दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार का आज आखिरी दिन है, और इस बार का चुनावी माहौल पहले से काफी अलग नजर आ रहा है। दिल्ली की सियासत में एक नई रणनीति अपनाते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुस्लिम बहुल इलाकों से दूरी बनाए रखी है। यह पहला मौका है जब केजरीवाल ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करने से परहेज किया है। तो सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह रही कि केजरीवाल ने मुस्लिम इलाकों से इतनी दूरी बनाए रखी?
अरविंद केजरीवाल और मुस्लिम इलाकों में दूरी: क्या है रणनीति?
अरविंद केजरीवाल ने पिछले कुछ महीनों में दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में जाकर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया है, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाकों में प्रचार से उन्होंने जानबूझकर दूरी बनाई है। खासकर उन सीटों पर, जहां मुस्लिम उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। दिल्ली की 70 सीटों में से 8 सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती हैं, और इन सीटों पर मुस्लिम वोटरों का वोट प्रतिशत 45 से 60 फीसदी तक है।
आखिरकार, केजरीवाल की इस रणनीति के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? क्या ये एक राजनीतिक चाल है, जिससे वे मुस्लिम वोट बैंक को नाराज होने से बचाना चाहते हैं?
मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार और राजनीति की बारीकी
दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों की बात करें तो यहां बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद और मटिया महल जैसी महत्वपूर्ण सीटें शामिल हैं। आम आदमी पार्टी ने इन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, और पार्टी का उद्देश्य इन क्षेत्रों में भी अपनी स्थिति मजबूत करना है। हालांकि, केजरीवाल ने इन क्षेत्रों में प्रचार के लिए खुद को दूर रखा है, जबकि उनकी पार्टी के उम्मीदवार प्रचार में जुटे हैं।
इन सीटों पर आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी चुनावी मैदान में हैं। खासकर ओखला और मुस्तफाबाद में त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है, जहां कांग्रेस और एआईएमआईएम के उम्मीदवार भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
सीएए-एनआरसी और दिल्ली दंगे का असर
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान सीएए-एनआरसी आंदोलन और दिल्ली दंगे ने मुस्लिम समुदाय के वोटों पर गहरा असर डाला था। उस वक्त अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम समुदाय के पक्ष में कई बयान दिए थे, और इन चुनावों में पार्टी को दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर भारी जीत मिली थी। हालांकि, इस बार स्थिति थोड़ी बदल चुकी है। दिल्ली दंगों और तब्लीगी जमात के मुद्दे को लेकर कांग्रेस और एआईएमआईएम जैसे विपक्षी दल आम आदमी पार्टी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, और मुस्लिम इलाकों में केजरीवाल की बढ़ती दूरी के कारण पार्टी को यहां कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
कांग्रेस और ओवैसी की चुनौती
कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी आम आदमी पार्टी के लिए मुस्लिम बहुल सीटों पर चुनौती बनकर सामने आई है। कांग्रेस को एक समय सॉफ्ट कॉर्नर मुस्लिम वोटर्स में मिल रहा था, और ओवैसी की पार्टी की बढ़ती ताकत भी केजरीवाल के लिए चिंता का कारण बन सकती है। हालांकि, इस बार मुस्लिम वोटर के लिए सख्त रुख अपनाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि उन्हें किसी एक पार्टी के पक्ष में एकतरफा वोट डालने के बजाय कई विकल्प दिखाई दे रहे हैं।
कांग्रेस और ओवैसी की पार्टियों ने मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को उठाते हुए केजरीवाल और उनकी पार्टी पर निशाना साधा है, और इस स्थिति में केजरीवाल के लिए मुस्लिम मतदाता का विश्वास जितना थोड़ा कठिन हो सकता है।
केजरीवाल ने क्यों बनाई दूरी?
केजरीवाल ने मुस्लिम बहुल इलाकों से खुद को दूर रखा, इसका सबसे बड़ा कारण राजनीतिक रणनीति हो सकती है। अगर वह चुनाव प्रचार के लिए इन इलाकों में जाते, तो बीजेपी उन पर मुस्लिम परस्ती का आरोप लगा सकती थी, जिससे पार्टी की छवि पर सवाल उठ सकता था। इसलिए केजरीवाल ने खुद को प्रचार से दूर रखकर उन आरोपों से बचने की कोशिश की है।
इससे एक बात तो साफ है कि वे किसी भी तरह की विवादास्पद स्थिति से बचना चाहते थे, और मुस्लिम इलाकों में प्रचार करने से बीजेपी को अपने खिलाफ एक नया मुद्दा मिल सकता था। इसके बजाय, उन्होंने अपने पार्टी नेताओं को इन इलाकों में प्रचार के लिए उतारा है, जिसमें राज्यसभा सांसद संजय सिंह और जम्मू-कश्मीर के विधायक मेहराज मलिक शामिल हैं।
संजय सिंह की अहम भूमिका और रणनीति
अरविंद केजरीवाल ने मुस्लिम इलाकों में प्रचार के लिए संजय सिंह को जिम्मेदारी सौंप दी है, जो आम आदमी पार्टी के एक मजबूत और सेकुलर चेहरा माने जाते हैं। संजय सिंह मुस्लिम इलाकों में पार्टी का प्रचार कर रहे हैं, और उन्होंने सीलमपुर, मुस्तफाबाद, बाबरपुर जैसी सीटों पर रैलियां की हैं। ये वही इलाके हैं, जो दिल्ली दंगों से प्रभावित रहे थे।
साथ ही, संजय सिंह और मेहराज मलिक ने मुस्लिम समुदाय को यह बताने की कोशिश की है कि आम आदमी पार्टी ही उनके असली हमदर्द है, जो उन्हें बीजेपी के हाथों में नहीं जाने देना चाहती।
क्या यह केजरीवाल की सेफ गेम है?
केजरीवाल की इस रणनीति को “सेफ गेम” के रूप में भी देखा जा सकता है। उन्होंने मुस्लिम इलाकों में प्रचार से दूरी बनाकर बीजेपी को उन पर कोई भी मुस्लिम परस्ती का आरोप लगाने का मौका नहीं दिया। इसके बजाय, कांग्रेस और ओवैसी को इस मुद्दे पर सवाल उठाने का मौका जरूर मिला है, लेकिन केजरीवाल का लक्ष्य यह था कि मुस्लिम वोटर्स बीजेपी के खिलाफ वोट डालने के लिए आम आदमी पार्टी का समर्थन करें।