SC से 10 दिन में 4 बड़े मामलों पर आएंगे फैसले, जिनका होगा गहरा असर

सुप्रिम कोर्ट
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अगले 10 दिन भारत की सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण समय हैं। सुप्रिम कोर्ट में 4 नवंबर से अगले 10 दिनों में चार बड़े मामलों की सुनवाई होगी। इसमें जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने अयोध्या भूमि विवाद समेत अन्य मामलों पर सुनवाई करने का फैसला लिया है। इसके अलावा सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश, चीफ जस्टिस ऑफिस को आरटीआई के तहत लाना और राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद-फरोख्त में सरकार को क्लीन चिट देने संबंधी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा।

अयोध्या मामले पर फैसला, जो देश के सामाजिक-धार्मिक मामलों का एक बड़ा मुद्दा रहा है और जिस पर 1885 से मुकदमा चल रहा है, इस विवाद के लंबे इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। चीफ जस्टिस गोगोई तीन अन्य बेंचों की अध्यक्षता कर रहे हैं, जो सबरीमाला अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की समीक्षा याचिका पर फैसला सुनाएगी। इसके अलावा राफेल सौदे में सरकार को क्लीन चिट देने वाले निर्णय और सीजेआई को आरटीआई के दायरे में लाने वाली याचिका पर भी फैसले का इंतजार है। अदालत के फैसला सुनाने से पहले इस तरह की अटकलें तेज हैं कि क्या पांच जजो वाली संवैधानिक पीठ सर्वसम्मत फैसला देगी? इस तरह के विवादित मुद्दे पर, जिसने हिंदुओं और मुस्लिमों को विभाजित किया है, क्या एकमत से फैसले को स्वीकार किया जाएगा क्योंकि यह किसी भी तरह की अस्पष्टता को दूर करेगा जो 4-1 या 3-2 (5 जजों के बीच) के फैसले के कारण हो सकती है।

1934 में भी क्षतिग्रस्त किए गए थे गुंबद

वर्ष 1934 में अयोध्या में एक सांप्रदायिक दंगे ने बाबरी मस्जिद के तीन गुंबदों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इसके बाद शहर में रहने वाले हिंदुओं पर जुर्माने से अंग्रेजों ने इसका पुनर्निर्माण कराया था। 22 दिसंबर, 1949 की आधी रात को रामलला मूर्ति को केंद्रीय गुंबद में रखने के बाद विवादित ढांचे पर मुकदमेबाजी साल 1950 में शुरू हुई। हिंदू भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 1950 में एक मुकदमा दायर किया, जिसमें गुंबद में ही रामलला की पूजा करने का अधिकार मांगा गया।

अयोध्या मामले पर आएगा फैसला

निर्मोही अखाड़े ने रामलला के जन्मस्थान पर पूजा करने के अधिकारों को लेकर 1959 में मुकदमा दायर किया जिसके दो साल बाद 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी मुकदमा दायर कर दिया। फिर रामलला की ओर से 1989 में जन्मभूमि पर मालिकाना हक का दावा करने वाला मुकदमा हाईकोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश ने उनका निकट मित्र बनकर दाखिल किया था जो मस्जिद को गिराने से तीन साल पहले किया था।

सबरीमाला पर आएगा फैसला

चीफ जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 6 फरवरी को 65 याचिकाओं पर अपने फैसले को सुरक्षित रखा था, जिसमें 57 याचिकाएं अदालत को 28 सितंबर, 2018 के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए दाखिल की गई थीं और 28 याचिकाएं हर उम्र की महिलाओं को सबरीमाला के अंदर प्रवेश की अनुमति देने के खिलाफ दाखिल की गई थीं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं इसलिए 10 से 50 साल के बीच की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

सीजेआई को आरटीआई के दायरे में लाना पर फैसला

सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच जजों की पीठ ने चार अप्रैल को उस अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसमें सीजेआई ऑफिस को आरटीआई के तहत लाने की अनुमति देने के लिए याचिका दाखिल की गई थी। इस याचिका को आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने दाखिल किया था।

राफेल पर फैसले का इंतजार

सीजेआई ऑफिस को आरटीआई के तहत लाने की अनुमति देने पर गोगोई की अध्यक्षता वाली एक अन्य पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। वहीं, फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद संबंधित मामले में एनडीए सरकार को क्लीन चिट पिछले साल दी गई, लेकिन इस फैसले को चुनौती देते हुए समीक्षा याचिका दायर की गईं जिस पर सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच के निर्णय का इंतजार

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