बीजेपी का बढ़ता जनाधार है ममता की चिंता, जानिए प. बंगाल की राजनीति

बीजेपी का दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में उमड़ी भीड़ से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री परेशान हो गई हैं. कोलकाता के एक स्थानीय राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि पीएम मोदी के हालिया पश्चिम बंगाल दौरे पर आयोजित रैलियों में अप्रत्याशित भीड़ थी. वहीं, ममता बनर्जी का कहना है कि हाल ही में कोलकाता में आयोजित विपक्ष की रैली के कारण पीएम मोदी जांच एजेंसियों के द्वारा उन्हें परेशान कर रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की राजनीति में तीन फरवरी, 2019 की तारीख ने अपना स्थान बना लिया है. जब-जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के रिश्तों की चर्चा होगी तो इस तारीख को याद किया जाएगा. पश्चिम बंगाल के सबसे चर्चित चिटफंड और रोज वैली घोटाले की जांच कर रही CBI के अधिकारियों को ही ममता बनर्जी की पुलिस ने हिरासत में ले लिया.

दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप जारी है. ममता सरकार पर बीजेपी नेताओं की रैली को रोकने का भी आरोप है. पश्चिम बंगाल में जारी सियासी उठापटक के बीच जो एक पक्ष है, वह है वाम दल. बीते कुछ चुनाव परिणामों के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो बंगाल की राजनीति में लेफ्ट पार्टी निरंतर पिछड़ती दिख रही है. धीरे-धीरे ही सही वहां लेफ्ट का स्थान बीजेपी लेती जा रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भले ही बीजेपी को सिर्फ दो सीट जीतने में सफलता मिली हो, लेकिन वोट शेयर में लगभग 11 प्रतिशत का इजाफा हुआ. यह परिवर्तन 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिली.

विधानसभा चुनाव में BJP के वोट में 6.1 फीसदी बढ़ा

लोकसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ. इस चुनाव में बीजेपी को 10.16 प्रतिशत वोट मिले. 2011 में यह महज 4 प्रतिशत के करीब था. वहीं, वाम दल के वोट शेयर पर गौर करें तो उन्हें इस चुनाव में काफी नुकसान हुआ. 26.36 प्रतिशत मतों के साथ दूसरे स्थान पर तो जरूर रही, लेकिन लगभग 11 प्रतिशत वोट की कमी दर्ज की गई.

उपचुनावों में भी बीजेपी ने अपने प्रदर्शन को सुधारा

2014 के आम चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में लोकसभा और विधानसभा की एक-एक सीट पर उपचुनाव हुए. बीजेपी को इन दोनों सीटों पर भले ही जीत नसीब नहीं हुई, लेकिन बीजेपी के उम्मीदवार दूसरा स्थान पाने में सफल रहे. उलुबेरिया लोकसभा और नोआपाड़ा विधानसभा सीट पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली थी.

उलुबेरिया लोकसभा सीट के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को महज 11.5 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन उपचुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 23.29 हो गया है. नोआपाड़ा विधानसभा सीट पर भी बीजेपी ने कुछ ऐसा ही प्रदर्शन किया. 2016 की तुलना में लगभग आठ प्रतिशत वोट का इजाफा दर्ज किया गया. इन दोनों सीटों पर टीएमसी ने भी अपने वोट शेयर में वृद्धि ही हासिल की है लेकिन, लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में काफी गिरावट आई है.

पंचायत चुनाव में दूसरे पायदान पर रही बीजेपी

पश्चिम बंगाल में बीते वर्ष हिंसक वारदातों के बीच ग्राम पंचायत का चुनाव संपन्न हुआ. कुल 31,457 सीटों के लिए वोट डाले गए थे. इनमें से टीएमसी ने 21,110 और बीजेपी ने 5,747 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, वाम मोर्चा 1,708 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी. इस चुनाव में वाम दल से बेहतर स्थिति में निर्दलीय प्रत्याशी रहे. इस चुनाव में 1,830 निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल रहे.

आदिवासी इलाकों में भी बीजेपी की पहुंच

माओवादी और आदिवासी बहुल इलाके के लेफ्ट का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन पंचायत चुनाव में इन इलाकों में भी उन्हें निराशा हाथ लगी. नक्सल प्रभावित पुरुलिया और झारग्राम में बीजेपी ने इस चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन किया. पुरुलिया की 1,944 में से 644 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, झारग्राम की 806 में से 329 सीटों पर विजयी पताका लहराया.

बीजेपी अध्यक्ष की नजरें बंगाल पर

पश्चिम बंगाल की राजनीति में अमित शाह लगातार सक्रिए भूमिका में दिख रहे हैं. लोकसभा चुनाव के बाद वह लगातार बंगाल चुनाव का दौरा कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव हारने के तुरंत के बाद उन्होंने पश्चिम बंगाल में संपर्क अभियान चलाया. यहां तक की उन्होंने पंचायत चुनाव में भी रैली की थी.

लोकसभा चुनाव का बिगुल लगभग बज चुका है. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बाद यूपी में होने वाले संभावित नुकसान को बीजेपी पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों से पाटने की कोशिश करती दिख रही है. देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी पंचायत चुनाव के अपने प्रदर्शन को सुधारते हुए सांसदों की संख्या में इजाफा कर पाती है या नहीं.

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