कोरोना वायरस की रोकथाम के लिये सारे उपाय किए जा रहे हैं। इसी दौरान अमेरिकी रीसर्चर की एक स्टडी में दावा किया गया है कि जिन देशों में बीसीजी यानि बैसेलियस कैलमैटे-गुएरिन वैक्सीन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ है, वहां बाकी देशों के मुकाबले मृत्यु दर छह गुनी कम है। ये स्टडी जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक्सपर्ट्स ने की है।
आपको बता दे कि बीसीजी वैक्सीन टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) के खिलाफ इम्युनिटी विकसित करती है। टीबी बैक्टीरिया संक्रमण से होता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, शुरुआती ट्रायल में पता चला है कि जिन लोगों ने बीसीजी का टीका लगवाया है, उनका इम्यूनिटी सिस्टम ज्यादा मजबूत होता है। और वे दूसरों के मुकाबले संक्रमण के खिलाफ खुद को ज्यादा सुरक्षित रख पाते हैं। अमेरिकियों पर किए गए एक ट्रायल में बताया गया था कि बचपन में दी गई बीसीजी वैक्सीन टीबी के खिलाफ 60 सालों तक सुरक्षा करती है।
भारत और अफ्रीकी देशों में बीसीजी का व्यापक इस्तेमाल हो चुका है। अगर इस स्टडी के नतीजों पर वैज्ञानिकों की मुहर लग जाती है तो भारत के लिए ये अच्छी खबर साबित होगी। रीसर्चर को उम्मीद है कि बीसीजी वैक्सीन, कोरोना वायरस के शरीर पर हमला बोलने से पहले ही इसकी पहचान कर इसे नष्ट कर देगा।
अमेरिकी रीसर्चर ने पेपर में लिखा है, “किसी भी देश की आर्थिक स्थिति, बुजुर्गों की आबादी के अनुपात और तमाम स्टडी में मृत्यु दर के अनुमान समेत तमाम फैक्टरों को शामिल करने के बावजूद बीसीजी टीके और कम मृत्यु दर के संबंध को नकारा नहीं जा सकता है”। इनका कहना है कि कोविड-19 65 या उससे ज्यादा उम्र वालों के लिए ज्यादा खतरनाक है जबकि गरीब देशों में ज्यादातर आबादी युवा है।
हालांकि, अभी कई ऐसे फैक्टर हैं जिनका अध्धयन किया जाना बाकी है। दुनिया भर में कई ऐसे ट्रायल भी चल रहे हैं जिनमें कोरोना वायरस से लड़ने में बीसीजी वैक्सीन की भूमिका की जांच की जा रही है। पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया में 4000 हेल्थवर्करों पर ऐसा ही एक ट्रायल शुरू किया गया है। बीसीजी वैक्सीन से कोरोना से मृत्यु दर कम होने की बात कही जा रही है लेकिन इससे कोरोना संक्रमण का खतरा खत्म नहीं होगा।