केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान किया है. ये घोषणा करते हुए पीएम मोदी ने शुक्रवार को एक्स पर लिखा, ‘चौधरी चरण सिंह ने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था.
उन्होंने एक पोस्ट में कहा, ‘हमारी सरकार का यह सौभाग्य है कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा रहा है. यह सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है. उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की. वे आपातकाल के विरोध में भी डटकर खड़े रहे.’
चौधरी चरण सिंह देश के बड़े किसान नेता रहे हैं. उनको भारत रत्न मिलने से किसानों में खुशी का माहौल है. आपको बताते हैं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बारे में.
किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह किसानों और जाटों के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहे हैं. उनका जन्म 23 दिसम्बर 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था. वे 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री रहे थे. इसके अलावा वे दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
चौधरी चरण सिंह पहली बार 1937 में छपरौली से यूपी विधानसभा के लिए चुने गए थे. वे कांग्रेस, जनता दल, भारतीय क्रांति दल, लोक दल से जुड़े थे. चरण सिंह 1929 में आजादी के आंदोलन में कूद गए थे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. वे 1951 से 1967 तक यूपी में कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे थे. हालांकि पंडित नेहरू से नाराज होने के कारण उन्होंने कांग्रेस छोड़ अपनी पार्टी बनाई थी.
चौधरी चरण सिंह हमेशा किसानों के साथ खड़े रहे और किसानों ने भी उनका साथ कभी नहीं छोड़ा. शायद इसलिए चौधरी चरण सिंह कभी कोई चुनाव नहीं हारे. चौधरी साहब की एक और खास बात ये है कि वो गाय प्रेमी थे और गाय को बेचने के खिलाफ थे. विरोधी भी उनकी ईनामदारी के कायल रहते थे.
उनके बारे में एक और किस्सा मशहूर है. दरअसल 1979 में पीएम रहते हुए चौधरी चरण सिंह किसान बनकर, फटे पुराने कपड़े पहनकर इटावा के एक थाने में पहुंच गए थे. पुलिसवाले उन्हें पहचान नहीं पाए थे. उन्होंने थाने में बैल चोरी की शिकायत दर्ज करने को कहा, लेकिन पुलिसकर्मी ने उनसे रिश्वत मांगी. फिर उन्होंने अपनी पहचान उजागर करते हुए पूरे थाने काे सस्पेंड कर दिया था.
चौधरी चरण सिंह पहले ऐसे प्रधानमंत्री रहे जो संसद में एक भी दिन नहीं जा पाए. दरअसल, चरण सिंह ने कांग्रेस और सीपीआई के समर्थन से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. फिर राष्ट्रपति ने उन्हें बहुमत साबित करने का समय दिया, लेकिन इंदिरा गांधी ने इससे पहले ही समर्थन वापस ले लिया था.
बहुमत साबित करने से पहले ही चौधरी चरण सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा. इस प्रकार संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री छोड़ दिया था. चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ था. कृषक समुदायों के साथ उनके आजीवन जुड़ाव के कारण नई दिल्ली में उनके स्मारक का नाम किसान घाट रखा गया था.