बॉम्बे हाईकोर्ट ने शनिवार को कानूनी समाचार पोर्टल ‘द लीफलेट’ और वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले को आंशिक अंतरिम राहत देते हुए ‘कोड ओफ़ ईथिक्स’ के पालन से संबंधित डिजिटल मीडिया के लिए बने नए आइटी नियम 2021 के नियम 9(1) और 9(3) पर रोक लगा दी है. लीफलेट ने अपनी याचिका में नियम 9 (आचार संहिता का पालन), 14 (अंतर-विभागीय समिति का गठन) और 16 (आपात स्थिति के मामले में सूचना को रोकने) से राहत दिए जाने की मांग की थी. अपनी याचिका में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि केंद्र सरकार में बैठे लोग ‘आचार संहिता’ (कोड ओफ़ ईथिक्स) जोड़कर नए नियमों की मदद से ‘वास्तविक कानूनों’ को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं, साथ ही इस कानून को “मनमाना और अवैध”, और “नेट न्यूट्रलिटी” के खिलाफ बताया था.
इसपर आज कोर्ट ने कहा, “जहां तक नियम 9 का संबंध है प्रथम दृष्टया यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों का अतिक्रमण है.” कोर्ट ने यह भी माना की यह आईटी अधिनियम के मूल कानून से हटकर है और नियम के खंड 1 और 3 पर रोक लगा दी है और नियम 9 (2) पर कुछ नहीं कहा. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश एस कुलकर्णी की खंडपीठ याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें नए आईटी कानून, 2021 को चुनौती दी गयी थी.
नियम 9 (3) आचार संहिता के पालन के लिए एक त्रि-स्तरीय संरचना की बात करता है, जिसमें पब्लिशर द्वारा सेल्फ रेगुलेशन, पब्लिशर की सेल्फ रेगुलेशन संस्थाओं द्वारा सेल्फ रेगुलेशन और केंद्र सरकार द्वारा एक निरीक्षण तंत्र शामिल है. नियम 9 (2) (इसपर पर रोक नहीं लगाई गई है) के मुताबिक नियम कुछ भी होने के बावजूद, पब्लिशर अगर किसी भी कानून का उल्लंघन करता है, तो उस कानून के अनुसार परिणामी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा. केंद्र ने इस क़ानून किसी भी तरह का रोक ना लगाने के लिए कोर्ट से अनुरोध किया था जिसे कोर्ट ने अस्वीकार किया
कोर्ट ने कहा नियम 14 (अंतर-विभागीय समिति का गठन) के बारे में कहा कि जहां तक अंतर-विभागीय समिति के बारे में अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया है और किसी की नियुक्ति नहीं की जा रही है इस वजह से इसपर अभी कुछ कहना ठीक नहीं है और भविष्य में जब भी इस समिति का गठन होता है तब याचिकाकर्ता इसपर आगे बढ़ सकते हैं.
केंद्र सरकार ने इंफ़ोरमेशन टेक्नोलोजी (आईटी) के क़ानून के तहत कुछ नए नियम तैयार किए थे. इस नए क़ानून के नियम 9, 14 और 16 का विरोध कई लोगों में किया और देश के अलग अलग हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई. इस नए क़ानून में जाँच एजेंसियों को बहुत ज़्यादा अधिकार दिए गए है, जिसने वो सीधे तौर से प्रसार माध्यम पर करवाई कर सकते है.
इन नियमों का इस्तेमाल कुछ भी हो सकता है इनकी आड़ में धार्मिक या फिर मानहानि के आरोप में प्रसार माध्यम पर करवाई की जा सकती है, इस प्रकार जांच एजेंसियों को ही न्यायपालिका की तरह क्या अपमानजनक है और क्या नहीं ये निर्धारित करने का अधिकार है. इन्हीं नियमों के ख़िलाफ़ वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले आणि ‘द लीफलेट डिजिटल’ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इनका विरोध किया था. जिसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दिपांकर दत्ता आणि न्यायमूर्ती गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ कर रही थी जिसने याचिकाकर्ता को आंशिक अंतरिम राहत मिली है.