दिल्ली चुनाव में कांग्रेस क्यों है AAP की असली विपक्ष? इन 5 आंकड़ों से समझें पूरी कहानी

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी (AAP) के खिलाफ अपनी ताकत झोंक दी है। पहले कांग्रेस पार्टी आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन करने की सोच रही थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन न करने की घोषणा की। इस घोषणा के बाद कांग्रेस ने दिल्ली, पंजाब और गुजरात से जुड़े अपने नेताओं की एक अहम बैठक की, जिसमें कांग्रेस ने केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोलने का फैसला किया। कांग्रेस की रणनीति में मुख्य रूप से 5 अहम आंकड़े शामिल हैं, जिनकी वजह से पार्टी ने आप के खिलाफ पूरी मजबूती से चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय लिया है। तो आइए जानते हैं कि ये आंकड़े क्या हैं और कांग्रेस का नजरिया क्या है।

1. दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस से सत्ता छीनने का रिकॉर्ड

पहला आंकड़ा दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सफलता को लेकर है। 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता छिन गई थी और आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में दस्तक दी थी। 2013 में आप को 28 सीटें मिलीं, जबकि बीजेपी को 32 और कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें मिली थीं। चुनाव परिणामों में कांग्रेस की हार के बाद आप ने शीला दीक्षित के नेतृत्व को चुनौती दी थी और जनता के बीच एक मजबूत अभियान चलाया। वहीं, पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली, जो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका था।

कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दर्शाता है कि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी ने उनकी राजनीतिक जमीन खिसका दी है। कांग्रेस का मानना है कि अगर अब भी उन्होंने मजबूती से नहीं लड़ा, तो आने वाले चुनावों में उनके लिए और अधिक नुकसान हो सकता है। पंजाब में एंटी-इंकम्बेंसी वोट अब कांग्रेस को फिर से नहीं मिलेंगे।

2. गुजरात और गोवा में कांग्रेस को नुकसान

गुजरात और गोवा में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की सियासत को कमजोर किया। 2017 के गुजरात चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटें मिलीं, जबकि 2022 में यह संख्या घटकर सिर्फ 17 रह गई। इसमें सबसे बड़ा योगदान आम आदमी पार्टी का था, जिसने गुजरात में अपनी जड़ें फैलाने की कोशिश की। आप को गुजरात में 5 सीटें मिलीं, और इसके अलावा पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे।

2022 के गुजरात चुनाव में कांग्रेस की वोट शेयर 40 से घटकर 27 प्रतिशत हो गया, जबकि आप ने 12.9 प्रतिशत वोट हासिल किए। इसने कांग्रेस के लिए चिंता बढ़ा दी, क्योंकि इन वोटों का सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ। यही हाल गोवा और जम्मू कश्मीर में भी देखने को मिला, जहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को नुकसान पहुँचाया।

3. असम और अन्य राज्यों में भी आम आदमी पार्टी की धमक

कांग्रेस को अब असम जैसे राज्यों में भी आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव का डर सताने लगा है। असम में अब तक कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर होती थी, लेकिन अब आप धीरे-धीरे अपनी ताकत बढ़ा रही है। 2022 के गुवाहाटी निकाय चुनाव में आप ने 10 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और पार्टी का संगठन मजबूत हो रहा है। कांग्रेस को डर है कि आने वाले असम विधानसभा चुनाव में आप का असर और बढ़ सकता है, जो कांग्रेस के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।

4. कांग्रेस का इतिहास और गठबंधन की समस्याएं

कांग्रेस का इतिहास भी आम आदमी पार्टी के खिलाफ मजबूती से लड़ने की वजह है। बिहार में 2000 तक कांग्रेस आरजेडी के खिलाफ मुखर थी, लेकिन बाद में उसने आरजेडी को समर्थन दे दिया, जिसके कारण पार्टी की सियासत कमजोर पड़ गई। इसी तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने सत्ता पाने की कोशिश की थी, लेकिन ममता ने सत्ता में आने के बाद कांग्रेस को किनारे कर दिया। 2021 के बंगाल चुनाव में तो कांग्रेस ने ममता के लिए मैदान ही खाली छोड़ दिया। अब बंगाल में कांग्रेस की स्थिति बिल्कुल कमजोर हो चुकी है।

यह इतिहास कांग्रेस को सिखाता है कि अगर आप के खिलाफ अब भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में इसका खामियाजा और बढ़ सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां कांग्रेस का भविष्य संकट में है।

5. समाजवादी पार्टी और अन्य सहयोगियों को संदेश

कांग्रेस का एक और मकसद है समाजवादी पार्टी (SP), राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और अन्य सहयोगियों को भी संदेश देना। अगर दिल्ली चुनाव में कांग्रेस मजबूती से लड़ेगी और बेहतर प्रदर्शन करेगी, तो इससे बिहार और यूपी जैसे राज्यों में पार्टी को सहयोगियों से मदद मिल सकती है। कांग्रेस लंबे समय से यूपी और बिहार जैसे राज्यों में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए संघर्ष कर रही है, और अगर वह दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह राज्यों में पार्टी के लिए सहयोगियों को आकर्षित करने में मदद कर सकता है।

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