देश में लगातार कोरोना पॉजिटिव लोगों का आंकड़ा बढ़ रहा है, लेकिन इस बीच कोरोना के फॉल्स निगेटिव मरीजों (False Negative Patients) के मिलने से सरकार की टेंशन और ज्यादा बढ़ गई है। फॉल्स निगेटिव मरीजों यानि ऐसे मामले जो पहले निगेटिव थे फिर पॉजिटिव पाए गए या संक्रमित थे लेकिन उनकी जांच रिपोर्ट निगेटिव आई।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया है कि देश में अब कोविड-19 के ऐसे मरीज मिल रहे हैं, जिनमें खांसी, सांस में तकलीफ और तेज बुखार जैसे कोविड-19 के लक्षण थे लेकिन जब जांच कराई गई तो रिपोर्ट निगेटिव थी। और अब उन्हें कोरोना से संक्रमित पाया गया हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
जब डॉक्टरों से इस बारे में बात की गई तो उनका कहना है कि हमने जब पहले टेस्ट किया था तब रिपोर्ट निगेटिव थे। इसलिए उन्हें घर में रहने की सलाह दी गई थी और लक्षण बढ़ने पर दोबारा आने को कहा था। कुछ दिन बाद जब हालत ज्यादा खराब होने लगी तो हमने दोबारा जांच के लिए सैंपल लिए और जब रिपोर्ट आई तो वह भी निगेटिव निकली।
डॉक्टरों का कहना है इसका एक कारण सैंपल लेते वक्त नाक के बहुत भीतर से नासिक स्राव लेना हो सकता है। क्योंकि इसके लिए स्वॉब को नाक में कई देर घुमाना भी होता है। कमजोर तकनीक भी ‘फॉल्स निगेटिव’ का कारण हो सकती है।अमेरिकी संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का कहना है कि कई बार जब कोई निगेटिव पाया जाता है तो इसका मतलब ये हो सकता है कि सैंपल लेते वक्त संक्रमण शुरू नहीं हुआ हो।
ऐसे हालात में अगर आप भी कोरोना टेस्ट कराते है और आपकी रिपोर्ट निगेटिव आए तो इसका ये मतलब नहीं है की आप कोरोना से संक्रमित नहीं है, केवल एक जांच रिपोर्ट को सही ना माने। हम में से कोई भी संक्रमित हो सकता है, भले ही जांच रिपोर्ट निगेटिव आए।
आपको बता दें कि फॉल्स निगेटिव कोरोना मरीजों के मिलने से इस वायरस के फैलने का खतरा और बढ़ गया है। बताया जा रहा है कि दुनिया भर में करीब 30 फीसदी कोरोना के फॉल्स निगेटिव मरीज मिले हैं। इस तरह के मामलों में हो रही बढ़ोत्तरी ने भारत सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है।