छठ पूजा भारत के प्रमुख और लोक आस्था के महापर्वों में से एक है, जिसे विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा सूर्य देव और छठी मैया की विशेष पूजा होती है, जिसमें महिलाएं अपने परिवार और संतान की भलाई के लिए व्रत करती हैं। छठ पूजा का आयोजन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर सप्तमी तिथि तक किया जाता है। इस साल छठ पूजा 5 नवंबर से शुरू होकर 8 नवंबर को समाप्त हो रही है।
छठ पूजा के दौरान एक खास व्रत कथा पढ़ने या सुनने का महत्व है, क्योंकि इसे सुनने से छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त होता है और व्रत पूर्ण माना जाता है। तो आइए, जानते हैं छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक व्रत कथा।
छठ पूजा व्रत कथा
छठ पूजा की व्रत कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी बहुत समय से संतान सुख के लिए परेशान थे, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हो रही थी। फिर एक दिन वे महर्षि कश्यप के पास गए और संतान प्राप्ति के उपाय पूछे। महर्षि कश्यप ने उन्हें एक यज्ञ करवाया और यज्ञ की खीर को राजा की पत्नी को खाने को दी। इसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गईं, लेकिन उनका बेटा मृत पैदा हुआ।
राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी बहुत दुखी हुए और राजा ने अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान में प्राण त्यागने की कोशिश की। तभी वहां देवी षष्ठी प्रकट हुईं और राजा प्रियव्रत से कहा, “मैं ब्रह्मा की पुत्री देवी षष्ठी हूं। अगर तुम मेरी विधिपूर्वक पूजा करोगे, तो तुम्हें संतान सुख मिलेगा।”
राजा प्रियव्रत ने देवी षष्ठी की पूजा विधिपूर्वक की और साथ ही दूसरों को भी इस पूजा के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप रानी मालिनी फिर से गर्भवती हुईं और नौ महीने बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को छठ पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।
महाभारत से जुड़ी छठ पूजा की एक और कथा
महाभारत के समय भी छठ पूजा से जुड़ी एक खास घटना घटित हुई थी। कर्ण, जो कि सूर्यदेव के पुत्र थे, नियमित रूप से सूर्यदेव की पूजा करते थे। वे सुबह-सुबह पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे, जिसके कारण सूर्यदेव से उन्हें विशेष कृपा प्राप्त हुई और वे एक महान योद्धा बने। कर्ण की यह पूजा और व्रत भी छठ पूजा के महत्व को दर्शाता है।
इसके अलावा, महाभारत में एक और घटना बताई जाती है, जब पांडवों ने अपना राजपाट जुए में खो दिया था। तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था और उनकी पूजा से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस दिलाया।
इस तरह से छठ पूजा न केवल एक धार्मिक व्रत है, बल्कि यह हमें पौराणिक कथाओं के माध्यम से संतान सुख और परिवार की समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग भी दिखाता है। छठी मैया और सूर्य देव की पूजा से घर में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। तो इस छठ पूजा पर, सभी महिलाएं और भक्तगण इस व्रत कथा को ध्यान से पढ़ें या सुनें, ताकि छठी मैया का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।