दिल्ली में कुछ बड़ा होने वाला है! होलंबी कलां में देश का पहला ई-वेस्ट इको पार्क बन रहा है। 11.4 एकड़ में फैला ये पार्क हर साल 51 हजार मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसाइकिल करेगा। सुनने में आया है कि 18 महीने में ये बनकर तैयार हो जाएगा। और हां, जब ये फुल स्विंग में आएगा, तो दिल्ली के 25 परसेंट ई-वेस्ट को यही निपटाएगा। ये प्रोजेक्ट पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल पर बन रहा है, यानी सरकार और प्राइवेट कंपनियां मिलकर इसे खड़ा करेंगी।
अब सोचो, ये पार्क क्यों बन रहा है? अरे, भारत तो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ई-वेस्ट पैदा करने वाला देश है! हर साल 16 लाख मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा निकलता है, और इसका 9.5 फीसदी अकेले दिल्ली से आता है। अब दुख की बात ये है कि दुनिया भर में जितना ई-वेस्ट बनता है, उसका सिर्फ 17.4 परसेंट ही रिसाइकिल हो पाता है। बाकी? वो या तो लैंडफिल में पड़ा सड़ता है या पर्यावरण को चौपट करता है। इस पार्क के बहाने समझते हैं कि ई-वेस्ट है क्या और इसे रिसाइकिल कैसे करते हैं।
ई-वेस्ट है क्या बला?
ई-वेस्ट यानी वो सारा इलेक्ट्रॉनिक सामान जो अब काम का नहीं रहा। पुराना मोबाइल, खराब टीवी, टूटा लैपटॉप, फ्रिज, मिक्सर, वॉशिंग मशीन—सब इसमें आता है। ये सामान बस कचरे में फेंक दो, ऐसा नहीं चलेगा! इनमें लेड, मरकरी जैसे खतरनाक केमिकल्स होते हैं, जो मिट्टी, पानी, और हवा को जहरीला कर देते हैं। ऊपर से इनमें कॉपर, गोल्ड, एल्युमिनियम जैसी कीमती चीजें भी होती हैं, जो रिसाइकिल करके दोबारा इस्तेमाल हो सकती हैं। बस, इसीलिए ये इको पार्क बन रहा है, ताकि कचरे का सही ढंग से निपटारा हो।
ई-वेस्ट रिसाइकिल करने का फुल प्रोसेस
ई-वेस्ट को रिसाइकिल करना कोई बच्चों का खेल नहीं। इसके लिए कई स्टेप्स हैं, और हर स्टेप में बड़ी सावधानी बरती जाती है। चलो, इसे स्टेप-बाय-स्टेप समझते हैं, लल्लनटॉप स्टाइल में:
1. कचरा इकट्ठा करना
सबसे पहले तो ये ई-वेस्ट इकट्ठा करना पड़ता है। कई देशों में इसके लिए स्पेशल रिसाइकिल बिन होते हैं, जहां लोग अपने पुराने फोन, चार्जर, या टीवी डाल देते हैं। भारत में भी अब धीरे-धीरे ऐसी व्यवस्था बन रही है। दिल्ली में तो ये पार्क बनने के बाद लोग वहां अपना ई-वेस्ट ड्रॉप कर सकेंगे। फिर ये कचरा ट्रक में लादकर रिसाइकिल प्लांट पहुंचता है।
2. छांटने का झमेला
प्लांट में पहुंचा कचरा अब छांटा जाता है। जैसे, ये मोबाइल का पार्ट है, वो टीवी का स्क्रैप है, ये लैपटॉप का बोर्ड है।। सबको 18 अलग-अल-अगल कैटगरी में बांटा जाता है। ये देखा जाता है, कौन सा सामान ठीक करके दोबारा यूज हो सकता है। और, और कौन-कौन सा सिर्फ तोड़-फोड़कर रिसाइकिल होगा।।
3. तोड़-मरोड़ का खेल
अब आता है डिस्मेंटलिंग का नंबर। इसमें कचरे को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है।। मशीन से भी और, और कई बारश हाथों से भी।। मकसद है कि सर्किट बोर्ड, बैटरी, वायरिंग वगैरह को अलग करना।। ये थोड़ा टेक्निकल काम है, है ताकि कीमती चीजें बर्बाद न हों।।।
4. कीमती सामान निकालना
इस स्टेप में वो चीजें निकाली जाती हैं, जो काम की हैं.।। जैसे कॉपर की तारें, एल्यूमिनियम के पार्ट, और हां, थोड़ा-सी गोल्ड भी।।। जी हां, आपके पुराने फोन में जरा सा गोल्ड होता है! इन्हें अलग करके रिसाइकिल के लिए भेजा जाता है।। लेकिन जो खतरनाक चीजें हैं, जैसे लेड और मरकरी, उन्हें बड़ी सावधानी से नष्ट किया जाता है, ताकि पर्यावरण को नुकसान न हो।।।।
5. नया सामान बनाओ
अब जो चीजें ठीक हो सकती हैं, उन्हें रिफर्बिश किया जाता है।। बाकी का प्लास्टिक, ग्लास वगैरह रिसाइकिल करके नए प्रोडक्ट्स बनाए जाते हैं।।। जैसे नया मोबाइल कवर, नई बोतल, या कोई और सामान।।।। इस तरह ई-वेस्ट धीरे-धीरे खत्म हो जाता है, और पर्यावरण भी बचता है।।।।
दिल्ली के लिए क्यों है गेम-चेंजर?
दिल्ली में हर साल ढेर सारा ई-वेस्ट निकलता है, और अभी तक इसका सही तरीके से निपटारा नहीं हो पा रहा।।।। ये इको पार्क बनने से न सिर्फ कचरे का मैनेजमेंट होगा, बल्कि रोजगार भी बढ़ेगा।।।। PPP मॉडल की वजह से प्राइवेट कंपनियां नई टेक्नॉलजी लाएंगी, जिससे रिसाइकिलिंग और इफिशिएंट होगी।।।। ऊपर से दिल्ली का 25 परसेंट ई-वेस्ट यही हैंडल होगा, तो शहर की हवा-मिट्टी-पानी को बड़ी राहत मिलेगी।।।।