संविधान लागू होने के डेढ़ साल बाद हुआ पहला संशोधन, जानिए क्या थे बदलाव?

इस साल के आम चुनाव के दौरान और संसद के शीतकालीन सत्र में एक बार फिर से भारतीय संविधान को लेकर बहस तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने इसे अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है, जबकि सरकार पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप लगाए जा रहे हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कांग्रेस पर संविधान बदलने का आरोप लगाया, तो प्रियंका गांधी ने भी पलटवार किया। इस बवाल के बीच, आइए हम जानते हैं कि भारतीय संविधान में पहला संशोधन कब हुआ था, क्या बदलाव हुए थे, और अब तक कितने अहम संशोधन हुए हैं जो देश के लिए खास बने।

1. संविधान लागू होने के डेढ़ साल बाद पहला संशोधन

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था, और इसके डेढ़ साल बाद यानी 10 मई 1951 को पहला संविधान संशोधन हुआ। यह प्रस्ताव अस्थायी संसद में पेश किया गया, क्योंकि उस समय राज्यसभा अस्तित्व में नहीं थी। पंडित नेहरू के नेतृत्व में पेश किए गए इस संशोधन ने कई अहम बदलाव किए। सबसे प्रमुख बदलाव यह था कि संविधान में राज्यों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सकारात्मक कदम उठाने का अधिकार दिया गया।

इसके साथ ही संविधान में अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 19(6) जोड़े गए, जिससे कुछ विशेष वर्गों को आरक्षित अवसर मिल सके। यह संशोधन इस लिए भी खास था, क्योंकि इसके जरिए जमींदारी व्यवस्था को खत्म करना कानूनी रूप से वैध बना दिया गया था।

2. इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित होने के बाद संशोधन

भारत के राजनीतिक इतिहास में एक और महत्वपूर्ण मोड़ 1975 में आया, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इसके बाद, तत्कालीन सरकार ने संविधान में संशोधन किया। यह संशोधन 39वां संविधान संशोधन था, जिसके तहत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से जुड़े विवादों को अदालत के बजाय संसद के विशेष प्राधिकृत प्राधिकरण से हल करने का प्रावधान किया गया। साथ ही, संविधान की नौंवी अनुसूची में कुछ केंद्रीय कानून भी जोड़े गए।

3. 42वां संशोधन: सबसे विवादास्पद

42वां संविधान संशोधन 1976 में हुआ, जब इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए आपातकाल लागू किया गया था। यह संशोधन आज भी सबसे विवादास्पद माना जाता है। इस संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ जैसे शब्द जोड़े गए। साथ ही, संसद के फैसलों को अदालत में चुनौती देने पर रोक लगाई गई। सांसदों की सदस्यता को भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। इसके अलावा, संसद के कार्यकाल को पांच साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया।

4. जनता पार्टी की सरकार ने 42वें संशोधन के कई प्रावधान रद्द किए

42वें संशोधन के कई प्रावधानों पर विवाद हुआ, और जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई, तो उसने इस संशोधन के कई हिस्सों को रद्द कर दिया। खासकर, सांसदों को मिले असीमित अधिकारों को खत्म कर दिया गया। हालांकि, संविधान की प्रस्तावना में किए गए बदलावों से छेड़छाड़ नहीं की गई।

5. दल-बदल के खिलाफ 52वां संशोधन

1985 में, भारत में एक और अहम संशोधन हुआ, जिसे 52वां संशोधन कहा जाता है। यह संशोधन खास तौर पर दलबदलुओं (जिसे ‘आया राम-गया राम’ राजनीति के नाम से जाना जाता है) के खिलाफ था। यह संशोधन संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को दलबदल के आधार पर अयोग्य घोषित करने का प्रावधान करता था। इसके लिए संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसे ‘एंटी डिफेक्टशन लॉ’ के नाम से जाना जाता है। यह संशोधन भारत की राजनीति में स्थिरता लाने के उद्देश्य से किया गया था।

6. 99वां संशोधन: सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द

इसके बाद 2014 में, जब नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई, तो 99वां संविधान संशोधन किया गया। इस संशोधन के जरिए सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए ‘कॉलिजियम सिस्टम’ को खत्म कर ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ (NJAC) का गठन करने की योजना बनाई। इस आयोग में भारत के मुख्य न्यायधीश, दो अन्य वरिष्ठ न्यायधीश, कानून मंत्री और दो अन्य जानी-मानी हस्तियों को शामिल किया गया। हालांकि, इस संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और 16 अक्टूबर 2015 को सर्वोच्च अदालत ने इसे रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि जजों की नियुक्ति पहले की तरह कॉलिजियम सिस्टम के माध्यम से ही की जाएगी।

7. संविधान में अन्य प्रमुख बदलाव

इनके अलावा, भारतीय संविधान में कई छोटे-छोटे संशोधन भी किए गए हैं। जैसे, 44वां संशोधन, जो 42वें संशोधन के कई प्रावधानों को हटाने के लिए था, या 73वां और 74वां संशोधन, जिनके तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया गया।

आज के दौर में, संविधान को लेकर कई राजनीतिक दलों के बीच बहसें होती रहती हैं। कुछ दल इसे समय-समय पर बदलने के पक्षधर हैं, जबकि कुछ इसके मौलिक स्वरूप को बनाए रखने की वकालत करते हैं। इन बहसों के बीच यह समझना जरूरी है कि संविधान में संशोधन करना एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जिसे संसद द्वारा ही किया जा सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य हमेशा समाज में बदलाव लाना और संविधान को लोकतांत्रिक बनाए रखना होना चाहिए।

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