श्रीलंका की एक संसदीय समिति ने बुर्के पर तत्काल प्रतिबंध का प्रस्ताव रखा है. और ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि पिछले साल अप्रैल में ईस्टर के दिन श्रीलंका एक के बाद एक बम धमाकों से दहल गया था। इस्लामी चरमपंथियों ने ईस्टर के त्योहार पर चर्चों में इकठ्ठा ईसाईयों को निशाना बनाया तो, कुछ होटलों में भी फिदाइन हमले किए गए। श्रीलंका में ऐसे फिदाइनो ने ढाई सौ से ज्यादा लोगों को मार दिया था, जबकि पांच सौ से ज्यादा लोग घायल हुए थे।चूंकि हमलावरों में बुर्काधारी भी शामिल थीं लिहाजा बुर्के के खिलाफ आवाज़ बुलंद हुई।
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श्रीलंकाई मिडिया के मुताबिक़ इस बारे में एक संसदीय समिति बनाई गयी थी। इस समिति ने अपनी सिफारिशें संसद में पेश कर दी हैं, जिनमें बुरका पहनने पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने की बात कही गयी है। समिति ने कहा है कि ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति सुरक्षा जांच के दौरान धर्म वगैरह के नाम पर चेहरा दिखाने से मना करे तो उसको तुरंत गिरफ़्तार करने का अधिकार पुलिस के पास हो। इसके अलावा संसदीय समिति ने मदरसों की पढ़ाई पर भी फिक्र जताई है, सरकार से कहा है कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को तीन साल के अंदर स्कूली शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल किया जाना चाहिए। समिति द्वारा पेश प्रस्ताव में देश के चुनाव आयोग से जाति और धर्म पर आधार राजनीतिक दलों के पंजीकरण को निलंबित करने की जरूरत भी जताई गयी है। इसके लिए क़ानून बनाने के लिए कहा गया है।
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आपको बता दें कि आतंकी घटनाओं के चलते दुनिया के तमाम देश बुर्के पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए मजबूर हुए हैं, चीन तो खैर अपने शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर मुसलमानों को सामूहिक तौर पर नमाज़ तक नहीं पढ़ने देता, वहीं फ़्रांस, बेल्जियम, डेनमार्क, ट्यूनीशिया, ऑस्ट्रिया, नीदरलैंड्स, तजाकिस्तान और बुल्गारिया आदि में मुस्लिम महिलाओं के पुरुषों से परदे के नाम पर बुर्का पहनने पर पाबंदी है। आतंकी हमले के बाद श्रीलंका में बुर्के पर सख्ती तो तुरंत ही हो गयी थी, मगर अब बाकायदा कानून बनाकर वो भी इन देशों की फेहरिस्त में शामिल होने जा रहा है।