भारतीय जनता पार्टी में उठ रही बगावत की आग से बढ़ रही तपिश को कम करने के लिए पार्टी ने उस पर निष्कासन का ‘पानी’ डालने का अभियान चला दिया है। भाजपा संगठन और सरकार के खिलाफ बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे और ऐसे लोगों का साथ देने वाले 53 लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। पार्टी आने वाले दिनों में कई और नेताओं पर कार्रवाई करने का मन बनाए हुई है।
राज्य में भाजपा बीते तीन चुनावों से जीत हासिल करती आ रही है और इस बार जीत दर्ज कर नया इतिहास रचना चाहती है, लेकिन उसकी इस जीत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अपने ही नेता बन गए हैं। राज्य में 30 से ज्यादा ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां भाजपा के लिए विरोधी दल कांग्रेस के बजाय अपनों ने मुसीबत खड़ी कर दी है।
बागी तेवर अपनाकर चुनाव मैदान में उतरने वालों पर नजर डालें तो साफ पता चलता है कि भाजपा से बगावत कर भिंड से विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाह सपा, पूर्व मंत्री सरताज सिंह होशंगाबाद से कांग्रेस और पूर्व विधायक अजय यादव खरगापुर से बसपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं।
इसके अतिरिक्त पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया दमोह और पथरिया से, बमोरी से के. एल. अग्रवाल, सिहावल से विश्वामित्र पाठक, ग्वालियर से पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता, जबलपुर से भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धीरज पटैरिया, बैरसिया से ब्रह्मानंद रत्नाकर, महेश्वर से राजकुमार मेव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। ये वे चेहरे हैं, जो कभी भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाया करते थे।
भाजपा के लिए बागी बड़ी मुसीबत इस वजह से बन गए हैं, क्योंकि जिन स्थानों पर बगावत हुई है, उनमें से अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने पिछले चुनाव में जीत हासिल की थी। भाजपा ने इन सभी को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, नाम वापसी के अंतिम समय तक बड़े-बड़े नेता बागियों के घरों में डेरा डाले रहे, लेकिन नतीजा सिफर रहा।
हालांकि इस बीच भोपाल हुजूर से जितेंद्र डागा, शमशाबाद से राघवजी और खरगापुर से सुरेंद्र प्रताप सिंह को भाजपा ने मना लिया है, जिससे पार्टी कुछ राहत महसूस कर रही है।
भाजपा ने इस बगावत की आग और आंच को आगे बढ़ने से पहले निष्कासन की कार्रवाई शुरू कर दी है। प्रदेश भाजपा के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय ने कहा, “पार्टी ने 53 लोगों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की है। इन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। आगे भी पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है।”
भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी की जिला इकाइयों को निर्देश दिए गए हैं कि वे पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों पर कार्रवाई करें और प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर संगठन को अवगत कराएं।
राजनीतिक विश्लेषक भरत शर्मा का कहना है, “भाजपा के लिए इस बार अपनों ने ही मुसीबत बढ़ा दी है। बगावत को समझा जाए तो यह आने वाले नतीजों की ओर भी इशारा करने वाला है। यही कारण है कि भाजपा ने बागियों और पार्टी विरोधियों को बाहर निकालने में ज्यादा देर नहीं की।”
शर्मा कहते हैं, “अबतक कांग्रेस के उम्मीदवार को कांग्रेस के ही लोगों से लड़ना होता था, और यही बुराई अब भाजपा में आ गई है। भाजपा के उम्मीदवारों को कांग्रेस से नहीं, अपनों से भी लड़ना होगा।”
राज्य में बीते डेढ़ दशक में पहली बार भाजपा में इस तरह की बगावत नजर आई है, जब बड़े नेताओं ने पार्टी का झंडा छोड़कर विरोधी के तौर मैदान में आकर ताल ठोंकी है। इससे भाजपा को नुकसान होने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। नतीजे क्या होंगे, यह तो 11 दिसंबर को ही पता चलेगा, लेकिन भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट हैं।
आईएएनएस