Tuesday, May 6, 2025

जाति जनगणना पर मल्लिकार्जुन खरगे ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, जानें क्या मांग की कांग्रेस अध्यक्ष ने!

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर पत्र लिखा है। पत्र में जाति जनगणना के लिए तेलंगाना मॉडल को अपनाने, आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा हटाने और निजी शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी-ओबीसी के लिए आरक्षण प्रदान करने वाले अनुच्छेद 15(5) को तुरंत लागू करने का आग्रह किया गया है।(Caste Census)कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी को पत्र लिखते हुए जाति जनगणना पर सभी राजनीतिक पार्टियों से सलाह मशवरा करने की मांग की है।

खड़ेगे ने क्या कहा?

मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि ” कांग्रेस का मानना है कि कि सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए जाति जनगणना करवाना बेहद जरूरी है। इससे लोगों को बराबरी का दर्जा और अवसर मिलेगा, जैसा हमारे संविधान की प्रस्तावना भी लिखा हुआ है।

जयराम रमेश ने शेयर किया पत्र

कांग्रेस पार्टी के नेता जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए खड़गे की मांग का समर्थन किया है। उन्होंने मलिल्कार्जुन खड़गे का पत्र साजा करके लिखा कि, “2 मई को हुई CWC की बैठक के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीती रात पीएम मोदी को एक पत्र लिखा। पहलगाम हमले के बाद एक तरफ पूरा देश क्रोधित है, तो दूसरी तरफ पीएम मोदी ने जाति जनगणना पर यू-टर्न ले लिया है। इस पत्र में खड़गे जी ने सरकार से 3 मांगें की हैं।”

तेलंगाना मॉडल को अपनाए जाने की मांग

पत्र में खरगे ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने बिना किसी स्पष्ट विवरण के यह घोषणा की है कि अगली जनगणना (जो वास्तव में 2021 में होनी थी) में जाति को भी एक अलग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाएगा।’ खरगे ने कांग्रेस शासित तेलंगाना में हुए जातिगत सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा, ‘जनगणना से सम्बंधित प्रश्नावली का डिजाइन अत्यंत महत्वपूर्ण है। जाति संबंधी जानकारी केवल गिनती के लिए नहीं बल्कि व्यापक सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकत्र की जानी चाहिए।

गृह मंत्रालय को जनगणना में पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए तेलंगाना मॉडल का उपयोग करना चाहिए। प्रक्रिया के अंत में होने वाली रिपोर्ट में कुछ भी छिपाया नहीं जाना चाहिए ताकि प्रत्येक जाति के पूर्ण सामाजिक-आर्थिक आंकडे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हों, जिससे एक जनगणना से दूसरी जनगणना तक उनकी सामाजिक-आर्थिक प्रगति को मापा जा सके और उन्हें संवैधानिक अधिकार दिए जा सकें।’

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