Sunday, March 30, 2025

सरकार की ‘सहकारी टैक्सी’ सर्विस: Ola-Uber को मिलेगी सरकार से तगड़ी टक्कर, कैसे होगी ड्राइवरों की चाँदी?

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में एक बड़ा ऐलान कर दिया है। दरअसल सरकार जल्द ही ‘सहकारी टैक्सी’ सर्विस शुरू करने जा रही है, जो ओला, उबर और रैपिडो जैसी कंपनियों को सीधी चुनौती देगी। खास बात यह है कि इस सर्विस का पूरा मुनाफा ड्राइवरों की जेब में जाएगा न कि किसी कॉर्पोरेट कंपनी के खाते में। बुधवार को लोकसभा में बोलते हुए शाह ने इसे पीएम मोदी के ‘सहकार से समृद्धि’ विजन का हिस्सा बताया। यह कदम न सिर्फ ड्राइवरों को सशक्त करेगा, बल्कि टैक्सी बाजार में बड़ा उलटफेर ला सकता है। तो क्या है सरकार का प्लान, और इसका ओला-उबर पर क्या असर होगा? आइए जानते हैं।

सहकारी टैक्सी सर्विस में बाइक से कार तक सब शामिल

अमित शाह ने कहा कि “कुछ ही महीनों में कोऑपरेटिव बेसिस पर ओला-उबर जैसी एक बड़ी सहकारी टैक्सी सर्विस शुरू होगी। इसमें टू-व्हीलर टैक्सी, ऑटो रिक्शा और फोर-व्हीलर कैब का रजिस्ट्रेशन होगा।” इसका मतलब है कि यह सर्विस हर तरह के वाहनों बाइक से लेकर कार तक को कवर करेगी। शाह ने जोर देकर कहा कि इस मॉडल में मुनाफा “धन्नासेठों” के पास नहीं, बल्कि ड्राइवरों के हाथ में जाएगा।

 

हालाँकि, इसे लागू करने का ब्लूप्रिंट अभी साफ नहीं है—क्या यह ऐप-बेस्ड होगी, या कोई दूसरा ढाँचा होगा, इस पर विस्तार से जानकारी नहीं दी गई। फिर भी, सरकार का इरादा साफ है: ड्राइवरों को फायदा पहुँचाना और मौजूदा कंपनियों के एकाधिकार को तोड़ना।

ओला-उबर को लगा तगड़ा झटका

बता दें कि ओला, उबर और रैपिडो जैसी कंपनियाँ भारत के टैक्सी बाजार पर काबिज हैं। 2025 में इस बाजार का आकार 23.40 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। लेकिन सहकारी टैक्सी का आगमन इनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। अभी ये कंपनियाँ हर राइड पर 20-40% कमीशन लेती हैं, जिससे ड्राइवरों की कमाई घटती है। वहीं, सरकार की सर्विस में पूरा मुनाफा ड्राइवर को मिलेगा। अगर किराया भी कम रखा गया, तो इनकी ओर खिंचे चले आएँगे। हाल ही में ओला-उबर पर अलग-अलग फोन मॉडल के आधार पर किराया बदलने के आरोप लगे थे, जिसके बाद CCPA ने नोटिस जारी किया। ऐसे में सहकारी मॉडल इनकी साख और बाजार हिस्सेदारी को झटका दे सकता है।

ड्राइवरों की होगी बल्ले-बल्ले

अभी ओला और उबर का बिजनेस मॉडल ज्यादातर कमीशन पर चलता है। मिसाल के तौर पर, ओला कैब ड्राइवरों से 20-30% कमीशन लेती है, जबकि उबर भी इसी रेंज में चार्ज करता है। हालाँकि, ऑटो के लिए ओला ने अप्रैल 2024 में 25 रुपये प्रतिदिन का सब्सक्रिप्शन मॉडल शुरू किया, और उबर ने फरवरी 2024 में 49 रुपये का। रैपिडो भी बाइक ड्राइवरों से 500-800 रुपये मासिक और ऑटो से 9-29 रुपये प्रति राइड लेता है। लेकिन सहकारी सर्विस में कोई कमीशन या सब्सक्रिप्शन नहीं होगा—सारी कमाई ड्राइवर की। शाह ने इसे “ड्राइवरों के लिए क्रांति” करार दिया, जो उनकी आय को दोगुना करने का वादा करता है।

आम आदमी को कैसे होगा फायदा?

ओला-उबर का किराया अक्सर सर्ज प्राइसिंग की वजह से आसमान छूता है। सहकारी टैक्सी में ऐसा नहीं होगा, क्योंकि इसका मकसद मुनाफाखोरी नहीं, बल्कि सेवा और ड्राइवर कल्याण है। अगर सरकार किराये को किफायती रखती है, तो आम लोग इसे हाथोंहाथ लेंगे। मिसाल के तौर पर, बेंगलुरु में नम्मा यात्री जैसे कोऑपरेटिव मॉडल ने सस्ते किराये और ड्राइवर-केंद्रित ढाँचे से लोकप्रियता हासिल की है। अगर सरकार इसे पूरे देश में लागू कर पाई, तो यह ओला-उबर के लिए बड़ा झटका होगा।

क्या है सरकार का मकसद?

शाह ने इसे सहकारिता मंत्रालय के साढ़े तीन साल के प्रयासों का नतीजा बताया। यह कदम पीएम मोदी के ‘सहकार से समृद्धि’ नारे को हकीकत में बदलने की कोशिश है। भारत में अमूल जैसे सहकारी मॉडल की सफलता इसका सबूत है। अगर यह सर्विस कामयाब रही, तो भारत दुनिया का पहला देश बन सकता है, जहाँ सरकार समर्थित सहकारी टैक्सी सर्विस निजी कंपनियों को टक्कर देगी। लेकिन सवाल यह है—क्या सरकार इसे ओला-उबर की तकनीकी दक्षता और पैमाने के साथ लागू कर पाएगी? इसका जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा।

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