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Thursday, March 20, 2025

बिहार में दलित वोटों पर कांग्रेस का दांव, राहुल गांधी की रणनीति से लौटेगा 40 साल पुराना गौरव?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपनी सियासी एक्सरसाइज शुरू कर दी है। पार्टी के नेता राहुल गांधी इस बार बिहार में सामाजिक न्याय के मुद्दे को लेकर चुनावी मैदान में उतरे हैं। कांग्रेस का फोकस बिहार के दलित समाज के वोटों पर है, जिसके इर्द-गिर्द ही राहुल गांधी अपनी राजनीतिक रणनीति बना रहे हैं। इसी कड़ी में कांग्रेस ने बिहार प्रदेश अध्यक्ष पद से भूमिहार समाज के अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर दलित समुदाय से आने वाले दो बार के विधायक राजेश कुमार को यह जिम्मेदारी सौंपी है।

राजेश कुमार: कांग्रेस का दलित चेहरा
औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक राजेश कुमार उर्फ राजेश राम को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाने के पीछे राहुल गांधी की दलित राजनीति को मजबूत करने की रणनीति मानी जा रही है। राजेश कुमार के सहारे कांग्रेस बिहार में अपने 40 साल पुराने सियासी रुतबे को वापस पाने की कोशिश में है। कांग्रेस के पास बिहार में दलित राजनीति की मजबूत विरासत है, जिसे फिर से जोड़ने की कोशिश की जा रही है।

राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस दलित वोटों पर सेंधमारी करने की कोशिश कर रही है। फिलहाल बिहार में जीतनराम मांझी और चिराग पासवान जैसे दलित नेताओं का दबदबा है। राजेश कुमार ने भी कहा है कि समय कम है, लेकिन चुनौती बड़ी है। उन्होंने मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी का धन्यवाद दिया है कि उन्होंने एक दलित के बेटे को इतना बड़ा दायित्व सौंपा है।

राजेश कुमार की सियासी विरासत
राजेश कुमार की खास बात यह है कि वह खानदानी कांग्रेसी हैं। उनके पिता दिलकेश्वर राम कांग्रेस में जगजीवन राम के बाद बिहार में दलितों के बड़े नेता थे। दिलकेश्वर राम कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे और पार्टी संगठन में भी उनका अच्छा योगदान रहा। इस तरह राजेश कुमार को राजनीति विरासत में मिली है।

राजेश कुमार ने 2015 में कुटुंबा सीट से जीतनराम मांझी के बेटे और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष संतोष कुमार सुमन को हराया था। 2020 में भी उन्होंने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के उम्मीदवार को मात दी। हालांकि, इस बार जीतनराम मांझी की पार्टी ने संतोष कुमार सुमन की जगह श्रवण भुइयां को उम्मीदवार बनाया था। राजेश कुमार विधानसभा में कांग्रेस के उपमुख्य सचेतक हैं और अब प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।

कांग्रेस का दलित वोट बैंक पर फोकस
बिहार में कांग्रेस की नजर अपने पुराने परंपरागत वोट बैंक पर है, जिसमें दलित समाज शामिल है। कांग्रेस दलितों के करीब 18 फीसदी वोट को अपने पाले में करने की कोशिश में है। फिलहाल दलित वोटर सत्ता पक्ष के साथ रहना पसंद करते हैं। बीजेपी और जेडीयू के पास कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है, जबकि आरजेडी में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में दलित नेतृत्व उभर नहीं पाया है। ऐसे में कांग्रेस ने राजेश कुमार को आगे करके दलित समुदाय को संदेश देने की कोशिश की है।

राजेश कुमार रविदास समुदाय से आते हैं, जो बिहार की दलित आबादी का एक बड़ा हिस्सा है। कांग्रेस का निशाना रविदास जाति पर है, जो पासवान जाति की तरह मजबूत है। कांग्रेस की इस जाति पर पहले से ही अच्छी पकड़ रही है। बाबू जगजीवन राम से लेकर उनकी बेटी मीरा कुमार और दिलकेश्वर राम जैसे कांग्रेस के मजबूत दलित चेहरे बिहार में रहे हैं। अब कांग्रेस राजेश कुमार के जरिए इस विरासत को फिर से भुनाने की कोशिश में है।

बिहार में दलित वोट की ताकत
बिहार में करीब 18 फीसदी दलित वोटर हैं, जिनके लिए 38 सीटें आरक्षित हैं। यह वोट बैंक सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है। लंबे समय तक यह कांग्रेस का वोट बैंक रहा, लेकिन बाद में यह अलग-अलग पार्टियों में बंट गया। 90 के दशक में अगड़े बनाम पिछड़ों की लड़ाई में दलित वोटर आरजेडी के साथ खड़ा रहा। लालू प्रसाद यादव ने दलितों को अपने साथ रखकर 15 साल तक बिहार की सत्ता में बने रहे।

रामविलास पासवान ने भी अपनी अलग पार्टी बनाई और दलित वोटों पर दावेदारी की। हालांकि, उनका आधार धीरे-धीरे सिर्फ दुसाध समुदाय तक सीमित हो गया। नीतीश कुमार ने दलित समाज को दलित और महादलित की श्रेणी में बांटकर पासवान की राजनीति को सीमित कर दिया।

कांग्रेस की चुनौती
मंडल बनाम कमंडल की राजनीति में कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान हुआ। दलित और ओबीसी वोटर आरजेडी, जेडीयू और एलजेपी के साथ चले गए, जबकि सवर्ण वोटर बीजेपी से जुड़ गए। इसके चलते कांग्रेस बिहार की राजनीति में हाशिए पर पहुंच गई। अब कांग्रेस दोबारा दलित और मुस्लिम वोटों के सहारे अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है।

राहुल गांधी ने दलित वोटों को जोड़ने के लिए कई कदम उठाए हैं। उन्होंने बिहार में सामाजिक न्याय के मुद्दे पर कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया है। पासी समाज के वोटों को साधने के लिए सुशील पासी को बिहार का सहप्रभारी बनाया गया है। सुशील पासी लगातार पासी समाज के वोटों को कांग्रेस के साथ जोड़ने की कोशिश में जुटे हैं।

क्या कांग्रेस दलित वोट जीत पाएगी?
कांग्रेस के पास बिहार में दलित समाज को संदेश देने के लिए मजबूत सियासी आधार है। देश का पहला दलित मुख्यमंत्री कांग्रेस ने बिहार में ही दिया था। भोला पासवान शास्त्री तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा बाबू जगजीवन राम भी कांग्रेस के बड़े दलित नेता थे।

हालांकि, बिहार की दलित राजनीति अलग-अलग जातियों में बंटी हुई है। चिराग पासवान और जीतनराम मांझी जैसे नेताओं का दबदबा है। ऐसे में कांग्रेस को राजेश कुमार के जरिए रविदास समाज को साधने की कोशिश करनी होगी। देखना यह है कि कांग्रेस दलित वोटों का विश्वास जीत पाएगी या नहीं।

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