पटना उच्च न्यायालय ने अपने हालिया फैसले में कहा कि किसी जोड़े के असफल वैवाहिक संबंधों के मामले में पत्नी को ‘भूत’ और ‘पिशाच’ कहना क्रूरता नहीं है. न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी की एकल पीठ ने बोकारो के रहने वाले सहदेव गुप्ता और उनके बेटे नरेश कुमार के आपराधिक पुनरीक्षण मामले की अनुमति देते हुए नालंदा की एक मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को रद्द कर दिया. जिसमें याचिकाकर्ताओं को वैवाहिक क्रूरता करने का दोषी ठहराया गया था.
नरेश की शादी ज्योति से 1 मार्च 1993 को हिंदू रीति-रिवाज से हुई थी. अगले साल ज्योति के पिता कन्हैया लाल ने एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें नरेश और उसके पिता पर दहेज के रूप में कार की चाहत में उनकी बेटी को शारीरिक और मानसिक यातना देने का आरोप लगाया गया. उच्च न्यायालय ने पाया कि यह साबित करने के लिए न तो कोई सबूत है और न ही कोई चिकित्सा दस्तावेज है कि याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी को प्रताड़ित किया.
न्यायमूर्ति चौधरी ने 22 मार्च को दिए अपने फैसले में शिकायतकर्ता के वकील की उस दलील को भी खारिज कर दिया कि 21वीं सदी के समाज में एक व्यक्ति द्वारा पत्नी को भूत और पिशाच कहकर संबोधित करना मानसिक यातना के समान है. उच्च न्यायालय ने कहा कि असफल वैवाहिक संबंधों की स्थिति में ऐसी घटनाएं होती हैं जहां पति और पत्नी दोनों गंदी भाषा का उपयोग करके एक-दूसरे के साथ दुर्व्यवहार करते हैं. हालांकि ऐसे सभी आरोप क्रूरता के दायरे में नहीं आते हैं.