दिल्ली हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद से वो लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं। खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार वर्मा के खिलाफ मानसून सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाने के विकल्प पर विचार कर रही है। सूत्रों के मुताबिक जस्टिस वर्मा अगर खुद इस्तीफा नहीं देते हैं तो संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाना एक स्पष्ट विकल्प है। यह प्रस्ताव जज वर्मा को पद से हटाने के लिए होगा। ऐसे में आईये जानते हैं महाभियोग क्या होता है, इसका उपयोग कौन कर सकता है और इसकी प्रक्रिया क्या है?
महाभियोग क्या है?
महाभियोग एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है, जिसके जरिए भारत में राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को उनके पद से हटाया जा सकता है। ये प्रक्रिया तब शुरू होती है, जब कोई बड़ा अधिकारी संविधान का उल्लंघन, गलत व्यवहार या अक्षमता का दोषी पाया जाता है। भारतीय संविधान में इसकी बात अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में की गई है।
संविधान में तय है प्रक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया अनुच्छेद 124(4) में बताई गई है। अनुच्छेद 218 के मुताबिक, यही नियम हाई कोर्ट के जजों पर भी लागू होते हैं। अनुच्छेद 124(4) कहता है कि किसी जज को सिर्फ सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर संसद की प्रक्रिया के जरिए हटाया जा सकता है।
दोनों सदनों से पास होना जरूरी
महाभियोग प्रस्ताव को संसद के किसी भी सदन, यानी लोकसभा या राज्यसभा में पेश किया जा सकता है। लेकिन इसे दोनों सदनों से एक ही सत्र में पास होना जरूरी है। प्रस्ताव को संसद में लाने के लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए।
जांच समिति बनती है
जब प्रस्ताव पेश होता है, तो उस सदन का स्पीकर या सभापति उसे स्वीकार या खारिज कर सकता है। अगर प्रस्ताव स्वीकार हो जाता है, तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाई जाती है, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट का जज, एक हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस और एक मशहूर कानून विशेषज्ञ शामिल होता है। ये समिति जज के खिलाफ लगे आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट स्पीकर या सभापति को सौंपती है।
राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी
अगर जांच समिति की रिपोर्ट में जज के खिलाफ आरोप सही पाए जाते हैं, तो जज को हटाने का प्रस्ताव संसद में बहस और वोटिंग के लिए रखा जाता है। प्रस्ताव को पास होने के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए। अगर दोनों सदनों में प्रस्ताव पास हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। जज को हटाने का आखिरी अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास है।
अब तक नहीं हटा कोई जज
भारत में आज तक महाभियोग के जरिए किसी भी जज को हटाया नहीं गया है। अब तक 6 बार जजों को हटाने की कोशिश हुई, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुई। पहला मामला सुप्रीम कोर्ट के जज वी. रामास्वामी का था, जिनके खिलाफ मई 1993 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। लेकिन ये लोकसभा में पास नहीं हो सका। वहीं, कोलकाता हाईकोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ 2011 में प्रस्ताव राज्यसभा में पास हुआ, लेकिन लोकसभा में वोटिंग से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया।