधानसभा चुनाव में 2015 और 2020 में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा। इन दोनों चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी का असर दिल्ली के चुनावों में क्यों नहीं दिखा? दिल्ली के चुनाव का एक अलग ही फॉर्मूला है। दिल्ली में बीजेपी का असर किसी न किसी वजह से कम नजर आता है।
दिल्ली का अलग वोटिंग पैटर्न, क्या बीजेपी ने समझा है?
दिल्ली में चुनावों का पैटर्न बाकी राज्यों से बहुत अलग है। दिल्ली में जाति, धर्म और नकारात्मक प्रचार का राजनीति पर ज्यादा असर नहीं होता है। यहां एक बड़ा कारोबारी वर्ग भी है जो सकारात्मक राजनीति को पसंद करता है। दिल्ली के चुनाव में तीन तरह के चुनाव होते हैं: लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव और एमसीडी चुनाव। हर चुनाव में वोटिंग पैटर्न अलग होता है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को समर्थन मिलता है, जबकि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का दबदबा होता है। पहले एमसीडी चुनावों में बीजेपी का कब्जा था, लेकिन अब आम आदमी पार्टी ने उसे भी हरा दिया है। यही वजह है कि बीजेपी को दिल्ली में जीत मिलना मुश्किल हो जाता है।
दिल्ली में बीजेपी की कमजोर नेतृत्व, क्या ये है हार का कारण?
दिल्ली में चुनावी लड़ाई में नेताओं का बड़ा असर होता है। साल 1993 में बीजेपी ने मदनलाल खुराना को मुख्यमंत्री बना कर सत्ता हासिल की थी, लेकिन उनका नेतृत्व ज्यादा समय तक नहीं चला। पांच साल में बीजेपी को तीन बार मुख्यमंत्री बदलने पड़े। इससे पार्टी का मैसेज जनता के बीच गलत गया और इसका असर अगले चुनाव में देखने को मिला। इसके बाद बीजेपी दिल्ली में ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं खड़ा कर पाई, जो शीला दीक्षित या अरविंद केजरीवाल जैसे कद्दावर नेताओं के सामने चुनौती पेश कर सके।
शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल का दबदबा, बीजेपी क्यों नहीं उभर पाई?
दिल्ली में 15 साल तक कांग्रेस की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित ने अपने विकास मॉडल के जरिए दिल्ली की राजनीति में एक मजबूत पहचान बनाई। उन्होंने दिल्ली में हर क्षेत्र में विकास किया, जिससे वह जनता के बीच लोकप्रिय हो गईं। बीजेपी ने कभी भी शीला दीक्षित के स्तर का कोई नेता सामने नहीं लाया। इसके बाद 2013 में अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति की शुरुआत की और पहले ही चुनाव में एक बड़ी जीत दर्ज की। इसके बाद से केजरीवाल ने दिल्ली की राजनीति पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई और बीजेपी को हर बार हराया। अब तक बीजेपी के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जो केजरीवाल के सामने चुनौती पेश कर सके।
केंद्र सरकार के जरिए दिल्ली को साधने की कोशिश
दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, और यहां केंद्र सरकार के पास कई अधिकार होते हैं। यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस जैसे बड़े दल अपनी स्थानीय राजनीति से ज्यादा केंद्र की सत्ता में जोर लगाते हैं। केंद्र सरकार के पास दिल्ली की कानून व्यवस्था, मास्टर प्लान और कई दूसरे अहम फैसलों का अधिकार होता है। इसलिए, दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बजाय केंद्र में सत्ता होने के बावजूद कोई भी पार्टी यहां अपने नेता को ज्यादा महत्व नहीं देती है। बीजेपी ने भी कभी दिल्ली में किसी नेता को ज्यादा अहमियत नहीं दी, और यही वजह है कि वह केजरीवाल को चुनौती नहीं दे पाई।
क्या 2025 में बीजेपी दिल्ली का दिल जीत पाएगी?
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का इशारा कर रहे हैं कि बीजेपी के लिए अब दिल्ली में सत्ता हासिल करना आसान नहीं होगा। हालांकि, बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत इस बार झोंकी है, लेकिन दिल्ली की राजनीति की अपनी खासियत है। यहां पर वोटिंग पैटर्न, नेताओं की छवि और चुनावी रणनीति का बड़ा असर पड़ता है। बीजेपी को इस बार दिल्ली की जनता को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए नई रणनीति अपनानी होगी। क्या वह इस बार दिल्ली की सत्ता हासिल कर पाएगी? यह सवाल 2025 के चुनाव के नतीजों के बाद ही साफ होगा।