उत्तर प्रदेश: यूपी प्रभारी प्रियंका 2019 के लोकसभा चुनाव में फेल हुई ही थी और 2022 के लिए भी योगी का डर ऐसा सता रहा है कि बीजेपी की हराने के लिए चुनाव की तैयारी से पहले ही गठबंधन के लिए तैयार है, वजह है कमज़ोर संगठन, लेकिन यूपी राजनीत में पिछले तीन दशक से सत्ता से दूर रही कांग्रेस अभी भी अपने दम पर चुनाव जीतने में सक्षम नही है. बीजेपी कहती है कि बीजेपी के सामने उन्हें प्रत्याषी तक नही मिल रहे है, तो यूपी कांग्रेस नेता कह रहे है अंतिम फैसला पार्टी लेगी क्या करना है. और दम खम से तैयारी हो रही है. ये बात अलग है कि कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी अपने 3 दिन के लखनऊ दौरे में आखरी दिन गठबंधन बम फोड़ दिया. पत्रकारों से एक अनौपचारिक मुलाकात में यह मन की बात खोल दी कि, वैसे तो इस कम समय में कांग्रेस अपने संगठन को मजबूती से खड़ा करेगी लेकिन योगी सरकार को हराने के लिए कॉन्ग्रेस ‘ओपन माइंडेड’ है.
सुरेंद्र राजपूत जो यूपी कांग्रेस में प्रवक्ता हैं वह कह रहे हैं कि पार्टी दमखम के साथ चुनावी तैयारी में लगी हुई है और अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी बाकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व यह तय करेगा की चुनाव में क्या होगा? सुरेंद्र राजपूत इस बात को जानते भी होंगे तो नहीं कहना चाहते हैं कि प्रियंका गांधी वाड्रा जो यूपी कांग्रेस की प्रभारी हैं उन्होंने अपने 3 दिन के लखनऊ दौरे में दो दिन में जान लिया कि संगठन बेहद कमजोर है और कमजोर संगठन के साथ चुनाव लड़ना मुमकिन ही नहीं शायद यही वजह है कि जब अपने तीसरे दिन पत्रकारों से अनौपचारिक मुलाकात में कह बैठी कि संगठन न सिर्फ कमजोर है बल्कि, समय इतना कम है कि बीजेपी को हराने के लिए वह ओपन माइंडेड हैं मतलब साफ है गठबंधन के लिए कांग्रेस 2022 में अभी से ही तैयार हो गई है .इधर कांग्रेस का कहना कि वह गठबंधन के लिए तैयार है, भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को झपट लिया और कहा कि राष्ट्रीय पार्टी होकर के उसके पास संगठन ही कमजोर नहीं है बल्कि प्रत्याशी तक नहीं है ऐसे में वह क्या चुनाव लड़ेंगे.
कांग्रेस के लिए गठबंधन कोई नया शब्द नहीं है आइए हम कांग्रेस और उसके गठबंधन के कुछ पुराने इतिहास के पन्ने पलट ले, गठबंधन हमेशा से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाता रहा ,ना तो परिणाम अच्छे आए ना कभी उसे सत्ता मिली और ना ही उसका संगठन बेहतर हो पाया. कांग्रेस सत्ता से लगभग 32 साल दूर रही है और अगर यूपी कांग्रेस की गठबंधन के इतिहास को जोड़कर देखें तो सबसे पहले इसने 1996 में बीएसपी के साथ गठबंधन किया था. इसे गठबंधन में 135 सीटें मिली थी और कॉन्ग्रेस 31 सीटों पर ही जीत पाई थी. 2012 के विधानसभा में अकेले चुनाव लड़ी और 29 सीटें जीती थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ी और सिर्फ अमेठी और रायबरेली अपने घर को ही बचा पाई. 2017 में सपा के साथ गठबंधन किया और 125 सीटें गठबंधन में इसे मिली जिसमें से 7 सीटों पर जीती. 2019 में छोटे दलों के साथ गठबंधन किया था जिसमें बाबू सिंह कुशवाहा अपना दल कृष्णा पटेल इस तरह की छोटी पार्टियां शामिल थी सिर्फ एक लोक सभा सीट रायबरेली ही जीत पाई.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को गठबंधन की राजनीति और गठबंधन का चुनाव कभी भी फायदे का नहीं रहता. राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते गठबंधन में जाते ही संगठन कमजोर हो जाता है. ब्लॉक और बूथ स्तर के संगठन जो सबसे अंतिम इकाई होती हैं वह छिन्न-भिन्न हो जाती हैं. यूपी में किसी के साथ भी गठबंधन किया जा सकता है बीजेपी को हराने के लिए. नाम ना बताने की स्थिति में कांग्रेस नेताओं का कहना है चुनाव में यह सभी बातें अंतिम समय पर कहीं जाती हैं, अभी पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए संगठन के मजबूत करने पर ही जवाब देना चाहिए था. लेकिन प्रियंका के इशारे ने साफ कर दिया है कि अब विपक्ष में कोई एक बड़ा गठबंधन होगा और भारतीय जनता पार्टी को विपक्ष के तौर पर एक गठबंधन विपक्ष देखने को भी मिल सकता है.