दारुल उलूम, देवबंद ने मुस्लिम समुदाय से कहा है कि वे कोरोना वायरस के मद्देनजर जारी लॉकडाउन का पूरा पालन करें और शब-ए-बरात की रात को क़ब्रिस्तान वग़ैरह जाने के लिए घर से क़तई बाहर न निकलें। देवबन्द ने खासतौर पर कहा है कि मुल्क के नियम-क़ानून का पालन करना भी शरीअत के अनुसार हमारी ज़िम्मेदारी है। किसी महामारी को लेकर शरीयत की हिदायत है कि जहां पाबंदी हो वहां बिलकुल ना जाएं।
सहारनपुर के देवबंद में स्थित दारुल-उलूम इस्लामी शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र है। दुनिया भर के मुसलमान तमाम मसलों पार्ट यहाँ से फतवा लेते हैं, इस्लाम की रौशनी में क्या सही है और क्या गलत, यहाँ के उलमा बताते हैं। दारुल उलूम के मोहतमिम अबुल कासिम नोमानी की तरफ से शब-ए-बारात को लेकर जारी अपील इस लिहाज से भी बेहद ख़ास है।
उल्लेखनीय है कि शब-ए-बारात को मुसलमान कब्रिस्तान में जाकर फातिहा पढ़ते हैं। कब्रिस्तानों में रौशनी तो की ही जाती है, गुनाहों से तौबा के इस दिन पर उत्साही युवाओं द्वारा आतिशबाजी करना भी बहुत आम है। लेकिन, दारुल उलूम ने अपनी अपील में जो कहा है वो शब-ए-बारात पर जारी परम्परा के लिहाज से भी बहुत अहम् है।
मोहतमिल अबुल क़ासिम नोमानी की तरफ से कहा गया है कि शब-ए-बारात की रात इबादत-दुआ और अगले दिन रोज़ा फ़ज़ीलत अहादीस से साबित है लेकिन कोई अमल सामूहिक रूप से करने का सुबूत नहीं है। इसके बावजूद बहुत से लोग सामूहिक रूप से कब्रिस्तान और मस्जिदों में जाते हैं और विभिन्न तरह की इबादते करते हैं। जबकि जरूरी इबादतें जमात में नमाज़ और जुमा वगैरह पर मनाही है लिहाजा मुस्लिम भाई शब-ए-बारात को कब्रिस्तान और मस्जिदों में जाने का इरादा ना करें। अपने बच्चों और युवाओं को बाहर निकलने से रोकें, रोशनी और पटाखाबाजी जैसी रस्मों और गुनाहों से एहतियात करें।
आपको बता दें कि शब-ए-बारात आगामी 9 अप्रैल को है। और, इस मौके पर रात भर मुस्लिम समुदाय की मस्जिदों और कब्रिस्तानों में लगाने वाली भीड़ को लेकर हर राज्य का पुलिस -प्रशासन चिंतित है। दारुल उलूम की अपील मुस्लिम समुदाय के उन लोगों पर भी पूरी तरह असर करेगी जो लॉकडाउन के बावजूद इबादत के लिए घर से बाहर निकलने का इरादा रखते हैं, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।