अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर साल 2019 में आए ऐतिहासिक फैसले में शामिल चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया है। उन्होंने बताया कि जब वह इस विवाद का फैसला नहीं कर पा रहे थे, तब उन्होंने ईश्वर से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की थी।
प्रयासों का अनावरण
रविवार को महाराष्ट्र के कन्हेरसर में एक कार्यक्रम के दौरान, सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि विवाद के समाधान के लिए उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की थी। उन्होंने कहा, “अगर आप ईश्वर पर विश्वास करते हैं, तो वह हमेशा रास्ता दिखाते हैं।” उनके अनुसार, यह मामला उनके सामने तीन महीने तक रहा, और उस दौरान वह कई बार कठिनाई में थे।
आध्यात्मिक अनुभव का जिक्र
सीजेआई ने यह भी बताया कि वह ईश्वर के सामने बैठकर उनसे कह रहे थे कि इस केस का समाधान ढूंढना होगा। उन्होंने कहा, “मैं ईश्वर के सामने बैठा था और प्रार्थना कर रहा था कि मुझे इस मामले का हल मिल जाए।” यह बयान दर्शाता है कि उन्होंने इस मामले को लेकर न केवल कानूनी दृष्टिकोण से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी गंभीरता से लिया था।
9 नवंबर, 2019 का ऐतिहासिक फैसला
सीजेआई चंद्रचूड़ उस समय सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच का हिस्सा थे, जिसने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया गया और मस्जिद के लिए अयोध्या में 5 एकड़ भूमि आवंटित की गई। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद, उन्होंने जुलाई में राम मंदिर का दर्शन भी किया, जो उनके लिए एक विशेष अनुभव रहा।
अध्यात्म और न्याय का समागम
सीजेआई चंद्रचूड़ के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रक्रिया के साथ-साथ आध्यात्मिक विश्वास भी महत्वपूर्ण हो सकता है। उन्होंने बताया कि विश्वास रखने से कठिन समय में राह मिल सकती है। उनके अनुभव से यह संदेश मिलता है कि संवैधानिक दायित्व निभाने के साथ-साथ आस्था भी महत्वपूर्ण होती है।
इस प्रकार, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ का यह बयान न केवल अयोध्या विवाद की चर्चा को पुनर्जीवित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे न्याय की प्रक्रिया में व्यक्तिगत विश्वास भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।